वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

Breaking

बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Sep 30, 2012

तू कितनी अच्छी है, तू कितनी प्यारी है....मां


इंसान ही नही पक्षियों में भी रहता है  'मां का दिल



कोयल के बच्चे को 'चूगा' देकर कौए दे रहे जिंदगी

- ऐ मां...तुझसे प्यारी सूरत भगवान की सूरत क्या होगी-गुलरिया में कोयल के बच्चे को 'चूगा' देता कौआ।

अब्दुल सलीम खान
बिजुआ(लखीमपुर)।  'कौआ और कोयल, के स्वभाव व बोली में एक दूसरे से मुखालफत से दुनिया बावस्ता है, लेकिन इन पर एक मां की ममता भारी है, इनकी न सिर्फ स्वभाव व बोली एक दूसरे  से जुदा है, बल्कि इनकी फैमिली तक अलग अलग है। लेकिन यहां एक कोयल के बच्चे के लिए कौआ मां का फर्ज निभा रहा है। कौआ अपनी चोंच से कोयल के बच्चे को चूगा देकर मां का फर्ज निभा रहा है।

मां का दिल आखिर मां का ही है, वह न जाति देखता है और न ही वर्ग, उसे तो सिर्फ अपने बच्चे से ही प्यार है। देख लीजिए न गुलरिया गांव में मेरे घर पर हर रोज कोओं का झुंड (हाउस क्रो) अपने साथ एक कोयल (एशियन कोयल) के मादा चूजे को लेकर आता है, इस झुंड में शामिल दो कौए इस कोयल के बच्चे को अपनी चोंच से चूगा देते हैं। कभी एक कौआ अपनी चोंच में पानी भरकर लाता है तो दूसरा कौआ रोटी के टुकड़े का चूगा कोयल के बच्चे को देता है।



दोनो पक्षियों में है काफी भिन्नताएं।
कौआ व कोयल में काफी भिन्नतांए होती हैं, ये दो  अलग अलग प्रजातियां  हैं। कौवे  की फैमिली कर्वडी व जंतु वैज्ञानिक नाम कर्वस स्पलेन्डेन्स होता है, वहीं कोयल की फैमिली क्यूकूलिडी व जंतु वैज्ञानिक नाम यूडीनैमिष स्कोलोपेसियय होता है। प्रजातियों में विभिन्नता होने के बावजूद  और एक दूसरे से   रंग रूप में  विपरीत नजर आने वाले इन पक्षियों में मां की ममता में कोई बदलाव नही है।



"कोयल जिसे संस्कृत में कोकिला कहते है, मानव द्वारा  इतिहास के दस्तावेजों में यह पक्षी बहुत पहले से दर्ज है, खासतौर से  भारत  में ।  इसके व्यवहार का अध्ययन हजारों वर्ष पूर्व हमारे लोगों ने किया जिसका ख़ूबसूरत वर्णन वेदों से लेकर तमाम   लोक कथाओ एवं लोक गीतों में किया  गया है । इस पक्षी के ब्रूड पैरासिटिज्म की जानकारी भी थी उन्हें, यानी कोयल का अपने अंडो को कौओं  के घोसले में रख देना अर्थात कोयल की संतति को कौओ  द्वारा पालना (एक प्रजाति की संतति को दूसरी प्रजाति द्वारा पालना ) यह हुआ  brood parasitism.

दुनिया की सभी जातियों में मातृत्व का भाव सार्वभौमिक है, वह चाहे इंसान हो या फिर जानवर मातृत्व के मामले में जाति, वर्ग व कैटॉगरी मायने नही रखती। गुलरिया में दिखा यह नजारा वास्तव में मां की ममता का सबसे खूबसूरत पहलू है।"
-----केके मिश्रा, वन्यजीव प्रेमी
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
अब्दुल सलीम खान( लेखक लखीमपुर खीरी जनपद के गुलारिया गांव से ताल्लुक रखते हैं जंगल व् जीवों के तमाम किस्सों की बेहतरीन किस्सागोई अपनी कलम के जरिए उत्तर प्रदेश के नामी अखाबारात में करते आये हैं। पेशा पत्रकारिता,   इनसे salimreporter.lmp@gmail.com  पर संपर्क  कर सकते हैं।   )




1 comment:

  1. हाँ माँ यही कहानी। वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे, हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।" "लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।".......माँ का स्थान विश्व में कोई नहीं ले सकता !!!

    ReplyDelete

आप के विचार!

जर्मनी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार "द बॉब्स" से सम्मानित पत्रिका "दुधवा लाइव"

हस्तियां

पदम भूषण बिली अर्जन सिंह
दुधवा लाइव डेस्क* नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह

एक ब्राजीलियन महिला की यादों में टाइगरमैन बिली अर्जन सिंह
टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

मुद्दा

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

दुधवा में गैडों का जीवन नहीं रहा सुरक्षित
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

Post Top Ad

Your Ad Spot