वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 19, 2010

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ

फ़ोटो साभार: सीजर सेनगुप्त*
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा: बाघ जंगल का कुशल कूटनीतिक चाणक्य होता है, किन्तु कंकरीट के जंगलों में रहने वाले चाणक्यों की कुटलनीति ने उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिये है इसी कारण दुनिया भर के संरक्षणवादियों व प्रकतिप्रेमियों ने बाघ संरक्षण की मुहिम चलायी जिसे दुनिया की तमाम सरकारों ने मंजूरी दी है। इन सब इंतजामों के बावजूद बाघ का शिकार उसकी खाल व अंगों के लिए जारी है। उन्नीसवीं सदी की शुरूवात में पूरी दुनिया में बाघो की सख्या लगभग 100,000 थी अकेले भारतीय उपमहाद्वीप में 40,000 बाघ थे किन्तु अब धरती पर सिर्फ 3200 रॉयल बंगाल यानी भारतीय बाघ ही बचे है, भारत में बाघों की सरकारी सख्या 1411 बतायी जा रही है, पर हकीकत में यह संख्या इससे भी कम होगी। ऐसा भारत के तमाम बाघ संरक्षको व वैज्ञानिकों का मानना है, उत्तर प्रदेश में उत्तरांचल के सन 2000 में अलग हो जानें के बाद 2001 में कराए गयी टाइगर गणना के अनुसार 284 बाघ है। जबकि उत्तरांचल बनने से पूर्व पूरे प्रदेश में 1999 की बाघ गणना के मुताबिक 472 बाघ थे। द इण्टरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर एण्ड नेचुरल रिर्सोसेज ‘आई यू सी एन’ ने अपनी पुस्तक रेड डाटा बुक में संकट ग्रस्त प्रजाति के रुप में रखा है भारत में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 व 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुवात कर बाघ संरक्षण में महत्वपूर्ण कदम उठाये है लेकिन तमाम कानूनों व प्रयासो के बावजूद बाघ जंगलो से गायब होते जा रहे है कारण खराब तन्त्र व लोगों में वन्य जीवो के महत्व के प्रति जागरुकता का न होना जो इस बेहतरीन प्राणी की मिटती नस्ल के जिम्मेदार है। उत्तर प्रदेश की तराई जिसे विश्व प्रकति निधि ने तराई आर्क लैण्ड के रुप में चिन्हित किया है बाघों का प्रकृतिक व पौराणिक आवास है बाघों के इस इलाके में खीरी के जंगलों का विशेष महत्व है जिसकी वजह है यहां के घने शाखू के जंगल व शारदा, घाघरा व गोमती जैसी विशाल नदियां जो वन्य जीवों को उनके अनुकूल वातावरण प्रदान करती है खीरी के जंगलों में जंगली रंग बिरंगे पुष्प वाले पौधे, औषधीय वनस्पतियां व कई तरह के विशाल वृक्ष,  बाघ, गैण्डा, हाथी, भालू, हिरनों की पांच प्रजातियां, बन्दर, 350 से अधिक पंक्षियों की किस्में, तमाम किसमों की रंग बिरंगी तितलियां व अन्य बहुत से वन्य जीव व वनस्पतियां पाई जाती है यहां जो सबसे खास बात है वह है बाघ जिस कारण खीरी के जंगल पूरी दुनिया में जाने जाते रहे है इस अरण्य जनपद के सुरम्य जंगलों को मनुष्यों ने बहुत नुकसान पहुचाया बावजूद इसके अभी भी यहाँ बहुत कुछ बचा हुआ है। इस अपार प्राकृतिक संपदा के कारण सन 1977 में यहां के जंगलों के उत्तरी हिस्से को जो अन्तराष्ट्रीय भारत-नेपाल सीमा से जुड़ा हुआ है, को दुधवा नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया। ताकि वन्य जीवन को बेहतर सुरक्षा मिल सके सन 1987 में किशनपुर वन्य जीव बिहार को मिलाकर टाइगर प्रोजेक्ट के तहत इसे दुधवा टाइगर रिजर्व बनाया गया, इस रिजर्व के तहत खीरी के जंगलो का 884 वर्ग किलो मीटर का भूभाग आता है इसके अलावा दक्षिण खीरी वन प्रभाग व उत्तर खीरी वन प्रभाग के जंगल है जहां मानव आबादी के दबाव व शिकार के कारण वन्य जन्तु तो न के बराबर ही है किन्तु फिर भी यह जंगल बहुत से जीवो के घर है। खीरी के वनों में लगभग 100 बाघ है

