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Mar 22, 2018

युद्ध और शांति के बीच जल

अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस -2018 पर विशेष 

( प्रख्यात पानी कार्यकर्ता श्री राजेन्द्र सिंह के वैश्विक जल अनुभवों पर आधारित एक श्रृंखला)

प्रस्तुति : अरुण तिवारी

यह दावा अक्सर सुनाई पड़ जाता है कि तीसरा विश्व युद्ध, पानी को लेकर होगा। मुझे हमेशा यह जानने की उत्सुकता रही कि इस बारे में दुनिया के अन्य देशों से मिलने वाले संकेत क्या हैं ? मेरे मन के कुछेक सवालों का उत्तर जानने का एक मौका हाल ही में मेरे हाथ लग गया। प्रख्यात पानी कार्यकर्ता श्री राजेन्द्र सिंह, पिछले करीब ढाई वर्ष से एक वैश्विक जलयात्रा पर हैं। इस यात्रा के तहत् वह अब तक करीब 40 देशों की यात्रा कर चुके हैं। यात्रा को  'वर्ल्ड पीस वाटर वाॅक' का नाम दिया गया है। मैने श्री राजेन्द्र सिंह से निवेदन किया और वह मेरी जिज्ञासा के संदर्भ में अपने वैश्विक अनुभवों को साझा करें और वह राजी भी हो गए। मैने, दिनांक 07 मार्च, 2018 को सुबह नौ बजे से गांधी शांति प्रतिष्ठान के कमरा नंबर 103 में उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं श्री राजेन्द्र सिंह जी से हुई बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश :

भाग एक : क्या जल विश्व युद्ध की शुरुआत हो चुकी ?

प्र. - इस वक्त जो मुद्दे अंतर्राष्ट्रीय तनाव की सबसे बड़ी वजह बनते दिखाई दे रहे हैं, वे हैं - आतंकवाद, सीमा विवाद और आर्थिक तनातनी। निःसंदेह, संप्रदायिक मुद्दों को भी उभारने की कोशिशें भी साथ-साथ चल रही हैं। स्वयं को राष्ट्रवादी कहने वाली ताक़ते अपनी सत्ता को निवासी-प्रवासी, शिया-सुन्नी, हिंदू-मुसलमां जैसे मसलों के उभार पर टिकाने की कोशिश कर रही हैं। ऐसे में यह कथन कि तीसरा विश्व युद्ध, पानी को लेकर होगा; आगे चलकर कितना सही साबित होगा ?

उ. - पूरी दुनिया में वाटर वार की यह जो बात लोग कह रहे हैं; यह निराधार नहीं है। पानी के कारण अतंर्राष्ट्रीय विवाद बढ़ रहे हैं। विस्थापन, तनाव और अशांति के दृश्य तेजी से उभर रहे हैं। ये दृश्य, काफी गंभीर और दर्द भरे हैं। पिछले कुछ वर्षों मंे पानी के संकट के कारण खासकर, मध्य एशिया और अफ्रीका के देशों से विस्थापन करने वालों की तादाद बढ़ी है। विस्थापित परिवारों ने खासकर यूरोप के जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम पुर्तगाल, इंग्लैण्ड फ्रांस, नीदरलैण्ड, डेनमार्क, इटली और स्विटज़रलैंड के नगरों की ओर रुख किया है। अकेले वर्ष 2015 में मध्य एशिया और अफ्रीका के देशों से करीब 05 लाख लोग, अकेले यूरोप के नगरों में गये हैं। जर्मनी की ओर रुख करने वालों की संख्या ही करीब एक लाख है। जर्मनी, टर्की विस्थापितों का सबसे बड़ा अड्डा बन चुका है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, यूरोप के नगरों की ओर हुए यह अब तक के सबसे बड़े विस्थापन का आंकड़ा है।

गौर करने की बात है कि विस्थापित व्यक्ति, रिफ्यूज़ी का दर्जा हासिल करने के बाद ही संबंधित देश में शासकीय कृपा के अधिकारी बनता है। अंतर्राष्ट्रीय स्थितियां ऐसी हैं कि विस्थापितों को रिफ्यूज़ी का दर्जा हासिल करने के लिए कई-कई साल लंबी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। परिणाम यह है कि जहां एक ओर विस्थापित परिवार, भूख, बीमारी और बेरोज़गारी से जूझने को मज़बूर हैं, वहीं दूसरी ओर जिन इलाकों विस्थापितों  वे विस्थापित हो रहे हैं; वहां क़ानून-व्यवस्था की समस्यायें खड़ी हो रही हैं। सांस्कृतिक तालमेल न बनने से भी समस्यायें हैं। 

