वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 10, 2010

क्या हम पर्यावरण के क्षेत्र में आदर्श स्थापित करना नही जानते।

दुधवा लाइव डेस्क*
नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह का निधन हुआ। इन्हों ने अपना पूरा जीवन जंगल में अकेले रहकर बाघों और उनके आवासों की सुरक्षा में लगाया। बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है, बस इतना मान भर लेने से काम नही चलना, क्यों की बाघ संरक्षण का मतलब है पूरे पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण। बाघ खाद्य श्रंखला में सबसे ऊपर है और इसके संरक्षण में पूरे जंगल व उनके जीवों के संरक्षण का राज छिपा है। टाइगर मैन बिली अर्जन सिंह के शब्दों में कहे तो " बाघ जंगल का मसीहा है, जैसे ईसाई का गाड, मुसलमान का अल्लाह, और हिन्दू का भगवान, यदि बाघ नही होंगे तो जंगल भी नही होगें, जंगल वर्षा लाते है और हमें जीने के लिए आबों-हवा देते है,  इसलिये बाघ बचाओं नही तो हम सभी भी नही रहेंगें।"

उत्तर प्रदेश के खीरी जनपद के घने जंगलों के एक हिस्से को संरक्षित क्षेत्र का दर्जा दिलाने का कार्य अर्जन सिंह ने किया, जिसे दुधवा टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है। इन्होंने दुनिया में सबसे पहले बाघ पुनर्वासन का सफ़ल प्रयोग किया। एक बाघिन जो तारा के नाम से मशहूर हुई और तीन तेन्दुएं, हैरिएट, जूलिएट, और प्रिन्स का जंगल में सफ़ल पुनर्वासन किया।
बिली अर्जन सिंह वाइल्ड लाइफ़ बोर्ड आफ़ इडिंया के सदस्य रहे, दुधवा के अवैतनिक वार्डन, इन्हे विश्व-प्रकृति निधि द्वारा गोल्ड मैंडल,  नोबल पुरस्कार की प्रतिष्ठा रखने वाला पाल गेटी पुरस्कार, पदम श्री व पदम भूषण के साथ अन्य तमाम राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। किन्तु इन सब के बावजूद सरकारों ने जो उपेक्षा दिखाई इस महा-पुरूष के अन्तिम समय व उसके उपरान्त,यह बहस का मुद्दा है, क्या सरकारों की जिम्मेदारी  सिर्फ़ पुरस्कारों के नाम पर कागज के टुकड़े दे देना भर है । यहां विषय ये नही है कि अर्जन सिंह के निधन पर शोक सन्देश आदि व राजकीय सम्मान क्यों नही मिला, सवाल ये है मान स्थापित करने का ताकि जनमानस किसी व्यक्ति द्वारा किए गये महान कार्यों का महत्व समझें और अनुसरण करने के लिए तत्पर हो। पर अफ़सोस ऐसा नही होता, और जब जरूरत पड़ती है देश को दिशा देने की तो इतिहास के पन्नों में खगांला जाता है, कि कोई पात्र तो ऐसा मिल जाय जो इस कार्य में लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन सके!
इस मुल्क में घोटाले बाजों को पदम पुरस्कार दे दिए जाते है, तो और क्या उम्मीद की जा सकती है। कायदा तो यह कहता है। कमसे कम इतना जरूर करना चाहिए उन लोगों को जो सच्चे हकदार है पुरस्कार के उन्हे ही बहिष्कार करना चाहिए इन पुरस्कारों का। और उस फ़ेहरिस्त में शामिल होने से इन्कार भी जहां अयोग्य व अपात्र लोग ये गौरव हासिल कर रहे हो।
समसामयिक मुद्दों को छोड़कर सरकारे पर्यावरण और वन्य-जीव सरंक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वालों को महत्व नही देती है और यदि देती भी है तो तब जब उस व्यक्ति या संस्था को दुनिया के तमाम देश और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें सम्मानित कर देती है। इसके पीछे भी शायद वजह है, कि जानवरों का कोई वोट बैंक नही होता!
बिली अर्जन सिंह के महान कार्यों को समाज में प्रेरणादायी बनाने के लिए सरकार को मान स्थापित करने के लिए आगे आना चाहिए और सिर्फ़ नेताओं और पूर्व शासकों के नाम के अतिरिक्त यदि जगह खाली हो तो  डाक टिकट, राज्य मार्गों के नाम, नेशनल पार्क, लाइब्रेरी आदि को बिली अर्जन सिंह के नाम पर रखना चाहिए। स्मारक बनाने चाहिए और जैसी की तराई में मांग उठाई जा रही है, दुधवा टाइगर रिजर्व का नाम बिली अर्जन सिंह टाइगर रिजर्व करना चाहिए।

3 comments:

  1. बिली को नमन...ऐसे लोग धरती पर बार-बार नहीं आते।

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  2. When new generation of India will realise the importance of tigers and its forest, that time they will come to Dudhwa searching for you, to salute you but it is sad that you are no more there.
    Good bye Sir.

    RAVINDRA YADAV

    ReplyDelete
  3. Bill Arjan Singh You are really a brave and amazing person, who came to Dudhwa and Explore it beautifully into wildlife national park for us. well this is now become the tiger and elephant home with some beautiful Indian's Rhino.

    well again thanks to Billy again and again for this golden national park .i.e. Dudhwa National Park

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