वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 5, 2011

बुन्देलण्ड में काले हिरणों पर मड़राता काला साया



 बुन्देलखण्ड में तबाह किए जा रहे जंगलों व नदियों से नष्ट होती जैव-विविधता 
...आंकड़ों के खेल में सरकारें बनी तमाशबीन ....
  बांदा, हमीरपुर व चित्रकूट जनपदों में ही बचे है काले हिरन-


 "काले हिरन यानी ब्लैक बक (Antilope cervicapra) शिकार के चलते विलुप्ति की कगार पर है, प्रवास संस्था के निदेशक आशीष दीक्षित "सागर" द्वारा एक पहल जिसमें ब्लैक बक की मौजूदा संख्या, उसके हालात जिनमें यह प्रजाति अपने को जवित रखने के लिए संघर्षरत है, का अध्ययन किया गया, बांदा जनपद, तहसील तिनवारी के गाँव गुखरई में अप्रैल २०१० में आशीष दीक्षित द्वारा काले हिरनों के लगभग ३०-३५ की संख्या वाले पाँच झुण्ड देखे गये, तकरीबन १५० काले हिरन, जबकि सरकारी आंकड़े काले हिरन की वास्तविक संख्या से बहुत कम बता  रहे है। तिनवारी तहसील के पचनेही, लामा, बेंदाघाट व गुखरई गाँवों में अभी भी काले हिरनों की मौजूदगी है, किन्तु अन्धाधुंध शिकार के चलते, व इन्हे ग्रामीणों द्वारा पालतू बनायें जाने के कारण इनका प्रजनन प्रभावित हो रहा है, जो इसकी तादाद को कम करने में महत्वपूर्ण कारण हैं। फ़िलवक्त इन्हे कोई सरकारी इमदाद नही मिल रही है, बावजूद इसके कि ये वाइल्ड लाइफ़ एक्ट १९७२ के तहत संरक्षित प्रजाति के अन्तर्गत आते हैं।" .. इस खूबसूरत प्रजाति की कथा-व्यथा  पर प्रस्तुत है आशीष दीक्षित सागर की एक रिपोर्ट-
 
वैश्विक भूमण्डलीकरण व जलवायु परिवर्तन से मचा हुआ चौतरफा हल्ला कोपेनहैगन से लेकर बुन्देलखण्ड की सरजमीन तक आ पहुंचा लेकिन हाल फिलहाल दूर दूर तक इससे उबरने के आसार दिखाई नहीं पड़ते हैं। वो भी ऐसे हालात में जबकि बेतरतीब पहाड़ों का खनन व उनमें प्रवास करने वाले वन्य जीव जन्तुओं का विस्थापन और घटते हुए वन क्षेत्र से भूगर्भ जलस्तर एवं पर्यावरण अपनी यथा स्थिति से तबाही की एक नई इबारत की तरफ लगातार बढ़ता चला जा रहा है। जन सूचना अधिकार 2005 से प्राप्त आंकड़ों पर गौर करें तो हालात बड़े नाजुक व संवेदनशील हैं, मगर क्या करें जब प्रशासन में बैठे बिचौलिये और सरकारें संवेदनहीन हो चुकी हैं, ऐसे में नक्कारखाने में ढोल पीटना खुद के सर फोड़ने जैसा है। गौरतलब है कि बुन्देलखण्ड के छः जनपदों में क्रमश: प्रभागीय वनाधिकारियों से जो तथ्य हासिल हुये हैं- वे पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग के लिये किस हद तक जिम्मेवार हैं, यह बानगी है इन आंकड़ों की पेशगी। 

