वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

Breaking

बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Nov 4, 2020

सात गाय से 17 लाख की कमाई मसला गौ वंश और मन के प्रेम का है

गिरि प्रजाति की गौ माँ

=गीर प्रजाति की गाय का कुनबा बढ़ाने में लगे इंजीनियर संजय उपाध्याय
=8 साल से गीर प्रजाति की गाय का कुनबा बढ़ा रहे हैं संजय उपाध्याय

शाहजहांपुर के इंजीनियर संजय उपाध्याय गीर प्रजाति की गायों का संवर्धन कर रहे हैं। गीर प्रजाति की सात गायों से मिलने वाले दूध, गोबर और मूत्र के जरिए वह 40 उत्पाद बनाते हैं, जिनकी मार्केटिंग के बाद साल में उन्हें 17 लाख रुपये की कमाई होती है, हालांकि यह रुपया ट्रस्ट में जमा होता है, उस रुपये का वह इस्तेमाल अपने ऊपर नहीं करते हैं। गायों के उत्पाद से जो भी कमाई होती है, संजय उपाध्याय इनकमटैक्स रिटर्न भी दाखिल करते हैं।
दरअसल इंजीनियर संजय उपाध्याय 2008 ने कामधेनु अवतरण अभियान की शुरूआत की थी। उस वक्त संजय ने गोसेवा शुरू की थी। 2011 में संजय उपाध्याय ने कामधेनु ट्रस्ट बनाया, पंजीकरण के बाद 2012 में उत्तराखंड के मुक्तसर से संजय बद्री प्रजाति की गाय और बछड़ा लेकर आए। उनका कुनबा बढ़ाने का काम शुरू किया। शुरू में जो गाय 5 से छह लीटर तक दूध देती थीं, बेहतरीन चारा, पालन पोषण के जरिए इन गायों ने दूध अधिक देना शुरू कर दिया।
=================
2012 को मध्यप्रदेश के शिवपुरी से लाए गीर गाय
=मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के गोरख ब्लाक में बनी गोशाला से संजय उपाध्याय 2012 में गीर प्रजाति की चार बछिया और एक बछड़ा 2012 में लेकर आये थे। धीरे धीरे गीर गाय का कुनबा बढ़ना शुरू हुआ। इन गायों को पूरे प्रोटोकाल के साथ पाला गया। इन गायों को पालने के लिए पहले तो संजय उपाध्याय को अपनी गोशाला के लिए दान लेना पड़ता था, लेकिन बाद में चार साल के अंदर 2016 से संजय ने दान लेना बंद कर दिया। इसके पीछे कारण यह था कि इन गायों के दूध, गोबर, मूत्र से ही संजय ने 40 उत्पाद बनाकर बेचने शुरू कर दिए।
==================
40 उत्पादों से गोशाला का टर्नओवर पहुंचा 17 लाख रुपये
=कृभको खाद फैक्ट्री में अमोनिया प्लांट में बतौर असिस्टेंट मैनेजर तैनात संजय उपाध्याय बताते हैं कि गीर गाय के दूध, गोबर, मूत्र से वह 40 उत्पाद बनाते हैं, जिसका साल भर का टर्नओवर करीब 17 लाख रुपये है। इसका वह इनकम टैक्स रिटर्न भी दाखिल करते हैं। संजय बताते हैं कि गोशाला को पूरी मन के साथ चलाया जाये तो किसी प्रकार की दान की जरूरत नहीं होती है। बताया कि गोशाला से होने वाली 17 लाख रुपये की आय में उन्होंने सात लाख रुपये चैरिटी में खर्च किये हैं। बताया कि गोशाला का 70 प्रतिशत खर्च तो वह गोबर और गोमूत्र से बने उत्पाद से ही पूरा करते हैं। दूध के उत्पादों से अलग आमदनी होती है।
संजय उपाध्याय


