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Oct 20, 2014

दुधवा में हिमरानी गैंडा की हुई मौत


दुधवा के गैंडा परिवार को चैथी पीढ़ी तक पहुंचाने में रहा योगदान


दुधवा में मादा गैंडा हिमरानी का पोस्टमार्टम करते डाक्टर

दुधवा नेशनल पार्क से देवेंद्र प्रकाश मिश्रा की रिपोर्ट

पलियाकलां-खीरी। दुधवा नेशनल पार्क में चल रही गैंडा पुर्नवास परियोजना की फाउंडर मेम्बर मादा गैंडा हिमरानी की बीमारी की चलते असमय मौत हो गई। इसके कारण दुधवा परिवार में शोक की लहर दौड़ गई। तीन डाक्टरों के पैनल से शव का पोस्टमार्टम कराया गया। बेलरायां वार्डन ने अपनी देखरेख में हिमरानी के शव को दफन करवा दिया।

दुधवा नेशनल पार्क में एक अप्रैल 1984 को विश्व की पहली गैंडा पुर्नवास परियोजना शुरू की गई थी। तब हिमरानी नामक मादा गैंडा को आसाम से यहां लाया गया था। लगभग चालिस वर्ष की आयु पूरी कर चुकी हिमरानी को बीते दिवस मानीटरिंग के दौरान बीमारी की स्थिति में सुस्त देखा गया था।

 दुधवा पार्क प्रशासन द्वारा उसके उपचार की कोई व्यवस्था की जाती इससे पहले ही बीती रात उसकी असमय मौत हो गई। इसकी सूचना से दुधवा परिवार में शोक दौड़ गई। दुधवा टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर वीके सिंह ने बताया कि डब्ल्यूटीआई के पशु चिकित्सक डाॅ सौरभ सिंघई, राजकीय पशु चिकित्सालय परसिया के डाॅ नीरज कुमार तथा दुधवा की प्रतिनिधि डाॅ नेहा सिंघई द्वारा हिमरानी के शव का पोस्टमार्टम कराया गया है। इस दौरान डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के गैंडा विशेषज्ञ रोहित रवि भी मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि हिमरानी ने पांच बच्चों को जन्म देकर दुधवा के गैंडा परिवार को चैथी पीढ़ी में पहुंचाया है।

 बेलरायां वार्डन एनके उपाध्याय की देखरेख में हिमरानी के शव को दफन किया गया। उल्लेखनीय है कि दिसम्बर 2012 में बाघ ने हमला करके हिमरानी गैंडा को बुरी तरह से जख्मी कर दिया था। तब डब्ल्यूटीआई के डाॅ सौरभ सिंघई एवं डाॅ नेहा सिंघई आदि ने अथक प्रयास करके उसे मौत के चंगुल से बचा लिया था। डीडी वीके सिंह ने चालिस वर्षीय हिमरानी की मौत पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए बताया कि वह दुधवा के गैंडा परिवार की सबसे बुजुर्ग सदस्य थी उसने यहां के गैंडा परिवार को चैथी पीढ़ी तक पहुंचाया उसके इस योगदान को दुधवा के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा।
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मादा गैंडा हिमरानी 

हिमरानी से चैथी पीढ़ी में पहुंचा दुधवा का गैंडा परिवार
बाघ के हमला से एक बार बची थी उसकी जान
दुधवा के गैंडा परिवार की थी सबसे बुजुर्ग सदस्य


दुधवा नेशनल पार्क के गैंडा परिवार को चैथी पीढ़ी तक पहुंचाने वाली फांउडर मेम्बर मादा गैंडा हिमरानी की असमय मौत से गैंडा पुर्नवास परियोजना को करारा झटका लगा है। हालांकि उसके जवान पांच बच्चों के तीस सदस्यीय गैंडा परिवार दुधवा के जंगल में स्वच्छंद विचरण कर रहा है जो यहां आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण के केन्द्र बिन्दु होते हैं। 


तराई इलाका के मैदानों से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा को फिर से उनके पूर्वजों की धरती पर बसाने की दुधवा नेशनल पार्क में विश्व की एकमात्र दुधवा पुर्नवास परियोजना चल रही है। एक अप्रैल 1984 को शुरू की गई इस परियोजना में आसाम से छह गैंडा को लाया गया था। इसमें से तीन गैंडों की असमय मौत हो जाने पर सोलह हाथी के बदले छह गैंडा नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान से लाया गया था। उतार-चढ़ाव के तमाम झंझावतों को झेलने के बाद भी गैंडा पुर्नवास परियोजना सफलता के फायदान पर चढ़ रही है। हालांकि पितामह नर गैंडा वार्क से ही सभी सतानें हुई हैं, इसके कारण दुधवा के गैंडा परिवार पर आनुवंशिक प्रदूषण यानी इनब्रीडिंग का खतरा मंडरा रहा है। इससे निपटने के लिए बाहर से अन्य गैंडों का यहां लाया जाना आवश्यक बताया जा रहा है।

 दुधवा नेशनल पार्क की सोनारीपुर दक्षिण रेंज के 27 वर्गकिमी जंगल को ऊर्जाबाड़ से संरक्षित इलाका के पास ही गैंडों के लिए नया प्राकृतिक आवास तैयार किया गया है। इसमें आसाम से गैंडा लाने की योजना है, जो शासन में विचाराधीन चल रही है। दुधवा के गैंडा परिवार को बीती रात तब करारा झटका लग गया जब सबसे बुजुर्ग मादा गैंडा हिमरानी की बीमारी के चलते असमय मौत हो गई। चालिस बंसत देख चुकी हिमरानी ने चार मादा एवं एक नर बच्चे को जन्म देकर परियोजना को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसमें हिमरानी से पैदा हुए राजश्री, विजयश्री, राजरानी, सहदेव एवं हेमवती दुधवा के गैंडा परिवार की वंशवृद्धि कर रहे हैं। राजश्री ने दो तथा हेमवती ने एक बच्चे को जन्म देकर दुधवा के गैंडा परिवार की वंशवृद्धि कर रहे हैं। हिमरानी की नाक का छोटा सींग ही उसकी पहचान भी था।

 संकटकाल में गैंडा अपने सींग के घातक प्रहार दुश्मन पर करके अपनी सुरक्षा करते हैं। चूंकि हिमरानी का सींग छोटा था, इसीलिए दिसम्बर 2012 में दुधवा के इतिहास में पहली बार बलशाली बाघ ने उसपर पीछे से हमला करके गंभीर रूप से घायल कर दिया था। कड़े पहरा और सुरक्षित बाड़ा में चले उपचार के दौरान हिमरानी ने मौत को पराजित कर नई जिंदगी हासिल कर ली और फिर से जंगल मे स्वच्छंद घूमने लगी थी। दुधवा टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर वीके सिंह ने बताया कि गैंडों की अनुमानित आयु 36 से 40 साल के बीच मानी जाती है। बाघ के हमला से तो हिमरानी की जान प्रयास करके बचा ली गई थी। लेकिन इस बार वह कुदरत की मौत से हार गई।
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देवेन्द्र प्रकाश मिश्र 
dpmishra7@gmail.com

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