जनपद बांदा-वन, पर्यावरण एंव जैव-विविधता- एक नज़र

    जनपद बांदा में ही कुल वन क्षेत्र 1.21 प्रतिशत शेष है जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी भी भू-भाग में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य रखा गया है। वहीं यहां 1995 से लेकर 2009 तक कुल 17 व्यक्तियों को वन्य जीव हिंसा अधिनियम के तहत जीवों पर हत्या के लिये दण्डित किया गया है। इनमें से 6 अपराधियों पर औपचारिक अर्थदण्ड की कार्यवाही करते हुए 10 व्यक्तियों का मामला अभी भी माननीय न्यायालय में विचाराधीन है, और 1 व्यक्ति बतौर मुल्जिम 2009 से फरार है। यहां विलुप्त होने वाले जीवों में चील, गिद्द, गौरेया व तेंदुआ है, इसके साथ-साथ दुर्लभ प्रजाति के काले हिरन जो कि बुन्देलखण्ड के सातों जनपद में सिर्फ बांदा, हमीरपुर व चित्रकूट में ही पाये जाते हैं की संख्या जनपद बांदा  में 59 है। जनपद चित्रकूट में 21.8 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यहां पायी जाने वाली अति महत्वपूर्ण वन औषधियां गुलमार, मरोड़फली, कोरैया, मुसली, वन प्याज, सालम पंजा, अर्जुन, हर्रा, बहेड़ा, आंवला और निर्गुड़ी हैं। वर्ष 2009 की गणना के मुताबिक यहां काले व अन्य हिरनों की कुल संख्या 1409 है। यहां का रानीपुर वन्य जीवन विहार 263.2283 वर्ग किमी0 के बीहड़ व जंगली परिक्षेत्र में फैला है जिसे कैमूर वन्य जीव प्रभाग मिर्जापुर की देखरेख में रखा गया है।



जनपद महोबा- वन, पर्यावरण एंव जैव-विविधता- एक नज़र

    जनपद महोबा में 5.45 प्रतिशत वन क्षेत्र है और यहां तेंदुआ, भेड़िया, बाज विलुप्त होने की कगार पर हैं। जनसूचना के अनुसार जनपद महोबा में काला हिरन नहीं पाया जाता है, तथा महत्वपूर्ण वन्य औषधियां सफेद मूसली, सतावर, ब्राम्ही, गुड़मार, हरसिंगार, पिपली यहां की मुख्य वन्य औषधि हैं जो कि अब विलुप्त होने की स्थिति में हैं। महोबा सहित पूरे बुन्देलखण्ड में वर्ष 2008-09 में विशेष वृक्षारोपण अभियान कार्यक्रम मनरेगा के तहत 10 करोड़ पौधे लगाये गये थे। इस जनपद के विभिन्न विभागों द्वारा 70.7 लाख पौध रोपण कार्य किया गया है। जिसमें कि 59.56 लाख पौध जीवित है। इस वृक्षारोपण में शीषम, कंजी, सिरस, चिलबिल, बांस, सागौन आदि के वृक्ष रोपित किये गये हैं। इसके साथ ही जनपद झांसी में 70.50 लाख का लक्ष्य रखा गया था। जिसके सापेक्ष 71.61 लाख वृक्षारोपण किया गया और वर्तमान में 65.744 लाख पौध जीवित है जो कि कुल पौधरोपण का 91.81 प्रतिशत है। ऐसा प्रभागीय वनाधिकारी डॉ0 आर0के0 सिंह का कहना है, कि महत्वपूर्ण तथ्य यह है, कि बुन्देलखण्ड के अधिकतर जनपदों ने इस तथ्य को छुपाया है कि उनके यहां कितने प्रतिशत पौधरोपण हुआ और कितना जीवित है। यह पूर्णतः सच है कि 10 करोड़ पौधे भी आकाल और पानी की लड़ाई लड़ने वाले बुन्देलखण्ड में जंगलो को आबाद नहीं कर सकी हैं। 

जनपद हमीरपुर- वन, पर्यावरण एंव जैव-विविधता- एक नज़र


जनपद हमीरपुर में कुल 3.6 प्रतिशत ही वन क्षेत्र शेष हैं यहां भालू, चिंकारा, चीतल, तेंदुआ, बाज, भेड़िया, गिद्ध जैसे वन्य जीव आज शिकारियों के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं। दुर्लभ प्रजाति का काला हिरन यहां के मौदहा कस्बे के कुनेहटा के जंगलों में ही पाया जाता है जिनकी संख्या सिर्फ 56 रह गयी है। जनपद जालौन में 5.6 प्रतिशत वन क्षेत्र है और यहां पर काले हिरन नहीं पाये जाते हैं। इस वन प्रभाग नें 1990 से लेकर 2010 तक वन्य जीव हिंसा में दण्डित किये गये सभी आरोपियों की अनुसूचि को जनसूचना में शायद इसलिये उजागर नहीं किया ताकि विलुप्त होते जंगल और जीवों की फेहरिस्त में अपराधियों का नाम दर्ज न हो। 