कुछ समय पहले, विश्व प्रकृति निधि द्वारा चिन्हित किए गयें बाघों के 76 प्राकृतिक आवासों में से जो 20 महत्वपूर्ण स्थान है, उनमें से एक खीरी के जंगल भी है जो तराई आर्क लैण्ड प्राजेक्ट का एक हिस्सा है। बाघ संरक्षण के लिए उन 13 देशों ने मिलकर बैठके की है जहां बाघ प्राकृतिक तौर पर पाए जाते है पूरी पृथ्वी पर बाघ की आठ प्रजातियां पाई जाती थी जिनमें अब जीवित बची प्रजातियां पांच है - भरतीय बाघ, इण्डो चायनीज बाघ, साइबेरियाई बाघ, साउथ चायनीज बाघ और सुमात्रन बाघ जो तीन प्रजातिया विलुप्त हो गई वह है कैस्पियन बाघ, जावन बाघ, व बाली बाघ इन नष्ट हुयी बाघ की नस्लो का मुख्य कारण था शिकार व उनके आवासो यानी जंगलो को नष्ट कर देना लेकिन अब बचे हुए बाघो पर भी विलुप्ती का संकट मड़रा रहा है और इन नस्लो में भारतीय बाघ यानी रायल बंगाल टाइगर के संरक्षित रहने की अत्यधिक संभावनाए है यदि इन बाघों के अतीत पर हम गौर करे तो आज से 6 करोड़ वर्ष पूर्व जब धरती पर डायनासोर(रेप्टाइल) का राज था तब इन बाघों के पूर्वज जिन्हे मियासिड (स्तनधारी) कहते है मौजूद थे। ये जीव आकार में छोटे शरीर लम्बा व लचीली छोटी टांगों वाले होते थे कई लाखों वर्षो बाद इन्ही मियासिड से क्रमिक विकास में कई तरह की प्रजातियां विकसित हुयी जिनमें बिल्ली, भालू, कुत्ता, और नेवले है। आज धरती पर 37 तरह की बिल्लियां पायी जाती है बाघ उनमे से एक है यहा पर एक बात महत्वपूर्ण है कि लाखो वर्षो पूर्व जो बाघ की तरह का जानवर पाया जाता था जिसके शिकारी दांत तलवार की तरह लम्बे व पैने होते थे वह बाघ का असली पूर्वज नही है बल्कि वह फेलाइन ‘बिल्ली’ परिवार की दूसरी शाखा के जीव थे जो लाखो वर्ष पूर्व विलुप्त हो गये। मौजूदा बची हुई बिल्लयों में बाघ आकार में सबसे बड़े होते हैं भारतीय नर बाघ 10 फीट तक लम्बा व 550 पांउड तक के वजन वाले हो सकते है जबकि मादा बाघ 8 1/2 फीट लम्बे व 350 पांउड तक वजन वाले हो सकते है मादा की गर्भावस्था लगभग सवा तीन महीने की होती है ये 1-5 बच्चों को जन्म देते है जबकि सामान्यतः बाघ 1-3 बच्चो को जन्म देते है और बच्चे पैदा होने के आठ सप्ताहों में ही मां से शिकार करना सीखने की चेष्टा करने लगते है छह महीनों में ये बच्चें शिकार करने की आधारभूत जानकारियां हासिल कर लेते हैं और दो वर्ष बाद बाघ के शावक शिकार में पूर्णतया पारंगत हो जाते है। शरीर मे बड़े आकार के होने के कारण इनहे शिकार भी बड़ा चाहिए होता है ये रात्रि में शिकार के लिए बहुत लम्बा रास्ता तय कर सकते है मनुष्य की बढ़ती आबादी व जंगलों के नष्ट हो जाने से इनके शिकार में कमी आती जा रही जिस कारण कभी-कभी इनके व मानव के मध्य संघर्ष छिड़ जाता है।


