वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Oct 3, 2014

विश्व प्रकृति दिवस 3 अक्टूबर पर विशेष




बाँदा – सरकारी दस्तावेजो से निकली 3 अक्तूबर की तारीख एक बार फिर आ गई  विश्व प्रकृति दिवस है आज पूरी दुनिया में आज के दिन प्रकृति को बचाने , उसे सुन्दर और अपनी गतिविधि को प्रकृति सम्यक बनाने की पुनः कसमे खाई जाएगी 

बुंदेलखंड भी तो अपना प्राकृतिक रूप से खुशहाल था न इतिहास पलटे तो यहाँ भी चन्देल कालीन स्थापित किले और मंदिर हरे – भरे जंगलो और सीना ताने पहाड़ो के मध्य ही बने थे  लेकिन कंक्रीट के विकास की रफ़्तार इतनी तेज हो गई कि हमने प्रकृति के साथ न सिर्फ बलात्कार किया बल्कि उसकी अस्मिता पर ही आज प्रश्न चिन्ह लगा दिया है l बुंदेलखंड के खजुराहो और कालिंजर के अवशेष कभी इसलिए ही ख्यातिप्राप्त स्तम्भ थे क्योकि उनको पर्यावरणीय नजर से सम्रध पाया गया था मगर अब यहाँ परती होती कृषि जमीने,प्राकृतिक संसाधनों के उजाड़ ने इसको सूखा और नदी – पहाड़ो के खनन की मंडी के रूप में स्थापित कर दिया है  एक सर्वे के मुताबिक इस प्राकृतिक उजाड़ के खेल में पल रहे है 8500 बाल श्रमिक जिनके हाथो में बस्ता नही हतौड़ा है lसात जनपद में तेजी से जंगल का प्रतिशत घट कर 7 फीसदी से कम है तो वही 200 मीटर ऊँचे पहाड़ो को 300 फुट नीचे तक गहरी खाई में तब्दील कर दिया गया है बुंदेलखंड में इस वर्ष 19 वा सूखा है l पानी का एक्यूप्रेशर कहे जाने वाले पहाड़ अब देखने में डरावने लगते है  पर यह सब प्रकृति की तबाही जारी है क्योकि हमें विकास करना है ! एक ऐसा अंधा विकास जो बुंदेलखंड को रेगिस्तान बना देगा  चित्रकूट,महोबा और झाँसी , ललितपुर यहाँ काले पत्थर के खनन और बाँदा,हमीरपुर,जालौन लाल बालू के लिए मशहूर है  एनजीटी , सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय इलाहाबाद के कई आदेश इस प्रकृति विरोधी कार्य के लगाम लगाने में जारी हुए पर थक हारकर उसकी लड़ाई लड़ने वाले या तो खामोश हुए या करा दिए गए  ठेठ हिंदी पट्टी के केन , यमुना,मंदाकनी,बेतवा,पहुंज,धसान,उर्मिल,चन्द्रावल,बागे नदियों की कभी अविरल धार में खेलता बुंदेलखंड आज समसामयिक द्रष्टि से किसान आत्महत्या और जल संकट के लिए अधिक पहचाना जाता है 




सरकारी तंत राजस्व की आड़ में चुप है और प्रकृति के दुश्मन बेख़ौफ़ है आंकड़ो में निगाह डाले तो बुंदेलखंड के हिस्से कुल 1311 खनन पट्टे है  जिसमे 1025 चालू और 86 रिक्त है वही पुरे उत्तर प्रदेश में ये सूरत 3880 खदान पर है जिसमे 1344 खनन पट्टे चालू है बालू और पत्थर के खनन के लिए वनविभाग की एनओसी लेनी होती है कानून का राज बुंदेलखंड में नही चलता, यहाँ लोग प्रगतिशील किसान नही खनन माफिया कहलाना अधिक पसंद करते है l बकौल बाँदा जिले के तिंदवारी से कांग्रेस के विधायक दलजीत सिंह खुद कहते है ‘ हाँ मै बालू माफिया हूँ और गुंडा टैक्स भी देता हूँ  

इसके ठीक उलट एक गाँव का कर्जदार किसान गर्व से यह नही कह पाता कि हाँ मै कर्ज के मकड़ जाल में फंसा हूँ  और समय से कर्ज अदा करता हूँ क्योकि उसको तो प्रकृति के विनाश से ख़ुदकुशी ही मिलनी है दबंग , दादू विनाशकारी ताकतों की बदौलत 


सामाजिक कार्यकर्ता - आशीष सागर दीक्षित,बाँदा   
 ashishdixit01@gmail.com

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