जनपद झांसी- वन, पर्यावरण एंव जैव-विविधता- एक नज़र 
प्राकृतिक स्रोतों का दोहन व पर्यावरण का प्रदूषण यहां फ़सलों को कर रहा है चौपट...


जनपद झांसी से मिली जानकारी के अनुसार कुल क्षेत्रफल 5024 वर्ग किमी0 है। अर्थात 502400 हेक्टेयर जिसका 33 प्रतिषत (165792) क्षेत्रफल 33420.385 हेक्टयेर अर्थात यहां पर कुल 6.66 प्रतिशत वन क्षेत्र शेष है इस प्रकार 26.34 प्रतिशत हेक्टेयर वन क्षेत्र शेष होना बाकी है। आंकड़ों की दौड़ कुछ भी बयान करती हो लेकिन यह एक जमीनी हकीकत है कि जनपद बांदा व महोबा के प्रभागीय वनाधिकारियों ने यह तो मान ही लिया है कि गिरते हुए जलस्तर, बढ़ते हुए तापमान, घटते हुए वन के साथ दुर्लभ प्रजाति के वन जीवों का विलुप्त होना और पहाड़ों के खनन से उनका विस्थापन पर्यावरण के लिये आसन्न भयावह स्थिति के सूचक हैं। हमारे वातावरण में विभिन्न औद्योगिक निर्माण इकाईयों, प्रदूषित जीवन शैली से बढ़ रहे उपकरण व वस्तुओं के प्रयोग से उत्पन्न होने वाला अपशिष्ट अवयवों के निरन्तर घुलने से पारिस्थिकीय तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। ग्रीन हाउस गैसे का निरन्तर उत्सर्जन व तापमान में वृद्धि भविष्य में मानव रहित वन्य जीवन के अस्तित्व की कठिन समस्या के रूप में प्रकट होकर जलवायु परिवर्तन का एक मात्र कारण बनेगा प्रभागीय वन अधिकारी बांदा, नुरूल हुदा का मानना है कि प्राकृतिक छेड़छाड़ से बायोडायवरसिटी, (जैविक विविधता) असन्तुलित होकर मानव अस्मिता पर प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा कर देगी। इसका ताजा-तरीन उद्धरण है, कि इस वर्ष बुन्देलखण्ड के समस्त सातों जनपद में पिछली अधिक वर्षा के बाद भी खेतों में उपज के फलस्वरूप पैदा हुआ अनाज बीज की लागत के अनुरूप न होकर बहुत ही पतला और स्वादहीन है। एक दो नहीं ऐसे सैकड़ों किसान इस बात की गवाही देते नजर आते हैं कि कहीं न कहीं प्रकृति की बनावट से खिलवाड़ और वातावरण में मनुष्य का अधिक हस्तक्षेप आज उसकी ही असमाधानहीन समस्या का विकराल रूप ले चुका है। जिसके स्थायी समाधान ढूढ पाना सम्भवतः आने वाली पीढ़ी के लिये अतिष्योक्ति पूर्ण कार्य होगा।

‘‘जंगल को जिन्दा रहने दो, नदियों को कल कल बहने दो’’

आशीष दीक्षित "सागर" (लेखक सामाजिक कार्यकर्ता है, वन एंव पर्यावरण के संबध में बुन्देलखण्ड अंचल में सक्रिय, प्रवास संस्था के संस्थापक के तौर पर, मानव संसाधनों व महिलाओं की हिमायत, पर्यावरण व जैव-विविधता के संवर्धन व सरंक्षण में सक्रिय, चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय से एम०एस० डब्ल्यु० करने के उपरान्त भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के उपक्रम कपाट में दो वर्षों का कार्यानुभव, उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद में निवास, इनसे ashishdixit01@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं) 
 

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