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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Aug 17, 2010

अबूझमाड़ जंगलों की माड़िया जनजाति


हिल मारिया युवती
माड़िया जनजाती - खूबसूरत अबूझमाड़ के खूबसूरत निवासी:

अबूझमाड़ के अनगढ़ जंगलॊं मे एक ऐसी जनजाति निवास करती है जिसने आजतक अपनी मूल परंपरा और संस्कृति को सहेज कर रखा हुआ है । माड़िया जनजाति को मुख्यतः दो उपजातियों में बांटा गया है, अबुझ माड़िया और बाईसन होर्न माड़िया ।
अबुझ माड़िया अबुझमाड़ के पहाड़ी इलाको मे निवास करते है और बाईसन होर्न माड़िया  इन्द्रावती नदी से लगे हुये मैदानी जंगलो में । बाईसन होर्न माड़िया  को इस नाम से इसिलिये पुकारा जाता है, क्योंकि वे घोटूल मे और खास अवसरों में नाचने के दौरान बाईसन यानी की गौर के सींगो का मुकुट पहनते है ।

दोनो उपजातियो की  संस्कृति काफ़ी हद तक मिलती जुलती है । ये दोनो ही बाहरी लोगों से मिलना जुलना पसंद नही करते लेकिन दोनो में  अबुझ माड़िया ज्यादा आक्रमक हैं, वे बाहरी लोगों के अपने इलाके मे आने पर तीर कमान से हमला करना नही चूकते । जबकी बाईसन होर्न माड़िया  बाहरी लोगो के आने पर ज्यादातर जंगलो मे भाग जाना पसंद करते है ।

हालांकि  माड़िया जनजाति की कुछ आबादी धीरे धीरे मुख्य धारा से जुड़ गयी है, लेकिन अधिकतर माड़िया आज भी अपने रस्मॊं रिवाज के साथ शहरों कस्बों से दूर घने जंगलो मे रहना ही पसंद करते है और बाहरी लोगों से उनका संपर्क केवल नमक तेल और गिलेट के  गहनों के विनिमय तक ही सीमित है ।

मसमुटिया स्वभाव:

 माड़िया लोग बेहद खुशमिजाज शराब के शौकीन और मसमुटिया होते है । मसमुटिया छत्तीसगढ़ का स्थानीय शब्द है जिसका मतलब बच्चे की तरह जल्दी नाराज होना और फ़िर तुरंत उसे भूल जाना होता है । माड़िया काकसार नाम के कुल देवता की अराधना करते हैं । अच्छी फ़सल के लिये ये अपने देवता के सम्मान मे शानदार न्रुत्य करते है । संगीत और नाच मे इनकी भव्यता देखने लायक होती है । ये बेहद कुशल शिकारी होते है और इनके पास गजब का साहस होता है । हमला होने पर यह बाघ जंगली भैसे या भालू से लोहा लेने मे नही हिचकते । ये बाघ का बेहद सम्मान करते है और अनावश्यक कभी बाघ का शिकार नही करते । यदी कोई बाघ का शिकार करने के इरादे से इनके इलाके मे जाय तो माड़िया उसे जिंदा नही छोड़ते । माड़िया लोग वचन देने पर उसे निभाने के लिये तत्पर रहते हैं ।

घोटुल एक परंपरा- धरती पर प्रेम की आज़ादी:  

गोंड बाला
माड़िया लोगो मे घोटुल परंपरा का पालन होता है जिसमे गांव के सभी कुंवारे लड़के लड़कियां शाम होने पर गांव के घॊटुल घर मे रहने जाते हैं । घॊटुल मे एक सिरदार होता है और एक कोटवार यह दोनो ही पद आम तौर पर बड़े कुवांरें लड़कों को दिया जाता है । सिरदार घॊटुल का प्रमुख होता है और कोटवार उसे वहां की व्यवस्था संभालने मे मदद करता है । सबसे पहले सारे लड़के घॊटुल मे प्रवेश करते हैं उसके बाद लड़कियां प्रवेश करती हैं । कोटवार सभी लड़कियों को अलग अलग लड़कों मे बाट देता है । कोई भी जोड़ा दो या तीन दिनो से उपर एक साथ नही रहता । इसके बाद लड़कियां लड़कों के बाल सवांरती है, और हाथो की मालिश करके उन्हे तरोताजा करती है । उसके बाद सभी घोटुल के बाहर नाचते हैं । नाच मे विवाहित औरते हिस्सा नही ले सकती लेकिन विवाहित पुरूष ले सकते हैं । आम तौर पर वे वाद्य बजाते हैं । नाच मे हर लड़के एक हाथ एक लड़की के कंधे पर और दूसरी के कमर पर होता है । यह आग के चारॊ ओर घेरा बना कर नाचते हैं । नृत्य के समय के साथ तेज होता जाता हैं । नृत्य के समय गाये जाने वाले एक गीत के बोल कुछ इस तरह के हैं
पिता अपने पुत्र से कहता है ।