सदियों पहले जब भारत भूमि पर लाखों बाघ स्वछन्द विचरण करते थे और मनुष्य भी अरण्यों में इन्ही के साथ शन्ति से रहता था हमारे ऋषि, मुनि तो घने वनों मे ही साधना करते थे लेकिन क्या आप ने कभी सुना या किसी पौराणिक दस्तावेज मे पढ़ा कि किसी बाघ ने किसी ऋषि को खा गया वजह बिल्कुल साफ थी कि तब मानव इतना लालची नही था न तो वह जंगलों कोई नुकसान पहुचांता था और न ही उन जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षियों को। हमारा पौराणिक इतिहास जानवर व मानव के मध्य अतुलनीय सामंजस्य का उदाहरण है। किन्तु विदेशी आक्रन्ताओं ने जब भारत भूमि पर कदम रखा तो हमारे जंगल के इस बादशाह पर खतरा मड़रानें लगा क्योंकि इन लोगों ने जब इस अदभुत ताकत व आकर्षक जीव को देखा जिसके ये लोग सिर्फ किस्से सुनते थे तो ठनहो ने अपनी बहादुरी की शेखी बघारने के लिए बाघ को मारना शुरु कर दिया ,और शेरखान जैसे नामों वाली उपाधियों से स्वंम को महिमामंडित करने लगे इसके बाद ब्रिटिश उपनिवेश में बाघों का शिकार जोरों से शुरु हो गया हमारे देशी कथित राजाओं व ताल्लुकेदारों ने अंग्रेजो की तर्ज पर बाघ का शिकार शुरु कर दिया और ज्यादातर ये शिकार उन अंग्रेज अफसरों को खुश करने के लिए होते थे जिनसे इनकी कोई स्वार्थ सिद्धि होती, यूरोप में उस समय महिलायों में टाइगर की खाल की पर्स व कोट पहननें का फैशन जोरो पर था। पुरुष भी बाघ की खाल को मढ़वाकर अपने ड्राइंगरुम में टांगना अपनी शान समझते थे, ज्ञात प्रमाणों में भारत में बाघ ब्रिटिश उपनिवेश के वक्त सबसे ज्यादा मारे गये। आज जब पूरी दुनिया इन वन्य जीवो के महत्व व हमारे पारिस्थितिकी तंत्र मे उनकी अहम भूमिका को समझ गयी है और वन्य जीवो व वनों को बचाने के लिए एक समुदाय ही अस्तित्व में आ गया है और सरकारी स्तर पर वन्य जीवों के संरक्षण के लिए तमाम कानून बनाए गये है और भारी धन खर्च किया जा रहा है तब भी कुछ लोग अपनी प्रकृति मां के अंगों यानी जंगलों व उनमें रहने वाले पशु पक्षियों को नष्ट करने पर तुले हुए है और कुछ सरकारी लोग तो मानवभक्षी होने का झूठा लबादा इन निरीह जानवरो पर डालकर अपने अन्दर दबी हुई शिकारी प्रवत्ति के चलते इनको मार डालते है और मानवभक्षी व खूंखार बाघ या तेन्दुआ को मारनें का तमगा व प्रसद्धि हासिल कर लेते है।
photo courtsey: tigerhomes.com

उत्तर प्रदेश के तराई के जंगल बाघों का प्राकृतिक आवास है सदियों से ये स्वर्णिम आभा लिए काली धारी वाला जीव इन जंगलों में राज करता आया है किन्तु मानव द्वारा इनके घरों में अतिक्रमण करने से अब भारत का यह राष्ट्रीय पशु अपने अस्तित्व को बचाए रख पाने के लिए संघर्षरत है।
आज १४११ का जो आँकड़ा पेश किया जा रहा है, उस पर भी यकीन कर पाना मुश्किल है, शायद यह सख्या इससे भी बहुत नीचे होगी, क्योंकि उजड़ते आवास, शिकार, और बेमानी हो चुकी सरकारी नीतियों के चलते भारतीय बाघ  इस धरती से विलुप्त हो रहा है, और उसी के साथ विलुप्त हो जायेंगे जंगल और उनमे रहने वाले तमाम जीव भी क्या ये आप ने सोचा है कभी? यदि आप सभी सरकारी योजनाओं के भागीरथी! प्रयासो पर नज़र दौड़ाये तो आप देखेंगे कि इन योजनाओं से पहले बाघों की सख्या ज्यादा थी और उन तमाम कवायदों के बाद निरन्तर घटती रही है! क्या सरकारों को अपनी इस बेनतीजा रही कोशिशों के बाद के नतीजों पर शर्म नही आती। आज सिर्फ़ बड़ी-बड़ी परियोजना, आधुनिक तरीकों से गणना, डाक्यूमेन्ट्री फ़िल्में, फ़ोटोग्राफ़ी और बड़ी-बड़ी बातों के सहारे बाघ सरंक्षण की बाते हो रही हैं, क्या इससे जंगल में वृक्ष उग आयेगे या घास के मैदान विशाल हो जायेंगे?,  बाघों और उनके शिकार (prey&predator) के मध्य संतुलन कायम कायम होगा?, ये सब वो बाते हैं जिन्हे ये कोई सरकारी योजनायें पूरा नही कर पा रही हैं, चाहे फ़िर वह जे०एफ़०एम० हो या तराई-आर्क परियोजना जिसमें जंगलों की श्रंखलायें आपस में जोड़ने का काम या चर्चा तकरीबन पिछले १० वर्षों से हो रही है।  जंगलो के विस्तार के लिए वन-भूमि व ग्राम-पंचायतों की भूमियों पर कितना वृक्षारोपड़ हुआ, और कितना सफ़ल रहा है, ये सवाल है हमारी इन्तजामियां पर?

