वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 24, 2021

भारत नेपाल सीमा के आखिरी गांव चौगुरजी में लगाया गया निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर





नदियों और जंगलों से घिरे इस गांव को श्रीलंका भी कहते है लोग

शिव कुमारी देवी मेमोरियल ट्रस्ट की तरफ से निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर में तीन सौ से अधिक मरीजों की जांच व मुफ्त दवाएं वितरित की गई

संस्मरण.....

 इक्कीस फरवरी दो हजार इक्कीस भारत नेपाल सीमा के सुदूर पश्चिम में बसा एक गांव जिसके चारों तरफ कई नदियां, भारत-नेपाल के जंगल, बता दूं यह ऐसी जगह है जो गैंडों और हाथियों का माइग्रेशन रुट भी इसी गांव के आस पास से गुजरता है, गांव वालों के लिए नदी की छोड़ी जमीनों व खेतों में गैंडे व हाथियों का दिख जाना आम बात है, नेपाल के बर्दिया जिल्ला व कैलाली जिल्ला की सीमाएं, खीरी जनपद के इस आखिरी गांव को स्पर्श करती हैं, और इसी गांव से हिमालय अपने पैर जमाने लगता है धरती में…..जमीन के भीतर चट्टानों की परतें मिलने लगती है, याद रखिए विशालता की जड़े बहुत गहरी व विस्तार लिए होती है, हिमालय के साथ भी ऐसा है वह यूं ही सागरमाथा नही बना उसे अपनी जड़ें खीरी से जमानी शुरू ए की तबजाकर वह हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हुए एवरेस्ट जैसी ऊंचाई को हासिल कर सका….



चुनांचे हम बात कर रहे थे उस सीमांत गांव की जहां कोई पक्का मकान नही जहां जमीन में हिमालय की जड़े अर्थात पत्थर होने की वजह से नल बोर नही हो सकता गहराई में, नतीजतन जमीन के उस स्ट्रेटा तक बोर नही हो सकता जहां शुद्ध पानी मौजूद है, और 40 फ़ीट पर बोरिंग वाले नल से पीला पानी, पर इसका भी विकल्प निकाला है गांव वालों ने गांव के पास बहती नेपाल से निकलने वाली करनाली नदी से पानी भर लाते है मिनरल्स से भरपूर चमकता पानी, मजे की बात बताऊं पास के कस्बे तिकोनिया के लोग करनाली से पानी मंगवा कर पीते है, और हां यह गांव चौगुरजी जो सूरत नगर ग्राम पंचायत का मज़रा है वह सूरत नगर पंचायत करनाली मोहाना की बाढ़ में आकर खत्म हो गई, लोग बाग इधर उधर बस गए, मोहाना पर बना पुल भी ध्वस्त हो गया, पर जिजीविषा की अप्रतिम मिसाल है ये चौगुरजी के ग्रामीण जो हर बारिश में जब नदियां उफनाती है तब इनकी जमीन व घास-फूस व लकड़ी के बने घर डूब जाते है, गांव के प्रत्येक घर मे नाव है ताकि बाढ़ आई तो जरूरी सामान उस नाव पर रख सजे उस नाव ओर सो सके खाना पका सके, जानवरों को खोलकर ऊंचे स्थानों पर पहुंचा देते या जानवर कई दिनों तक पानी मे खड़े रहते है, ग्रामीण बताते है कि चार पांच दिन में बाढ़ का पानी उतर जाता है, यहां हल्दी लहसुन व नदी के द्वाब (दो नदियों के बीच की जमीन जिसे अंग्रेजी में चैनल कहते है) में लौकी तोरी खरबूजा तरबूज ककड़ी की भी खेती करते है नदियों के किनारे मई जून तक हरियाली से तर बतर हो जाते है, अभी गांव में गेहूं चना सरसों दिखी, गन्ना दूर दूर तक नही दिखाई दिया शायद मिल तक जाने का कोई रास्ता नही ट्रैक्टर ये विशाल नदियां नही पार कर सकते शायद इसलिए गन्ने की खेती नही करते और बाढ़ में गन्ने की फसल ख़त्म हो जाए इसलिए भी….



