वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Mar 20, 2012

विश्व गौरैया दिवस

घर-आंगन की इस चिडिंया की कैसे हो वापसी-
विश्व गौरैया दिवस- 20 मार्च 2012
 
गौरैया (House Sparrow-{passer domesticus}) जो हमारे घरों के भीतर-बाहर हमेशा मौजूद रही उसकी चहक और फ़ंखों की फ़ड़फ़ड़ाहट हमारे जहन में रोजमर्रा की घरेलू आवाजों की तरह थी। लेकिन आज न तो अल सुबह वह चह्क सुनाई देती है और न ही दोपहर में घर आंगन में बिखरे अनाज के दानों को चोच में दबाकर अपने घोसले तक उड़ान की आवाज...वजहे हमारे सामने है और इन वजहों के जिम्मेदार भी हम है। धरती पर करोड़ों प्रजातियों में से सिर्फ़ हम यानि मनुष्य एक ऐसी प्रजाति बन गयी कि सह-जीवी जीवन की विधा का ही बेड़ा गर्क कर दिया..जाहिर था हम इतने विकसित हुए प्रकृति की हर मार को झेलने की तकनीक विकसित कर ले गये, पर इसका खामियाजा ये हुआ कि हम प्रकृति के वरदानों से भी बे-राफ़्ता होते गये, इसके दुष्परिणाम भी हमारे सामने है। 

"किसी भी प्रजाति को खत्म करना हो तो उसके आवास और उसके भोजन को खत्म कर दो" कुछ ऐसा भी हुआ गौरैया के साथ...शहरीकरण, गांवों का बदलता स्वरूप, कृषि में रसायनिक खादें एंव जहरीले कीटनाशक गौरैया के  खत्म होने के लिए जिम्मेंदार बने। फ़िर भी प्रकृति ने हर जीव को विपरीत परिस्थितियों में जिन्दा रहने की काबिलियत दी है और यही वजह है कि गौरैया कि चहक आज भी हम सुन पा रहे हैं।

कभी खुले आंगन में फ़ुदकने वाली यह चिड़िया, छप्परों में घोसले बनाने वाली यह चिड़िया, बच्चों के हाथों से गिरी हुई झूठन (पकाया हुआ अनाज) खाने वाली चिड़िया, अब बन्द जाली के आंगनों और बन्द दरवाजों की वजह से अपनी दस्तक नही दे पाती हमारे घरों में, गाहे-बगाहे अगर यह दाखिल भी होती है, तो छतों में टंगे पंखों से टकरा कर मर जाती है।    बड़ा दर्दनाक है यह सब जो इस अनियोजित विकास के दौर में हो रहा है, हम अपने आस-पास सदियों से रह रहे तमाम जीवों के लिए कब्रगाह तैयार करते जा रहे है बिना यह सोचे कि इनके बिना यह धरती और हमारा पर्यावरण कैसा होगा।

जंगल चिड़ियों की देन है, ये परिन्दे ही जंगल लगाते है, तमाम प्रजातियों के वृक्ष तो तभी उगते है, जब कोई परिन्दा इन वृक्षों के बीजों को खाता है और वह बीज उस पक्षी की आहारनाल से पाचन की प्रक्रिया से गुजर कर जब कही गिरते है तभी उनमें अंकुरण होता है, साथ ही फ़लों को खाकर धरती पर इधर -उधर बिखेरना और परागण की प्रक्रिया में सहयोग देना इन्ही परिन्दों का अप्रत्यक्ष योगदान है। 

कीट-पंतगों की तादाद पर भी यही परिन्दे नियन्त्रण करते है, कुल मिलाकर पारिस्थितिकी तन्त्र में प्रत्येक प्रजाति का अपना महत्व है, हमें उनके महत्व को नजरन्दाज करके अपने पर्यावरण के लिए अपनी गैर-जिम्मेदाराना भूमिका अदा कर रहे हैं।

अपने घरों के अहाते और पिछवाड़े विदेशी नस्ल के पौधों के बजाए देशी फ़लदार पौधे लगाकर इन चिड़ियों को आहार और घरौदें बनाने का मौका दे सकते है। साथ ही जहरीले कीटनाशक के इस्तेमाल को रोककर, इन वनस्पतियों पर लगने वाले परजीवी कीड़ो को पनपने का मौका देकर इन चिड़ियों के चूजों के आहार की भी उपलब्धता करवा सकते है, क्यों कि गौरैया जैसे परिन्दों के चूजें कठोर अनाज को नही खा सकते, उन्हे मुलायम कीड़े ही आहार के रूप में आवश्यक होते हैं।

अपने घरों में सुरक्षित स्थानों पर गौरैया के घोसले बनाने वाली जगहों या मानव-जनित लकड़ी या मिट्टी के घोसले बनाकर लटकाये जा सकते है। इसके अलाव पानी और अनाज के साथ पकाए हुए अनाज का विखराव कर हम इस चिड़िया को दोबारा अपने घर-आंगन में बुला सकते हैं।

हमें इतना याद रखना चाहिए कि अकेले रहने से बेहतर है, कि हम उन सब प्रजातियों के साथ मिलकर रहे जो सदियों से हमारे साथ रहती आई है, और यकीन मानिए तब आप को खुद-ब-खुद पता चल जायेगा कि साथ मिलकर रहने के क्या-क्या फ़ायदे है।

कृष्ण कुमार मिश्र

 

3 comments:

  1. Nice to see. Congrats, Keep it up

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  2. गौरैया दिवस 20 मार्च 2012 को दुधवा लाइव पत्रिका में छपे लेख को आकाशवाणी के विविध भारती कार्यक्रम में कल शनिवार रात सात पैतालिस पर प्रसारित किया जायेगा।
    http://vividhbharti.org/listen-on-line/
    http://www.dudhwalive.com/2012/03/world-house-sparrow-day.html

    ReplyDelete
  3. Mr. Mishra,
    Very very inspiring article. It is indeed an issue that we are facing today. We all need to do our best to save house sparrows otherwise tomorrow they may meet the fate of vultures. Sparrows will be in the stories only.

    Your efforts are commendable. Let me know what can I do? for sparrow and for Dudhwalive also?

    Sincerely,

    Mishra Krishna Kumar
    HBCSE (TIFR)
    Mumbai-400088

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