वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Oct 5, 2010

एक कछुआ जो कह रहा है अपनी कहानी !

एक कछुवें की कहानी कछुवें की जुबानी
क्षितिरतिविपुलुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे। धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे।। केशव धृतृतकच्छपरूप। जय जगदीश हरे॥
अर्थात
(हे केशव ! पृथ्वी के धारण करने के चिन्ह से कठोर और अत्यन्त विशाल तुम्हारी पीठ पर पृथ्वी स्थित है, ऐसे कच्छपरूपधारी जगत्पति आप हरि की जय हो) (श्रीदशावतारस्तोत्रम)

आइये आज मैं पहली बार आपको अपने बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। हमारे बारे में आप लोग शायद ही कुछ जानते होंगें। क्या आप जानते हैं कि आप मनुष्य, सिर्फ कुछ हजार वर्षो से ही अस्तित्व में आये है और आप शायद ये जान कर और भी आश्चर्य करेंगे कि हम लोग इस धरती पर लगभग 63 करोड़ वर्षो से रहते आ रहें हैं। और हमने सदा ही समय तथा परिस्थिति के हिसाब से अपने को परिवर्तित भी किया है इसी कारण से हम इस पृथ्वी पर अपने अस्तित्व इतने युगों से बचा पाये हैं। हमारे अतिरिक्त सिर्फ घड़ियाल और मगरमच्छ ही इतने युगों से इस पृथ्वी पर अपने को बचा पाये है यानि कि हम आपके अस्तित्व में आने के करोड़ो साल पहले से ही इस पृथ्वी तथा पर्यावरण के लिये अपना सम्पूर्ण जीवन ही लगाते आये है, और आप इन्सान इस बात को माने या न माने कि हमारे अस्तित्व का आज करोड़ो सालों के बाद भी होना इस बात का संकेत करता है कि हम आज
भी इस धरती और पर्यावरण के लिये कितने महत्वपूर्ण हैं।

आज पृथ्वी में हमारी लगभग 230 प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है जिसमें से भारत में सिर्फ 28 प्रजातियाँ ही पायी जाती हैं। उत्तर प्रदेश में तो केवल 15 प्रजातियाँ ही मौजूद हैं।
आइए मै आप को अपने प्रजाति के बारे में भी कुछ बताता हुआ चलू।
प्रजातियों के हिसाब से हम कछुवें तीन हिस्सों में बटें हैं:-
1. थलचर यानि जमीन मे रहने वाले यानि हमारा सारा समय पानी के बाहर बीतता है और हम जमीन की
    वनस्पति आदि खा कर जीवित रहते हैं।
2. मुलायम कवच वाले अथवा माँसाँहारी जलचर यानी हम रहते तो पानी में ही है और नदी या तालाब से  मरे हुये जानवर का माँस और मछली का शिकार कर के खाते हैं तथा जल को प्रदूषण से बचाते है।
3. कठोर कवच वाले अथवा शाकाहारी जलचर यानी हम भी रहते तो पानी में ही है लेकिन नदी या तालाब से   वनस्पति खा कर जीवित रहते हैं और जलीय पर्यावरण के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हमेशा ही हम पृथ्वी के पर्यावरण को साफ करने में अपना योगदान देते आ रहे है। जरा सोचिये! करोड़ो वर्षो से हम अपनी पूरी जाति के साथ इस पृथ्वी के जल तथा थल (धरती) की सफाई में लगें हैं किन्तु आप इन्सानों में हमारे प्रति उदासीनता के चलते ही हमें संकटग्रस्त जानवर की श्रेणी में ला कर रख दिया है। भारत में  हमारी 11 प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं, और इन 11 प्रजातियों  में  से उत्तर प्रदेश में ही हमारी 5 प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। चीन देश में तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है! और धीरे धीरे पूरे विश्व से हमारी कई प्रजातियाँ विलुप्त होती चली जा रही है।
हिन्दू धर्म के अनुसार देवताओं तथा दैत्यों के बीच हुये समुद्र मंथन में इस सृष्टि को चलाने वाले भगवान विष्णु ने कच्छप यानि कछुवें का अवतार लिया था और उसी कछुवें की पीठ पर विशाल पर्वत को रख कर समुद्र को मथा गया था। उन्ही के वंशज होने के कारण आज हमारी पूजा भी होती है। गंगा माँ (नदी) हमारे ही भाई घड़ियाल पर तथा यमुना माँ (नदी) हमारे ऊपर ही सवारी करतीं हैं।

"मुस्लिम धर्म के अनुसार अल्लामा कमालुद्दीन दुमैरी द्वारा लिखित "हैयातुल हैवान" के भाग 2 के पृष्ठ संख्या 467 में इमाम राफई ने हमें मारना और खाना दोनों ही हराम कहा है। हैयातुल हैवान के भाग 3 के पृष्ठ संख्या 361 में अल्लामा बगवी ने और अल्लामा नव्वी ने शरहै मोहज्ज़ब में हमारे शिकार और हमारे माँस को खाने को नाज़ायज़ होने का फ़तवा दिया है।"