ख़ैर हम सब ने अम्मा की स्मृति में फ्री हेल्थ कैम्प आयोजित करने के लिए चौगुरजी को चुना, तिकोनिया के स्थानीय डॉक्टर तनवीर ने सुझाया की सुदूर सीमा का आखिरी गांव जहां स्वास्थ्य शिविर की बेहद जरूरत है, हमने निर्णय लिया सभी डॉक्टर बन्धुओं सहयोगियों से राय मांगी और 21 फरवरी की तारीख तय हो गई, मुकर्रर तारीख़ की अलसुबह हम गाड़ियों में दवाएं रखकर निकल लिए, हमारी एक टीम का नेतृत्व पूर्ववनाधिकारी बड़े भाई अशोक कश्यप जी कर रहे थे वह अपनी कार में हमारे साथियों सहयोगियों को लेकर 7 बजे ही चौगुरजी के लिए निकल लिए, मुझे अपने डॉक्टर बन्धुओं डॉ सौरभ सिंह, डॉक्टर इमरान फ़ारुखी और कैम्प के सबसे जिम्मेदार सहयोगी समाजसेवी बड़े भाई जनार्दन मिश्र जी को लेकर निकलना था, हमारी दोनों टीमें कुछ किलोमीटर के फासले पर सीमा के आखिरी गांव की तरफ बढ़ रही थी, हमने उल्ल नदी पार की फिर कुछ छोटी नदियां, फिर महाकाली यानी शारदा नदी और फिर सरयू यानी सुहेली, और दुधवा टाइगर रिजर्व के कतर्नियाघाट वन्य जीव विहार के मझरा पूरब से गुजरते हुए जहां पिछले कैम्प से लौटते वक्त उस बाघ से आधे घण्टे मुलाक़ात हुई थी जिसने इंसानों से न डरने की ठान ली है, और पूरी अकड़ से वह उस इलाके में घूमता है, पत्रकार उसे खूंखार आदमखोर लिखते है जबकि वह इंसानी कुफ़्र से परेशान होकर उसने अपना व्यवहार बदल लिया और आदम जाट की करतूतों ने उसके मन मे नफरत पैदा की है सो हर आते जाते इंसान को वह छेड़ता है, बाघ का छेड़ देना भी कितना ख़तरनाक होता होगा यह तो समझते ही होंगे...उस खूबसूरत जानवर से आधी रात की उस मुलाक़ात का ज़िक्र फिर कभी….! हम आनन फानन कौडियाला घाट पहुंचे जहां सुंदर सा गुरुद्वारा है यह घाट नेपाल से आती हुई नदी मुहाना पर है, वही एक घास के बने छप्पर में बेहतरीन आलू टिक्की समोसे और गर्म चाय, 90 किलोमीटर की यात्रा के बाद बेहतरीन चाय ने मन को राहत दी...तब तक तिकोनिया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की टीम व डॉ तनवीर अपने स्टॉफ के साथ वहां पहुंच गए, इस छप्पर वाले दुकानदार ने डॉ तनवीर के जानने वाले जानकर पैसे भी नही लिए हम सब से, बाद में पता चला उसके लिवर का इलाज डॉ तनवीर ने किया था...



