यूरोप के नगरों के मेयर चिंतित हैं कि उनके नगरों का भविष्य क्या होगा ? विस्थापित चिंतित हैं कि उनका भविष्य क्या होगा ? पानी की कमी के नये शिकार वाले इलाकों के लेकर भावी उजाड़ की आशंका से चिंतित हैं। 17 मार्च को बाज्रील की राजधानी में एकत्र होने वाले पानी कार्यकर्ता चिंतित हैं कि अर्जेंटीना, ब्राजील, पैराग्वे, उरुग्वे जैसे देशों ने 04 लाख, 60 हज़ार वर्ग मील में फैले बहुत बड़े भूजल भण्डार के उपयोग का मालिकाना अगले 100 साल के लिए कोक कोला और स्विस नेस्ले कंपनी को सौंपने का समझौता कर लिया है। भूजल भण्डार की बिक्री का यह दुनिया में अपने तरह का पहला और सबसे बड़ा समझौता है। इस चैतरफा चिंता ने मिलकर भिन्न समुदायों और देशों के बीच तनाव और अशांति बढ़ा दी है। 

आप देखिए कि  20 अक्तूबर, 2015 को टर्की के अंकारा में बम बलास्ट हुआ। 22 मार्च को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस मनाया जाता है। 22 मार्च, 2016 को जब बेल्ज़ियम के नगरों में वाटर कन्वेशन हो रहा था, तो बेल्ज़ियम के ब्रूसेल्स में विस्फोट हुआ। शांति प्रयासों को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई। उसमें कई लोग मारे गये। 19 दिसम्बर, 2016 को बर्लिन की क्रिश्चियन मार्किट में हुए विस्फोट में 12 लोग मारे गये और 56 घायल हुए। यूरोपियन यूनियन ने जांच के लिए विस्थापित परिवारों को तलब किया। ऐसा होने पर मूल स्थानीय नागरिक, विस्थापितों को शक की निगाह से देखेंगे ही। शक हो, तो कोई किसी को कैसे सहयोग कर सकता है ? 

विस्थापितों को शरण देने के मसले पर यूरोप में भेदभाव पैदा हो गया है। पोलेण्ड और हंगरी ने किसी भी विस्थापित को अपने यहां शरण देने से इंकार कर दिया है। चेक रिपब्लिक ने सिर्फ 12 विस्थापितों को लेेने के साथ ही रोक लगा दी। यूरोपियन कमीशन ने इन तीनों के खिलाफ का क़ानूनी कार्रवाई शुरु कर दिया है। ब्रूसेल्स और इसकी पूर्वी राजधानी के बीच, वर्ष 2015 के शुरु में ही सीरियाई विस्थपितों को लेकर लंबी जंग चल चुकी है। इटली और ग्रीक जैसे तथाकथित फ्रंटलाइन देश, अपने उत्तरी पड़ोसी फ्रांस और आॅस्ट्रेलिया को लेकर असहज व्यवहार कर रहे हैं। कभी टर्की और जर्मनी अच्छे संबंधी थे। जर्मनी, विदेशी पर्यटकों को टर्की भेजता था। आज दोनो के बीच तनाव दिखाई दे रहा है। यूरोप के देश अब राय ले रहे हैं कि विस्थापितों को उनके देश वापस कैसे भेजा जाये। अफ्रीका से आने वाले विस्थापितों का संकट ज्यादा बढ़ गया है। तनाव और अशांति होगी ही।

प्र. - इस तनाव और अशांति के मूल में पानी ही है। यह बात साबित करने के लिए आपके पास क्या तथ्य हैं ?

उ. - यह साबित करने के लिए मेरे पास तथ्य ही तथ्य हैं। दक्षिण अफ्रीका के नगर - केपटाउन के गंभीर हो चुके जल संकट के बारे में आपने अख़बारों में पढ़ा ही होगा। संयुक्त अरब अमीरात के पानी के भयावह संकट के बारे में भी खबरें छप रही हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व जल विकास रिपोर्ट में आप जल्द ही पढ़ेंगे कि दुनिया के 3.6 अरब लोग यानी आधी आबादी ऐसी है, जो हर साल में कम से कम एक महीने पानी के लिए तरस जाती है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पानी के लिए तरसने वाली ऐसी आबादी की संख्या वर्ष 2050 तक 5.7 अरब पहुंच सकती है। 2050 तक दुनिया के पांच अरब से ज्यादा लोग के रिहायशी इलाकों में पानी पीने योग्य नहीं होगा। मैं सबसे पहले यहां सीरिया के बारे में कुछ तथ्य रखूंगा।....................... 

अरुण तिवारी
146, सुंदर ब्लाॅक, शकरपुर, दिल्ली - 110092
9868793799

बातचीत का अगला हिस्सा, भाग - 02 में 
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