वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

Breaking

बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jul 3, 2022

धरती पर बहुत प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर




काजीरंगा अभयारण्य के दुर्लभ गैंडे सहित कई जीव भी खतरे में !

अभी तक भारतीय अभ्यारण्यों में संरक्षित जीव अवैध शिकारियों और तस्करों द्वारा उनके बहुमूल्य खालों,दांतों और सिंगों के लिए मारे जाने के बारे में अक्सर हम समाचार पत्रों में पढ़ते रहे हैं, लेकिन असम के विश्वप्रसिद्ध काजीरंगा अभयारण्य जिसमें अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहे एक सिंगवाले गैंडों का अंतिम बसेरा है,और मानस राष्ट्रीय उद्यान के साथ-साथ पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में हाथियों और दलदली हिरणों का भी बसेरा है,में ऐसी विभिन्न प्रजातियों के आक्रामक पौधों की प्रजातियां पाई गई हैं जो उन घास के मैदानों की,घास की उन किस्मों को तेजी से विनाश कर रहीं हैं,जो उक्त वर्णित सभी संकटग्रस्त जीवों का मुख्य भोजन है ! इन आक्रामक प्रजातियों की घासों की अनियंत्रित और तीव्र विस्तार से असम के विश्वप्रसिद्ध काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान के साथ-साथ पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में उपस्थित इन जानवरों की खानेवाली घासें विलुप्त हो जाने का गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है,जिससे भविष्य में इन जानवरों के खाने के लाले पड़ जाएंगे, फलस्वरूप उक्त वर्णित सभी संकटग्रस्त जीव भूखों मरने को अभिशापित हो सकते हैं !_

               _इस संबंध में काजीरंगा नेशनल पार्क के फील्ड निदेशक ने समाचार पत्रों को बताया है कि,_ *_"हमने इन आक्रामक प्रकृति के पौधों की कई प्रजातियां देखी हैं,जिनमें ज्यादातर वर्ष भर फलने-फूलनेवाली जड़ी-बूटियां ही हैं,जिन्हें खरपतवार के रूप में पहचाना जाता है,जो घास के मैदानों पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इसके अलावा इनमें से कुछ पौधे ऐसे भी हैं जो भूगर्भीय जल को भी जहरीला बना देते हैं ! "_* _कृषि और मृदा वैज्ञानिकों द्वारा इस पार्क में हानिकारक पौधों की 18 आक्रामक प्रजातियों को पहचाना गया है,जिसमें प्रमुख तौर पर कुछ अग्रलिखित हैं यथा बॉम्बेक्स सेइबा,ट्रेविया नुडिफ्लोरा-गुटेल-बी,क्रैटेवा नूरवाला, लेगरस्ट्रोमिया स्पेशोसा और सेस्ट्रम ड्यूर्नम आदि,लेकिन इन अत्यंत हानिकारक घासों में 'सेस्ट्रम ड्यूर्नम ' नामक एक घास उच्च औषधीय महत्व की एक घास है,जो विटामिन डी-3 की बहुत ही अच्छी स्रोत है,इस विशिष्ट औषधीय गुण के कारण इस घास को तस्करों और अवैध व्यापार करनेवालों द्वारा अक्सर तस्करी की जाती रही है !_

               _मानस नेशनल पार्क में बायोस्फीयर रिजर्व अथॉरिटीज या Biosphere Reserve Authorities और वन विभाग के सहयोग से जैव विविधता संगठन 'आरण्यक ' द्वारा पहले से ही एक आवास बहाली परियोजना के तहत इन हानिकारक घासों को हटाने के लिए परियोजना चल रही है। वैज्ञानिकों और वन विशेषज्ञों ने सरकार से घास के मैदानों पर निर्भर पशुओं के दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए इन हानिकारक घासों से मुक्ति पाने के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की है,इसके लिए काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में भी भारतीय वन्यजीव संस्थान की परियोजना 'आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन ' के तहत संबंधित अधिकारियों ने इन हानिकारक वनस्पति को प्रायोगिक रूप से खत्म करने की सरकार से अनुमति मांगी है।_