अब हम कच्चे रास्तों पर चल रहे थे डॉ तनवीर और स्वास्थ्य कर्मियों की कारों के पीछे, धीरे धीरे रेत का मैदान दिखाई देना शुरू ए हो गया, एक बंधे से ज्यों ही हमारी कारें नीचे उतरी मोहाना नदी का मन्द गति से बहाव…नदी की निर्मलता और उसका गजगामिनी स्वभाव देखना हो तो मोहाना को देखिए, नाव उस तरफ थी सो इंतजार करना पड़ा, जुगाड़ से बनाया गया स्टीमर खराब था, तब तक वहां के स्थानीय लोग मोटरसाइकिल व साइकल लेकर पहुंच गए हमारी मदद के लिए, नसीम जो डॉक्टर तनवीर का सहयोगी है उसने गाड़ियों से दवाएं निकाली और उन डिब्बों को नाव पर रखवाया, साउंड माइक चटाइयां सभी जरूरी सामान नाव पर रखा गया साथ मे दो मोटर साइकिल और साइकल भी रखी गई, क्योंकि आगे करनाली जो मिलने वाली थी, मोहाना और करनाली के मध्य दो किलोमीटर का फासला बीच मे रेत ही रेत और रेत में उगने वाली वनस्पतियां घासें, जो हर नदी की इकोलॉजी में समान है, चाहे गंगा यमुना के कछार हो या शारदा घाघरा मोहाना करनाली के, कभी देखिएगा, यहां एक बात और बता दूं जिन नदियों के मध्य हम पैदल चल रहे थे यही मोहाना और करनाली आगे मिलकर कतर्नियाघाट वन्य जीव विहार में गिरिजपुरी बैराज से पहले मिलकर घाघरा हो जाती है और यही घाघरा अयोध्या में सरयू कहलाती है, खैर मोहाना के नाविक से अलविदा कहकर दवाइयों के गत्ते साइकल और मोटर साइकिल पर रखवा दिए और हम पैदल ही इन दो नदियों के मध्य की जमीन से वाबस्ता होते हुए चल पड़े, अंततः करनाली मिल गई जिसके शुद्ध जल की महिमा वहां के जनमानस में ख़ूब है! 15 किलोमीटर दूर तिकोनिया तक के लोग इस करनाली का पानी मंगवा कर पीते है, अंततः हमने भी भर ली पानी की बोतल बीच धार में चांदी सा चमकदार मीठा पानी, इस बार जुगाड़ वाला स्टीमर मिल गया था पावरफुल इंजन वाला जिससे किसान सिचाई में इस्तेमाल करते है, और इंजन की गड़गड़ाहट के साथ हम करनाली की विशालता में खो चुके थे, तभी किनारे की आहट महसूस हुई, हमारा स्वास्थ्य विभाग का स्टॉफ अगली नाव से उस छोर पर हमारा इंतज़ार कर रहा था, ट्रैक्टर और डनलप पहुंच चुके थे चौगुरजी गांव से, हमने दवाइयां और सामान ट्रैक्टर पर रखवाया और डनलप पर सवार हो लिए, किसी ग्रामीण मेले में जाने जैसा वातावरण बन गया था या तीर्थ यात्रा सा, थे तो हम तीर्थ यात्रा पर ही अम्मा की स्मृति में इस सीमांत गांव में लोगों की स्वास्थ्य सेवा की भावना से, सो यह हमारा तीर्थाटन ही था, ट्रैक्टर चल पड़ा करनाली की छोड़ी हुई भूमि पर जहां रेत ही रेत कहीं घास के मैदान और आगे दूर जंगल की परछाई जो भारत नेपाल का मिला जुला जंगल था, उसी जंगल के किनारे कहीं चौगुरजी बसा है, जिसे श्रीलंका कहते है, जल से चारो तरफ घिरे होने के कारण यहां के लोगों ने इसे श्रीलंका कहना शुरू किया होगा, जहां कोई आसानी से नही पहुंच सकता जहां भगवान राम ने रामेश्वरम की स्थापना कर कोई पुल नही बनाया, बस यहां तो केवट का ही सहारा है, जिसने भगवान राम से भी उतराई नही ली थी, और हम सब से भी नही, अद्भुत संयोग है..! 


चार किलोमीटर रेत के समंदर में ट्रैक्टर ने अपनी पूरी ताकत से गरजते हुए चौगुरजी की ज़ानिब बढ़ रहा था, हम चीजों में भी सजीवता खोज लेते है, परसोनिफिकेशन...ट्रैक्टर की दहाड़ में भी वह जो ताकत लगा रहा था रेत पर उसमे भी कुछ साथियों की संवेदनाए उभर आई, की आज इस ट्रैक्टर ने पूरी ताक़त लगा दी…..!

एक ट्रैक्टर और डनलप में सीमा सुरक्षा बल के जवान भी आते दिखे….ट्रैक्टर और बैलगाड़ी और नाव यही मुख्य साधन है वहां के आवागमन के।


आखिरकार करनाली के ही एक नाले (रिवुलेट ) को आगे और पार करना पड़ा जिसमे कम गहरा पानी था, ट्रैकर उसे लांघ गया नही तो तीसरी जगह भी नाव से पर करनी होती है, अब गांव के मवेशी, पीली खिली सरसों और घास और लकड़ी के मकान दिखाई देने लगे, यही है श्रीलंका यानी चौगुरजी, इसके खेतों के पार नेपाल का बर्दिया नेशनल पार्क दिखाई दे रहा था, ….


अभी हमारी सबसे पहले चली टीम सबसे पीछे थी वह शायद अब मोहाना पार कर रहे थे, यहां बीएसएनएल को छोड़कर कोई प्राइवेट दूरसंचार कम्पनी का कुछ भी नही, याद रखिएगा डाक विभाग की तरह भारत के दूरस्थ इलाकों में आज भी यह भारत संचार निगम की सरकारी सेवा मौजूद है .  


