वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jun 30, 2022

दुधवा के बाघों के लिए मेरा वकालतनामा...

पिजड़े में कैद हुआ एक और बाघ/बाघिन?- क्या कुख्यात बाघिन अभी भी घूम रही है दुधवा के जंगलों में?

मझरा पूरब में पकड़ा गया पहला बाघ

बीती रात यह दूसरा बाघ पिजड़े में कैद हुआ


दुधवा टाइगर रिजर्व के मझरा पूरब में एक बाघ/बाघिन तकरीबन दो बरस से राहगीरों को दिखाई देती रही है, बाघ के शर्मीले स्वभाव की कोई झलक उस बाघ में नही दिखी,  इससे इतर वह आदम जात से बेख़ौफ़ कारों के आगे आकर खड़ा हो जाता रहा है और बेझिझक मझरा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे लाइन पर चहल कदमी करता या फिर पटरी से समानांतर गुज़रती सड़क पर नाइट वॉक करता हुआ मिल जाता ....एक बहुत ही खूबसूरत जानवर जिसकी आंखों में सारे जहान का सम्मोहन बसता है, नजर मिल जाए तो नजर हटाने का जी न करे, पर अब उसकी खूबसूरती के चर्चे गुज़िश्ता दौर की बात हो गई, अब वह अपराधी है? उसे मानव भक्षी क़रार ठहराया गया, उसके चर्चे आम व खास में मशहूर है, कोई दरिंदा कहता तो कोई खून का प्यासा, शिकारियों की भाषा अखबारों और मीडिया चैनल्स पर खूब सर पीट पीट कर रोई गाई जाती है, कभी जिम कार्बेट ने कहा था कि बाघ एक बड़े दिलवाला जेंटलमैन है.....विख्यात वन्य जीव सरक्षक व टाइगर मैन पद्मभूषण बिली अर्जन सिंह ने कहा था कि बाघ वोट नही देता इसलिए जम्हूरियत के शासन में उसकी नही सुनी जाती सिर्फ इंसानों की बात सुनी जाती है....
चुनांचे अब इस जंगल के खुबसूरत जानवर की जान पर बन आई है या तो इसे किसी चिड़ियाघर में आजीवन कारावास या मौत इसका नसीब होगी।
अगर हम बात करें दुधवा टाइगर रिजर्व के प्रशासनिक अधिकारियों की तो 20 या 21 इंसानी मौतों का तमगा ले चुके इस जानवर के बारे में दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया दुधवा टाइगर रिजर्व के मझरा पूरब खैरटिया में दो बाघिन है मौजूद है, स्वाभाविक है कि वह माँ-बेटी हो क्योंकि एक बाघ या बाघिन् की टेरिटरी में दो बाघिन या दो बाघ स्वभावतः नही रह सकते, श्री पाठक ने बताया कि 27/28 जून की रात्रि में पिजड़े में कैद हुआ जानवर बाघ है जिसकी उम्र तकरीबन 6 साल है जवान और खूबसूरत बाघ.....

गौरतलब है कि जो मानव मौतों की घटनाए मझरा पूरब में घटी वहां बाघिन के पदचिन्हों के मिलने की बात कही जा रही है, जाहिर है वहीं से पकड़ा गया यह बाघ निर्दोष है, अगर इसे चिड़ियाघर भेजा गया तो दुधवा के जंगल अपने एक खूबसूरत जवान बाघ को खो देगा जो भविष्य बाघों की संततियों में वृद्धि करेगा।
 

26  जून को घाघरा कैनाल के किनारे तेलियार गांव के टपरा नम्बर 1 में एक युवक को बाघ ने मार दिया था उसके पगचिन्हों से स्पष्ट है कि वह बाघ है जिसे दुधवा के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने भी पुष्टि की, जबकि क्षेत्रीय जनमानस इस मानव मौत को भी मझरा पूरब की बाघिन के सिर मढ रहा था और मीडिया भी.....
यह यह भी गौरतलब है कि 21 मौतों की जिम्मेदारी एक बाघिन या एक बाघ के सिर पर मढ़ना कहाँ तक उचित है, पगचिन्हों से व अन्य वैज्ञानिक विधियों से यह स्पष्ट किया जा सकेगा कि इन घटनाओं में एक ही बाघ/बाघिन दोषी है या अलाहिदा अलाहिदा बाघ?