====================
गीर प्रजाति की 200 बछिया का पालन कराया
=संजय उपाध्याय बताते हैं कि 2012 से अब तक वह गीर प्रजाति की 200 बछिया बरेली, फर्रुखाबाद, हरदोई, शाहजहांपुर में अपने जानने वालों को मुफ्त में पालन करा रहे हैं। बताया कि उन्होंने बछड़ों का संवर्धन कराया है। बताया कि वह अब तक नौ बछड़े मुफ्त में पालन के लिए दे चुके हैं। उनका मकसद गीर प्रजाति की गाय का कुनबा बढ़ाना है, दूसरा कि जहां कहीं गाय होगी, उस परिवार मेंं लोग संस्कारों से भी जुड़े रहते हैं, हमारे सामाजिक रीति और रिवाज भी कायम रहते हैं। गाय जिस घर में पाली जाती है, वह घर समृद्धि प्राप्त करता है, ऐसा उनका मानना है।
=====================
गीर बुल की तीन पीढ़ियों का रहता है रिकार्ड
=संजय उपाध्याय बताते हैं कि जब वह शुरू में गीर गाय का पालन कर रहे थे, उस वक्त गीर प्रजाति की गाय दूध बेहद कम देती थी, लेकिन धीरे धीरे गाय ने एक बार में 17 लीटर तक दूध देना शुरू कर दिया। बताया कि वह जिस बुल यानी बैल को पालन के लिए देते हैं, उस बुल की मां, नानी, परनानी और पर की परनाली के दूध देने का भी रिकार्ड रखते हैं। इसी तरह से उस बुल के पितृपक्ष की तीन पीढ़ियों का भी रिकार्ड रखते हैं।
======================
जितनी गाय महत्वपूर्ण, उतना ही बैल भी
=संजय बताते हैं कि गीर गाय का कुनबा बढ़ाने में उसी प्रजाति के बैल यानी बुल का भी महत्व है। बताया कि गीर गाय का कुनबा बढ़ाने के लिए उन्होंने बुल या बैल पालन पर भी उतना ही ध्यान दिया। बताया कि गाय को क्रास नहीं कराया, उसी गीर गाय के बैल से मैटिंग कराई, ताकि गीर प्रजाति में किसी अन्य प्रजाति के बैल का डीएनए न जाए। बताया कि आजकल लोग अधिक दूध के लिए क्रास ब्रीडिंग कराते हैं, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया।
==================
2018 में मिला कामधेनु पुरस्कार
=गीर प्रजाति बैल को पूरे प्रोटोकाल के साथ पालने और उसके संवर्धन के लिए इंजीनियर संजय उपाध्याय को देश के बड़े कामधेनु पुरस्कार भी 2018 में मिल चुका है। संजय ने बताया कि कामधेनु योजना के तहत पूरे देश को चार जोन में बांटा गया है, इन चार जोन में ही पुरस्कारों के लिए चयन किया जाता है।



विवेक सेंगर: वरिष्ठ पत्रकार, शाहजहांपुर में हिंदुस्तान अख़बार के ब्यूरो, बड़ी शिद्दत से इस  ख़बर को खोज कर लाए हैं जिसे दुधवा लाइव पर साझा किया गया है।

बात गाय की नही, बात संस्कृति, जमीन, परम्परा और इंसानी जमात की तक़दीर और तदवीर की है, इसी गौ वंश ने आदमी को इंसान बनाया सभ्यता में...

No comments:

Post a Comment

आप के विचार!

जर्मनी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार "द बॉब्स" से सम्मानित पत्रिका "दुधवा लाइव"

हस्तियां

पदम भूषण बिली अर्जन सिंह
दुधवा लाइव डेस्क* नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह

एक ब्राजीलियन महिला की यादों में टाइगरमैन बिली अर्जन सिंह
टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

मुद्दा

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

दुधवा में गैडों का जीवन नहीं रहा सुरक्षित
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

Post Top Ad

Your Ad Spot