चौगुरजी में ग्रामीणों द्वारा उनकी क्षमता व अल्प संसाधनों में जो बेहतर व्यवस्था हमारे उठने बैठने और कार्य करने के लिए हो सकती थी वह उपलब्ध कराई बड़े स्नेह से क्योंकि उस गांव में कभी कोई निःशुल्क स्वास्थ्य कैम्प नही लगा, हमारे साथ जनपद खीरी के सीएमओ साहब डॉ मनोज अग्रवाल जी निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग के फार्मासिस्ट, एएनएम आशा व अन्य स्टॉफ के साथ कोरोना रैपिड एंटीजेन टेस्ट व आर टी पीसीआर टेस्ट की भी सुविधा प्रदत्त कराई।


हमेशा की तरह अम्मा की स्मृति में शिव कुमारी देवी मेमोरियल ट्रस्ट की तरफ से होने वाले फ्री हेल्थ कैम्प का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता बड़े भाई जनार्दन मिश्र व बेलरायां कस्बे के वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद शकील भाई के हाथों में था, बैनर, तख्त, कुर्सी मेज दवा वितरण, पर्चे कहां बनने है कौन सी जगह क्या होना है सब सुनिश्चित व व्यवस्थित किया गया, उधर श्रीलंका के लोगों ने हमारी टीम के लिए मदार के पत्तो पर भौरिया (बाटी) और चोखा आदि बनवाना पहले से ही शुरू कर रखा था, कैम्प का शुभारंभ हमेशा की तरह गांव की सबसे बुजुर्ग महिलाओं के हाथों से कराया गया, और महिला स्वास्थ्य कर्मियों से उन माताओं का माल्यार्पण कर अभिनन्दन किया गया, पहला पर्चा बुजुर्ग महिला तारा देवी का बना और फिर देखते देखते शाम तक यह आंकड़ा 300 को पार कर गया, कैम्प में डायबिटीज, बीपी, यूरिया आदि की जांच भी मुफ्त में की गई, हमेशा की तरह 300 से अधिक मरीजों को मुफ़्त में दवा देने के बाद भी गत्तों में दवाइयां फिर बच गई, महादेव की यह कृपा हर बार जल्द अगले हेल्थ कैम्प के लिए प्रेरित करती है, दोपहर तक हमारी तीसरी टीम भी आ पहुंची दो नदियां नाव से और फिर पैदल इसमें बड़े भाई अशोक कश्यप, मोहम्मद शकील राममिलन मिश्र व स्थानीय सम्मानित नागरिक थे, मेरी तबियत कुछ ठीक न होने की वजह से जनार्दन मिश्र जी के कहने पर गांव के एक खेत मे लगे बांस के झुरमट की छांव में चारपाई डाल दी गई और मैं वही लेट गया, कुछ देर बाद गांव का भृमण लोगों से बातचीत जो बहुत सी कहानियां जहन में बुन लाई है, कभी कहूंगा….








अंत में डूबते सूरज की करनाली मोहाना में पड़ती लालिमा लिए हुए परछाई के संग संग हम उस खूबसूरत इलाके को अलविदा कह आए, इस बार भी वही ट्रैक्टर नाव साइकल मोटरसाइकल हमारे संगी रहे यातायात में, पूरी टीम में उल्ल्हास था, ग्रामीणों में खुशी, सबने फिर बुलाया है जल्द पहुंचूंगा भारत की इस श्रीलंका में, और आखिर में कृतज्ञता व्यक्त करूँगा छोटे भाई डॉ सौरभ, डॉ तनवीर डॉ आलोक कुमार पीएचसी तिकोनिया, बड़े भाई जनार्दन, अशोक कश्यप, छोटे भाई फोटोग्राफर अवनीश अवस्थी और सभी स्थानीय लोगों का जिनके नाम याद नही पर शक्लें झन में पैबस्त है, की जिन्होंने मरीज देखने दवाएं बांटने से लेकर इन दुरूह रास्तों पर दवाओं के बड़े बड़े डिब्बों को अपने हाथों से ढोया है, माँ का आशीर्वाद बना रहे ईश्वर सद्बुद्धि देता रहे, हम सब यूं ही लोगों के दुःख दर्द साझा करते रहेंगे...यह सिर्फ स्वास्थ्य शिविर नही हम दिलों को जोड़ने निकले है, दवा के साथ स्नेह का रिश्ता बनाने…..हम सिर्फ मुफ्त में दवा नही बांटते प्यार भी बांटते हैं और बदले में दुआएं ले आते झोली भर भर के...🙏🌺

जय हिंद 


सभी तस्वीरें साभार: अवनीश अवस्थी (शगुन फ़ोटो स्टूडियो लखीमपुर खीरी)


कृष्ण 

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