किसी की बेटी के लिये उसकी सेवा मे मत जाना ।

और ना ही किसी अजनबी लड़की के प्यार मे पड़ना ।

मैं अपनी भैस और कुल्हाड़ी बेच कर भी ।

तुम्हारी दो दो शादियां कराउगां ।

फ़िर वह कहता है कि गांव के लोगो ।

यह मेरे बेटे की शादी का जश्न है ।

फ़िर वह थाली भरकर चावल और मांस डालता है ।

फ़िर वह उसमे मसाला डालता है ।

और साथ मे शराब देता है ।

और फ़िर लोगो से कहता है ।

आओ और पेट भरकर खाओ ।


हिल मारिया टैटू
विवाह के प्रथम वर्ष में यौन संबध बनाने की इज़ाजत नही!

जैसा कि इस गीत से स्पष्ट है माड़िया जनजाती मे विवाह के लिये लड़की की कीमत अदा करनी पड़ती है कीमत ना दे पाने की स्थिती मे लड़के को लड़की के पिता के घर कुछ समय तक काम करना पड़ता है यह अवधी तीन से सात वर्ष तक की हो सकती है । ऐसे विवाह के तय होने पर सेवा के प्रथम वर्ष जोड़े को शारीरिक संबध बनाने की छूट नही होती है, किंतु यदि लड़की की सहमति हो तो उसके बाद यह बंधन हट जाता है ।  माड़िया लोगों मे विवाह ही जीवन का सबसे बड़ा खर्च होता है । विवाह करने के लिये लड़की की कीमत दोनो पक्ष बैठ कर तय करते हैं । और वर पक्ष को यह कीमत चुकानी होती है ।

 नवयुवकों व युवतियों द्वारा यौन संबध बनाने में छूट:

माड़िया लोगों मे कुवांरे युवक युवतियों को  शारीरिक संबंध बनाने की छूट होती है । घोटुल मे बड़ी उम्र के युवक युवतियां छोटी उम्र के युवक युवतियों  को शारीरिक शिक्षा की सीख देते हैं । यहा पर विवाह की आपसी सहमती बन जाने पर युवक युवतियों  को शादी करने के लिये परिवार वालों को बताना होता है । उनके राजी ना होने पर अक्सर  वे जंगल भाग जाते हैं । लेकिन ऐसी शादी मे भी कीमत तो चुकानी ही पड़ती है । माड़िया घोटुल मे लड़कियां रात मे नही सोती, लेकिन लड़के रात मे घोटुल मे ही रुकते हैं ।

घोटुल में लड़किया गर्भवती नही होती:

हम लोगो को शायद घोटुल की व्यवस्था अजीब लग सकती है पर माड़िया लोगो मे जहां युवक  युवतियों  कमर के उपर कुछ नही पहनते और जिनमे विवाहोपरांत अनैतिक संबधो की परिणिती हत्या से ही होती है । उनमे शायद शारीरिक आकर्षण को दूर करने का यही एक तरीका सर्वोत्तम है । और इस विधि में युवक युवतियां सभी दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ जीवन साथी का चुनाव कर सकते हैं । और इनमे बलात्कार जैसी सामाजिक बुराईयां होने का भी प्रश्न नही होता । हालांकि माड़िया लोगो का कहना होता है, कि देवी के आशीर्वाद से घॊटुल मे लड़कियां गर्भवती नही होती पर मेरी समझ से इनको गर्भनिरोध की किसी अचूक जड़ी बूटी की जानकारी है । इनके घोटुल मे किसी दूसरे गांव के माड़िया युवक युवतियों को आने की छूट होती है, परंतु गैर माड़िया व्यक्ति को ये घोटुल में तो छोड़ अपने गांवो के आसपास भी पसंद नही करते । इनमे  युवतियों को शादी के पहले और बाद भी जीवन साथी चुनने या बदलने का पूरा अधिकार होता है । इनमे ममेरे भाई बहनो की शादी करने की छूट होती है और शादी के भारी खर्च से बचने के लिये अक्सर अदला बदली से विवाह भी होता है ।

ये धरती माँ को घायल नही करते और सागौन से इन्हे नफ़रत है!