नेता मीडिया सभी इंसानी हकूकों की बात करते है इन जंगलों और बाघों से वाबस्ता होने में उन्हें कोई रुचि नही, बाघ मर जाए या बाघ किसी को मार दे उनके लिए सिर्फ यह ख़बर है बस मानवभक्षी क़रार करवाने की कवायदें पर इन्हें इस बात में कोई दिलचस्पी नही की बाघ नही होंगे तो यह जंगल नही बचेंगे, जंगल नही होंगे तो बरखा नही आएगी और बरखा नही होगी, हवा में आक्सीजन नही रह जाएगी तो फिर ये इंसान क्या करेगा? बाघ जंगल की पारिस्थितिकी का सिरमौर होता है, तराई के जंगलों में बाघ नही होगा तो जंगल की पारिस्थितिकी का संतुलन बिगड़ जाएगा।

एक और महत्व पूर्ण बात, दुधवा के जंगलों के आस पास वन विभाग और रेवेन्यू डिपार्टमेंट के मसायल है, जंगलों की जमीनों पर अतिक्रमण, व वन संपदा के दोहन में तटपर आदमी,  सरंक्षित वन क्षेत्र में मानवीय गतिविधियों की अधिकता, सड़कों के किनारे वन व रेलवे की भूमियों में अस्थाई बसाहट या दुकानें ...रात में भी जंगल से गुजरती सड़को पर मोटरसाइकिलों गुजरना, ऐसे तमाम कारण है जो जंगली जीवों की जीवनचर्या में दखल देते है।
चीनी मिलों की अधिकता और गन्ने का क्षेत्रफल में वृद्धि भी एक बड़ा कारण है जानवर का कृषि क्षेत्र में पहुंच जाना, गन्ना बाघ के लिए एक बेहतरीन ग्रासलैंड है जहां उसे जंगली सुअर नीलगाय पालतू मवेशी आकर्षित करते है जिससे इंसान और बाघों के मध्य टकराहट बढ़ रही है, बताता चलू तराई की नम भूमियों में लगातार गन्ने की खेती एक दिन तराई की भूमियों को रेगिस्तान में तब्दील कर देगी,  गन्ना भू-जल स्तर को बहुत तेजी से गिराता है, तकरीबन 20 बरस पूर्व ही डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के पांडा न्यूजलेटर में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिस टाइटल था " Sugarcane is a thirsty crop".

खैर जो भी हो आज की गुज़री रात फिर एक बाघ पिंजड़े में फंस गया, अब दो बाघ पिंजड़े में है वनविभाग के पास इनमें कौन दोषी है यह अभी स्पष्ट नही! या फिर ये दोनों निर्दोष है....

इंसान को अपनी जिम्मेदारियां समझनी होगी, हम प्रकृति को पूजते आए हैं सनातन से वन देवी, वृक्ष देवता, बाघ को दुर्गा का वाहन हाथी में गणेश भगवान को देखते है, प्रत्येक जीव व वृक्ष हमारी उपासना पद्धति में शामिल है, लेकिन दोहन की संस्कृति में हम अपनी पारम्परिक संकृति भूल गए हैं सिर्फ कवायदें बाक़ी है।

तराई में ही नही धरती पर ये वृक्ष ये बाघ ये पक्षी सभी जीव जंतु हम मानव से पहले है हम सबसे बाद में आए और इन जानवरों के घरों को यानी जंगलों को नष्ट कर खेती की गांव बसाए...और अब भी हम निरन्तर यह सब जारी रखना चाहते है, आवश्यकता से अधिक दोहन प्राकृतिक संपदा का...
बाघ की वकालत कोई नही करता नेता को वोट इंसानों से मिलता है लोकतंत्र आदमी की जमात है जहां सिर गिने जाते है सिर्फ....और हम अपना संवैधानिक और नैतिक कर्तव्य भी भूल बैठे है प्रकृति यानी जंगल जीव नदी तालाब के प्रति....विचारिएगा

कृष्ण कुमार मिश्र
Email: krishna.manhan@gmail.com


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