कृष्ण कुमार मिश्र ( लेखक: वन्य-जीव सरंक्षण व अध्ययन के लिए प्रयासरत हैं, उत्तर प्रदेश के  लखीमपुर खीरी में रहते हैं, इनसे 
dudhwajungles@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)







(फ़ोटो साभार: सीजर सेन्गुप्त, आप वन्य-जीव प्रेमी है, वन्य-जीवन की  फ़ोटोग्राफ़ी में महारत, पेशे से एक प्रतिष्ठित "थायरोकयर पैथालोज़ी" के जनरल मैनेजर हैं, आप से workcaesar@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)

8 comments:

  1. Tigers in India inhabit a wide range of habitat e.g. mangroves (Sundarbans), rain forests in Western Ghats, Grasslands (Terai), dry and arid areas in Rajasthan, deciduous and most deciduous (Madhya Pradesh and Maharashtra).

    The adaptability of the species to various ecosystem and habitats increases the chances of survival of the species in the long run. This is perhaps one of the reasons why tigers succeeded (sic!) while cheetah perished (extinct)

    The habitat degradation, change in landuse and the poaching remains the gravest threat. We need to be critcally aware of the species which got extinct in India and the reasons behind extinction. Extinction of Cheetah and Pink headed duck in India indicates that extinctions are for real. If we do not learn from history (that too from recent history), we are condemned to repeat it!

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  2. aajkal log sms, t-shirt batkar, advertising me paisa baha rahe, tiger ye sab karne se bavhenge?
    ye paisa national parks par kharch kare, trees ka plantation karaye, jungle taiyar kare\

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  3. आज 27 फरवरी 2010 के दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में मुश्किल में बाघ शीर्षक से पोस्‍ट में से महत्‍वपूर्ण अंश प्रकाशित किए गए हैं। बधाई स्‍वीकार करें, इतने महत्‍वपूर्ण विषय पर इतनी पैनी कलम चलाने के लिए भी।

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  4. bahut accha work kar rahe hai krishan kumar mishr ji aap ko meri taraf se bahut badhai aap aage chalkar tarraki karenge..........sushil shukla,shahjahanpur up reporter news-24

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  5. Tiger is our natural heritage ane national animal but tiger is still not safe. Latest example is from itanagar zoo where any man came at zoo and shoot the tiger and cut into pieces but before he takes it away anyone came so he had gone but left the dead tiger. So, we have take oath save tiger Tommorow on 30th september 2012 is International Tiger Day and we hope we all will play major vital role to aware people about the coneservation of Tiger in India . We will protect our tiger at any cost.

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  6. Tiger is our natural heritage ane national animal but tiger is still not safe. Latest example is from itanagar zoo where any man came at zoo and shoot the tiger and cut into pieces but before he takes it away anyone came so he had gone but left the dead tiger. So, we have take oath save tiger Tommorow on 30th september 2012 is International Tiger Day and we hope we all will play major vital role to aware people about the coneservation of Tiger in India . We will protect our tiger at any cost. By Uruj Shahid

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  7. On that time when the post is written, to save the tiger was more important to anything, but this time we have Leopard and tigers which are growing fastly... Aircel has started the slogan "SAVE THE TIGER" and today tigers are much safe now...

    Thanks
    http://dudhwa.co.in - Dudhwa National Park

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टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

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क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

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देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

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