माड़िया आदिवासी बेरवा पद्धती से खेती करते हैं । और हर दो या तीन वर्षों मे नया जंगल साफ़ कर और उसमे आग लगा कर नये खेत बना लेते है । यह खेत की जुताई नही करते इनका मानना है कि धरती हमारी मां होती है, उसपर हल चलाना यानी कि मां के शरीर को घायल करना होगा । ये सागौन के वृ्क्षों को अपने खेतों के पास पसंद नही करते, क्योंकि इन का मानना है, कि सागौन के पत्ते खेती के लिये अशुभ होते हैं । हाल ही मे हुये शोध मे यह बात साबित हुई है कि सगौन के पत्तो से मिट्टी की उर्वरता मे भारी कमी आती है ।  ये आपस मे लगे हुये घर पसंद नही करते और घर के चारो ओर बाड़ी बनाकर उसमे तंबाखू और अन्य जरूरत के फ़ल सब्जी आदि लगाते हैं । हमारे विपरीत ये शौच के लिये अपनी बाड़ी का ही प्रयोग करते है । देखने पर यह भद्दा लग सकता है पर मूत्र मे नाईट्रोजन होता है और मल खेतॊं के लिये खाद का काम करता है । यदि आप शहर या कस्बो से निकलने वाली नालियों का पानी जिनके खेतों मे जाता है, उनसे पूछेंगे तो आपको पता लगेगा कि उन्हे ना के बराबर खाद डालनी पड़ती है और फ़सल दूसरे खेतो से अधिक होती है ।

बाघ और पतिता पत्नी:

माड़िया महिलायें अपने पति के साथ खाट पर नही सोती, और किसी उम्र से बड़े पुरुष के घर पर होने पर वह खाट पर नही बैठती । यदि माड़िया को बाघ उठाकर ले जाय तो वे उसे  दैवीय प्रकोप समझते हैं । खासकर इसे पत्नी के अवैध संबंध से जोड़ा जाता है । यदि बाघ कम समय मे उसी  माड़िया के दूसरे जानवर को भी ले जाय तो वह अपनी पत्नी पर कड़ी नजर रखना शुरू कर देता है । माड़िया समाज मे अनैतिक संबंधॊ को बिल्कुल बर्दाश्त नही किया जाता । लेकिन यदि महिला अपने पति से खुश ना हो तो वह बिना किसी विरोध के दूसरा पति चुन सकती है, बशर्ते वह व्यक्ति पहले को पत्नी के उपर खर्च की गयी विवाह की कीमत चुका दे । माड़िया जाति मे बहुविवाह की इजाजत भी है, लेकिन विवाह मे आने वाले भारी खर्च के कारण ऐसा यदा कदा ही होता है । इनमे विधवा विवाह की भी इजाजत है ।

अब वह मायके अकेले नही आ सकती:

इनमे विवाह की रीतिया बहुत ही सरल है लड़की वाले लड़के यहां जाते हैं । और लड़के का पिता उन्हे एक विशेष तौर पर बनाई गई झोपड़ी मे ठहराता है और उन्हे खाने का सामान जिसमे महुआ या सल्फ़ी की शराब , सुअर और मुर्गे का होना आवश्यक है । अगले दिन पूरे गांव की दावत होती है और जम कर नाच गाना होता है जिस्मे दुल्हन जीवन मे अतिंम बार माड़िया नाच मे हिस्सा लेती है । इसके बाद दुल्हन का पिता उसे दूल्हे के घर ले जाता है और कहता है, कि अब वह दुल्हे के घर की हो गयी, अब वह मायके अकेले नही आ सकती । इस समय लडकी रस्म अदायगी के लिये कुछ समय रोती है, और विवाह की रस्म पूरी हो जाती है । जैसे जैसे माड़िया लोग बाहरी दुनिया के संपर्क मे आते जा रहे है वैसे वैसे उनमे हमारे रस्मो रिवाजो का प्रभाव पड़ने लगा है लेकिन माड़िया जनजाति की मुख्य आबादी मे आज भी इसी रस्म से विवाह होता है ।

