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International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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Dec 29, 2010

मेरी बाते दोहराती है, जो गाती हूँ वह गाती है !

छायाचित्र: गौरैया  © कृष्ण कुमार मिश्र  2010
सभ्यता नई सिखलाती है
-लवकुश मिश्र

गौरैया गुपचुप आती क्यों
दर्पण में चोच लड़ाती क्यों

पतझड़ का मौसम आया तो
पीपल ने पात गिराया तो

गौरैया का घर टूट गया
पीपल से नाता टूट गया

अब नई गृहस्थी रचे कहाँ
बच्चों से अण्डे बचें जहाँ

सहसा दर्पण पर आँख पड़ी 
भोली गौरैया चौक पड़ी

ये दुष्ट यही रहती है क्या 
सर्दी गर्मी सहती है क्या!

मैं आती हूँ तब आती है
मैं जाती हूँ तब जाती है

मेरी बाते दोहराती है
जो गाती हूँ वह गाती है

मैं कहती हूँ घर रचे साथ
सर्दी-गर्मी से बचे साथ

गौरैया अपनी छाया को
दर्पण में बैठी काया को

घोसला नया दिखलाती है
सभ्यता नई सिखलाती है

("लवकुश मिश्र" -लेखक धर्म सभा इण्टर कालेज लखीमपुर खीरी में शिक्षक हैं।}

इस कविता की कुछ पंक्तियां  कभी अपने एक पत्रकार साथी विकास सहाय से सुनी थी, संयोग से गौरैया और दर्पण की किस्सागोई के चित्र भी मुझे प्राप्त हो गये जिसे एक नर गौरैया ने बड़ी संजीदगी से अपनी विभिन्न भावमुद्राओं में  छायांकन का मौका मुझे दिया, जिनमें से एक मुद्रा का छायाचित्र इस कविता के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह कविता जो इस चिड़िया के मार्फ़त हमसे इन्सानी जिन्दगी (फ़ितरत) की कहानी बयां कर रही है, सहज शब्दों में जिनमें सदियों पुरानी दार्शनिकता परिलक्षित होती है ! जिसे आप सब से साझा कर रहा हूँ।

कृष्ण कुमार मिश्र
मॉडरेटर
दुधवा लाइव   

4 comments:

  1. कविता के साथ मनमोहक चित्र भी

    बढ़िया

    ReplyDelete
  2. घोसला नया दिखलाती है
    सभ्यता नई सिखलाती है.nice

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  3. athi utham!!
    www.iseeebirds.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. bahut din ke baad dudhwalive per achcha padhne ko mila hai...achchi kawita hai lovekush jee ko hame jante hain....bahut achche insan hain wo...unnke lekhan ka ab pata chala......vivek

    ReplyDelete

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