वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

Breaking

बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jan 10, 2015

व्यंग तो दुनिया की तमाम बुराइयों को खुशनुमा अंदाज़ में दिखाने और सुनाने का तरीका मात्र है

देखना है बन्दूक और कलम की जंग में आखिर जीतता कौन है?


शार्ली एब्दो एक फ्रांसीसी साप्ताहिक पत्रिका जो मशहूर है अपने व्यंगात्मक कार्टून्स के लिए सारी दुनिया में, उस पत्रिका  के पेरिस स्थित कार्यालय में कट्टरपंथी आतंकवादियों ने १२ लोगों को मार दिया, ये बन्दूक की कलम से दुश्मनी में कौन जीतेगा ये तो जाहिर है, पर क्या व्यंग के लिए क़त्ल कर देना उचित है, क्या अहिंसात्मक कार्यवाहिया नहीं की जा सकती, व्यंग के खिलाफ, परन्तु सच्चाई तो ये है की व्यंग तो दुनिया की तमाम बुराइयों को खुशनुमा अंदाज़ में दिखाने और सुनाने का तरीका मात्र है, और यह व्यंग न हो तो लोगों में कितनी नीरसता आ जायेगी, यहाँ गौर तलब यह है व्यंग ने महाभारत करा दी...काश द्रौपदी के उस व्यंग को दुर्योधन ने गले न लगाया होता तो कुरु वंश बच जाता नष्ट होने से...

हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल की रचनाओं में देखे तो प्रत्येक जाती धर्म व्यवस्था और सरकार के अलावा व्यक्तियों पर वह तंज़ कसे गए है की हँसते हँसते स्वास लेना मुश्किल हो जाए, फिर ये हंसाने वालों की ह्त्या क्यों? और पत्रकारिता जगत में यह अब तक की सबसे बड़ी ह्रदय विदारक घटना पर तमाम लोग आखिर चुप क्यों है, सवाल अगर भावनाओं के आहत होने का है, मान्यताओं के टूटने का डर है, तो यह निराधार है, बापू के शब्दों पर गौर करे तो धर्म व्यक्ति का निजी मसला होता है और इस निजी मसले को कोइ बाहर वाला कैसे प्रभावित कर सकता है, हमारे अंतर्मन को भेदना संभव है क्या जबतक हम इजाजत न दे....

शार्ली एब्दो ने दुनिया के तमाम धर्मों पर व्यंगात्मक लेख कार्टून्स बनाए और इस पत्रिका का विरोध भी होता रहा किन्तु ह्त्या कर देना वह भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिपाहियों की, ये क्या उस व्यंग और ह्त्या के तराजू में संतुलन लाता है?

दुनिया के तमाम देशों में व्यंगात्मक कलाकृतियों कार्टून्स और लेखों पर शोरगुल हुआ और सियासत भी पर विरोध का यह ह्त्या जैसा घृणित कार्य करने वाले लोग सिर्फ और सिर्फ अपने धर्म को बदनाम करते है.

...हम तो सर इकबाल की उस नज़्म को पढ़ते सुनते बड़े हुए है जिसमे उन्होंने कहा की ...मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर करना......शायद अब कोइ मायने नहीं रह गए इन शब्दों के लोगों के ज़हन में.....

दुनिया भर के लोगों ने शार्ली एब्दो पर हुए हमले के विरोध में कुछ रेखाये खींची है, हम चाहते है आप इन्हें देखे ही नहीं बल्कि इस हास्य पर जो मातम के मौके पर है अपनी राय भी दे....

#सम्पादक की कलम से  


  



















Image Credits: Various Sources on the Web 

Dudhwa Live Desk-


2 comments:

  1. ये संकेत है मानवजाति के लिए कि कितने असंयमी, धैर्यहीन और आक्रामक हिंसक होते जा रहे हैं!!...अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी अधिक आधारभूत सवाल व्यक्ति के जीने के अधिकार को ही रौन्धते जा रहे हैं!!...सबसे आसान हो गया है किसी को भी जान से मार देना!!...आपने अपने लेख में जिनका उल्लेख किया उन्होंने समाज की धारा के विरोध में अपनी बेबाकी से नए प्रतिमान स्थापित किए!!...जो आशा की किरण देते हैं!!..और हौंसला भी!!...शुक्रिया!!...

    ReplyDelete
  2. इन्हें किसी कार्टून से समस्या नहीं. इन्हें तो बस बहाना चाहिये खून बहाने के लिये जिससे डर व दहशत का माहौल कायम किया जा सके. कलम और बन्दूक में जंग बहुत पुरानी है लेकिन कलम बन्दूक पर हमेशा भारी पड़ी है ये निर्विवाद सत्य है........... कलम के सिपाहियों को श्रद्धांजलि

    ReplyDelete

आप के विचार!

जर्मनी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार "द बॉब्स" से सम्मानित पत्रिका "दुधवा लाइव"

हस्तियां

पदम भूषण बिली अर्जन सिंह
दुधवा लाइव डेस्क* नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह

एक ब्राजीलियन महिला की यादों में टाइगरमैन बिली अर्जन सिंह
टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

मुद्दा

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

दुधवा में गैडों का जीवन नहीं रहा सुरक्षित
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

Post Top Ad

Your Ad Spot