महुआ तले बच्चों की कब्र:

माड़िया जनजाति मे मौत के बाद आम तौर पर कब्र मे दफ़नाया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में शव को जलाया भी जाता है । यह उम्र मौत के कारण और व्याधि इत्यादि पर निर्भर करता है । बच्चों को महुआ के पेड़ के नीचे दफ़नाया जाता है, ऐसा माना जाता है कि महुआ के पेड़ से रस पाकर उसकी आत्मा तृप्त हो जायेगी । इनके इस गाने से आप मृत्यु के बारे मे इनकी सोच के बारे मे आप जान सकते है

अपने शरीर पर गर्व मत करो तुम्हे एक दिन ऊपर जाना ही होगा।
तुम्हारी मां भाई और रिश्तेदार उन्हे छोड़कर तुम्हे जाना ही होगा।
तुम्हारी झोपड़ी मे भले खजाना भरा हो पर तुम्हे जाना ही होगा।

बिसन के सीघों से सुसज्जित मारिया पुरूष
ये बाघों के रक्षक है:

माड़िया जनजाती का जीवन और जीवन पद्धती आज गंभीर खतरे मे है । और खतरे मे वे वन्यजीव और वनस्पतियां भी है जिनके साथ ये अपनी दुनिया बांटते आये हैं । विनाश मुंह बाये सामने खड़ा है , ये सभी उससे अंजान है । चाहे खून का लाल झंडा हिलाते नक्सली हों या प्रदूषण का काला झंडा हिलाती सरकार! विनाश ही इनकी परिणिति नजर आती है । आज हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा वरना भारत की आखिरी प्राकृतिक धरोहर भी विकास के विनाश की भेंट चढ़ जायेगी!






अरुणेश सी दवे*  (लेखक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते है, पेशे से प्लाईवुड व्यवसायी है, प्लाई वुड टेक्नालोजी में इंडियन रिसर्च इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा। जंगलवासियों की संस्कृति का दस्तावेज तैयार करने की अनूठी पहल, वन्य् जीवों व जंगलों से लगाव है, स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक, मूलत: गाँधी और जिन्ना की सरजमीं से संबध रखते हैं। सामाजिक सरोकार के प्रति सजगता,  इनसे aruneshd3@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।) 

6 comments:

  1. घोटुल क्या बाममार्गियों के भैरवी चक्र की तरह नही है!

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  2. अच्छा है
    ज्ञानवर्धक है
    लेकिन ........! जनजातियों की इन परम्परों पे गर्व मत करिए ! इनकी परम्परों को लिखने भर से काम नहीं चलने वाला है !इनको जगाइए ...!!!ये किसी के आगे अधनंगे घुमने ...महुआ पीने..दारू बनाने की परंपरा भर नहीं है !
    क्षमा कीजिये आप भी 'दायें हाथ की नैतिकता ' से बढे हुए है !
    जनजाति के लोग नंगे नाचते है तो अच्छे लगते है और जब वो अपने हक़ की खातिर बन्दूक उठा लेते है तो खतरा बन जाते है !!
    ये आपकी 'दायें हाथ की नैतिकता ' है !
    धूमिल के शब्दों में कहू तो
    ...आदमी अपनी दाए हाथ की नैतिकता से इस कदर बधा हुआ है
    की जिंदगी भर गाड धोने के लिए बाये हाथ का इस्तेमाल करता है करता है !!!!

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  3. wah..inke kuchh riwz to hame apnane chahiye

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  4. लगता है, आपने बस्तर में आदिवासियों पर कम से कम 20-25 साल तक काम किया है. तस्वीरें भी उम्दा हैं. आपकी फोटोग्राफी चमत्कृत करती है.
    -संजीव पांडेय
    बिलासपुर

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  5. जानकारी बहुत कम है इसे और बढाये।

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  6. जानकारी बहुत कम है इसे और बढाये।

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