आज से सिर्फ 20 से 25 वर्ष पहले तक हम अपने सभी प्रजातियों के साथ लाखों की संख्या में मौजूद थें लेकिन आज हम अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये लड़ रहें है और दुर्भाग्य की बात तो ये है कि इस सृष्टि का सबसे बुद्धिमान जीव यानी कि आप इन्सान ही हमारे अस्तित्व को मिटाने में लगें हुए हैं। आज आप इन्सान सिर्फ यही सोचतें हैं कि इस पृथ्वी पर रहने का हक सिर्फ उसका ही है किन्तु आप ये कैसे भूल सकतें हैं कि इस पृथ्वी में अगर आपका अस्तित्व है तो हम और हमारे जैसे लाखों करोड़ो जीव-जन्तु और पेड़-पौधे की वजह से और अगर हम लोग ही नही होंगे तो आपका भी अस्तित्व समाप्त हो जायेगा।


लगभग पूरे विश्व में हमारा शिकार गैरकानूनी है। भारत मे वन्य जीव अधिनियम 1972 के  लागू होने सें अन्य जीव जन्तुओं के साथ साथ हमारा शिकार भी गैरैरकानूनी हो गया है। वन्य जीव  सरंक्षण अधिनियम के अनुसार आप हमारी कुछ प्रजातियों  की तुलना शेर या बाघ से कर सकते हैं । यानि कि जो सजा बाघ के शिकार करने वाले को मिलती है, वही सजा हमारे शिकार करने पर भी मिले। लेकिन फिर भी हम अपने माँस से हजारों गरीब लोगों  की भूख मिटाते आ रहें  है।
हमारा शिकार तो हर युग में होता आया है। पहले कुछ ही जाति के लोग अपनी भूख मिटाने के लिये हमारा शिकार करते थे उस समय हमें अपने ऊपर कभी खतरे का आभाष नही हुआ था, किन्तु अब स्थितियाँ बदल रही हैं, बढ़ती जनसंख्या, गरीबी और भोजन की कमी की वजह से अब हमारा शिकार भी अन्धाधुन्ध हो रहा है। इन परिस्थितियों से तो हम ,खुद ही निपट सकते है किन्तु कुछ लोग लालचवश हमारा अवैध शिकार तथा व्यापार कर रहे है जिसके कारण हमें अपने अस्तित्व के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। हमे प्रतिदिन लगभग 20,000 से 25,000 की संख्या में सिर्फ भारत में मारा जा रहा है और भारत में हमारे कुल शिकार का सिर्फ 15 फीसदी (%) ही शिकार होता है अब आप इस बात का ,खुद ही हिसाब कर सकते हैं कि पूरे विश्व में हमारा कितना शिकार हो रहा है।
अब आप ही सोंचियें कि हम किस जबरदस्त तरीके से अपने को बचाने का प्रयास कर रहे है। हम अपने को बचाने के लिये आप ही से प्रार्थना कर सकते हैं क्योंकि आप ही हमारे रक्षक भी हैं और आप ही हमारे भक्षक भी हैं। हमारी रक्षा करना आपका दायित्व बनता है। क्या आप ये चाहते हैं कि हमारा नाम इतिहास के पन्नों में ही सिमट जाये और आने वाले युग कें बच्चें हमें सिर्फ तस्वीरों में ही देखे ? हम आपकी और इस पर्यावरण की महत्वपूर्ण जरुरत हैं  इस लिये हमें बचाने में अपना सहयोग करे और हमें  मारने वालों  का साथ न दें।

हे मनुष्य ! क्या तुम इस कलंक के साथ इस पृथ्वी पर रह सकते हो कि तुम्हारे ही लालच के कारण ये पृथ्वी अपने विनाश की ओर अग्रसर हो रही है।।
धन्यवाद
आपका अपना एक पर्यावर्णीय मित्र
एक कच्छप
परिकल्पना
भास्कर एम० दीक्षित, शैलेन्द्र सिंह एंव प्रदीप सक्सेना
तराई एन्वायरनमेन्टल फ़ॉउन्डेशन एंव टर्टल सर्वाइवल एलाइन्स (TEF and TSA)
संपर्क: taraee@rediffmail.com

4 comments:

  1. अरुणेश दवेOctober 6, 2010 at 1:46 PM

    शानदार लेख कब इंसानो को समझ आयेगी कितनी बेअक्ली से हम अपने पर्यावास को नष्ट करते जा रहे है ।

    ReplyDelete
  2. मैंने अपने यहाँ स्थानीय बाज़ार में जब कछुओं को बिकते देखा तो उसका विरोध किया लेकिन सब लोगों की साँठ गाँठ के चलते मेरा विरोध व्यर्थ रहा । मैंने बाज़ार मे बिकते इन कछुओं की तस्वीर खींच रखी है ।
    एक बात आप कछुओं की लम्बी उम्र का ज़िक्र करना भूल गए । मैने अपनी लम्बी कविता " पुरातत्ववेत्ता "में इस बात का ज़िक्र किया है कि समुद्र के पुरातत्ववेत्ता कछुओं से गुम हुए इतिहास का पता पूछते हैं ।

    ReplyDelete
  3. Thanks to all, Dear Mr. Sharad,

    Can you explain about the turtle market, if possible then pls send us the picture in taraee@rediffmail.com or contact me on 09451035660.

    Thx

    ReplyDelete

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