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Oct 8, 2012

बार्डर पर राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन की गणना शुरू


'माई गंगा माई डॉल्फिन अभियान में दो दिन में मिलीं ६९ सूंस 

 इंडो-नेपाल की गेरूआ व कौडिय़ाला नदी में शुरू हुई डॉल्फिन की गणना, व गणना के दौरान यूं उछलती मिलीं डॉल्फिन ।


भारत-नेपाल की सीमा पर बहने वाली गेरूआ व कौडिय़ाला नदी में भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन की गणना शुक्रवार को शुरूआत हो गई। पांच से सात अक्टूबर के बीच 'माई गंगा माई डॉल्फिन अभियान के तहत शुरू हुए इस गणना कार्यक्रम में पहले दिन टीम को ३९ डॉल्फिन इन नदियों में मिली हैं। वहीं दूसरे दिन बहराइच-खीरी के बार्डर पर बहने वाली घाघरा नदी में गैंगटिक डॉल्फिन की गणना की शुरूआत हुई, जिसमें टीम को ३० डॉल्फिन मिलने की पुष्टि हुई है। इस नतीजे से गणना में लगीं डब्ल्यूडब्ल्यूएफ व वन महकमें की टीमें काफी उत्साह में हैं।

गंगा नदी का बाघ कही जाने वाली डॉल्फिन को सूंस व हीहू? भी कहा जाता है। पिछले कुछ दशकों में तेजी से घट रही इनकी संख्या को देखते हुए चिंतित हुई सरकार व जिम्मेदार लोगों ने जब सर्वे कराया तो पता चला कि गंगा नदी में तीन दशक पहले तक छह हजार से ज्यादा डॉल्फिन थीं, लेकिन औद्योगिककरण की बाढ़ से इन नदियों में कचरा बढ़ा व जल प्रदूषण के चलते डॉल्फिन की संख्या में साल दर साल गिरावट आती गई। अब यहां महज दो हजार से भी डॉल्फिन के पाए जाने का अनुमान है।

पांच अक्टूबर २००९ राष्ट्रीय जलीय जीव का मिला दर्जा
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भारत सरकार ने डॉल्फिन  को बचाने के लिए इसे पांच अक्टूबर २००९ को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। प्रदेश में अखिलेश सरकार ने इसे बचाने व इनकी वास्तविक तादात जानने में उत्सुकता दिखाई। इसी के चलते लोगों को जागरूक करने के लिए  डब्ल्यूडब्ल्यूएफ समेत वन विभाग व एनजीओ के माध्यम से २८०० किमी क्षेत्र में 'माई गंगा माई डॉल्फिन अभियान चलाया।

लखनऊ में विभागीय मंत्री ने की शुरूआत

तीन दिनी इस अभियान की शुरूआत लखनऊ में परिवहन मंत्री राज अरिदमन सिंह ने की। इसके साथ ही भारत नेपाल सीमा की सीमा पर बीने वाली गेरूआ नदी से गणना कार्यक्रम की शुरूआत हो गई।

मीठे पानी की रानी है डॉल्फिन

कौडिय़ा व गेरूआ नदी का पानी दूसरी नदियों की अपेक्षा काफी साफ व प्रदूषण रहित व मीठा है। इसलिए इन नदियों में इनका प्राकृतिक वासस्थल पाया जाता है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के परियोजना अधिकारी दबीर हसन की अगुवाई में एलके स्टीफेंस अधिकारी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ समते छह सदस्सीय टीम इस अभियान में लगी रही। कि २० जून २००७ को हुई गणना में कुल ४८ डॉल्फिन मिली थीं। पहले दिन अभियान गिरिजापुरी के चौ.चरण सिंह बैराज के एक छोर पर खत्म हुआ। दूसरे छोर से  घाघरा नदी में अपने अभियान की शुरूआत करते हुए जालिम नगर डाबर घाट होकर सीतापुर की सीमा पर जाकर थमा।

.....तो ये है सूंस की गणना का तरीका

दबीर हसन बताते हैं कि डॉल्फिन की सामान्य चाल पौने पांच से पांच किमी प्रति घंटा होती है, इसलिए मोटरबोट को ७ से १० किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से लेकर चलते हैं, इस दौरान नदी में मौजूद डॉल्फिन पानी से बाहर सांस लेने के लिए हर तीन मिनट के करीब बाहर आकर उछलती है, इसी जम्प लेने के दौरान डॉल्फिन की गिनती होती जाती है।


गणना के साथ ही चला जागरूकता अभियान

नदी के किनारे रहने वाले मछुवारों से टीम ने कहा कि वह नॉयलान का जाल न इस्तेमान करें, क्यों कि यह जीव अंधा माना जाता है, डॉल्फिन अल्ट्रॉसॉनिक तरंगों से पानी में आगे का रास्ता तय करती है, लेकिन नायलान के जाल से ये तरंगे आरपार हो जाती है, जिससे यह जाल में फंस जाती है। नदी में मिलने वाली छोटी मछलियों को खाकर यह जीव नदी का संतुलन बनाए रखती है।
भारत के अलावा बंगलादेश, नेपाल, की नदियों में डॉल्फिन की खासी तादात पाई जाती है।

अब्दुल सलीम खान


1 comment:

  1. Dolphin's census is very good step by the wwf and this is proud moment for us that it has been found in and around our lakhimpur kheri'rivers. But the peoples who are not aware with it that dolphins found in our rivers now they all know. So it also ecrourges poachers to hunt or kill the dolphins.Now forest depot. and wwf should be taken strong steps to protect these innocent dolphin fish before its too late as our tigers are not safe in protected tiger reserve than these dolphins are in unprotected areas. Let us hope better for dolphins. -(URUJ SHAHID)

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