             _काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के एक अन्य अधिकारी के अनुसार बाढ़ का पानी कम होने के बाद इन हानिकारक घासों के उन्मूलन के लिए पोबितोरा तक इस योजना को बढ़ाने का कार्यक्रम है,इन अभ्यारण्यों में लगभग 30 प्रतिशत घास के मैदान मुख्य रूप से दो अत्यंत हानिकारक घासों की प्रजातियों क्रमशः क्रोमोलेना ओडोंटा और मिकानिया माइक्रान्था के आक्रमण से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं।_


 *_अत्यधिक प्रदूषण और अतिदोहन से मनुष्य सहित दुनिया भर के सभी जीव गंभीर संकट में !_*   

              _________________

            

               _मनुष्य प्रजाति द्वारा इस धरती के गर्भ,जल,वन,वायु,पर्वत,रेगिस्तान आदि के लगातार अकथनीय दोहन से हमारी धरती के पर्यावरण का सबसे बड़ा नुकसान इस रूप में सामने आया है कि दुर्लभ प्रजाति वाले जीव-जंतु और वनस्पतियां बड़ी तेजी से विलुप्त होती जा रही हैं। जो बची भी हैं,उनके सामने उनके अस्तित्व का गंभीर संकट पैदा हो गया है। अत्यंत दु:ख की बात है कि यह गंभीर खतरा सिर्फ जमीन पर रहने वाले प्राणियों पर ही नहीं मंडरा रहा है, अपितु समुद्री जीवों और वहां की वनस्पतियों को भी इस संकट से भयंकरतम् रूप से जूझना पड़ रहा है। जाहिर है ऐसे में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती हजारों दुर्लभ प्रजाति वाले उन प्राणियों को बचाने के लिए शीघ्र प्रयास करने की भी है, साथ ही उन प्रजातियों को भी संरक्षित करना भी चुनौती भरा काम है जिन पर निकट भविष्य में ही उनके अस्तित्व ही समाप्त हो जाने का गंभीर खतरा पैदा हो गया है !_

  


 *_जैव व वानस्पतिक विविधता में भारतीय भूभाग बहुत सम्पन्न_*

              ____________



         _भारत के संदर्भ में देखें तो यहां की वन्यजीव संपदा दुनिया के वन्यजीव संपदा के अनुपात में बहुत ही समृद्धतम् है। भौगोलिक रूप से भारत की स्थिति जितनी विभिन्नताओं से युक्त है,उसी के अनुरूप यहां मिलने वाले जीव-जंतुओं की प्रजातियों की संख्या और उनकी विभिन्नताओं और विविधताओं से परिपूर्ण हैं,_*_अत्यंत खुशी की बात है कि जितनी प्रजातियों के वन्यजीव और पेड़-पौधे भारत में पाए जाते हैं,उतनी विविधताओं वाले जीव और वनस्पतियां दुनिया के किसी एक देश में बहुत विरले ही पाए जाते हैं। फिर भारत का वन क्षेत्र भी वानस्पतिक समृद्धि के रूप में बहुत ही धनी है। एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया भर में पशु-पक्षियों की अभी तक 1564647 प्रजातियों को खोजा गया है,जिनके 6.56प्रतिशत मतलभ जीव-जंतुओं की 102718  प्रजातियां भारत में ही बसतीं हैं !_* _वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हमारी धरती पर कुल 30लाख से 10करोड़ तक समग्र पशु-पक्षियों और जलघरों की संख्या है,जिनमें से अभी तक केवल 1564647पशु-पक्षियों और जलघरों की जानकारी हम मानवों को हो पाई है !_


 *_भारत में वनों व वन्य जीवों का संहार भी अत्यंत द्रुतगति से !_*  

             _________

 

            _जाहिर है,वन संपदा के मामले में भी हम भाग्यशाली हैं। परन्तु बहुत दु:ख और अफसोस के साथ यह लिखना पड़ रहा है कि पिछले कुछ दशकों में इन सभी जीवों और वनस्पतियों पर मानवीय हवस और लालच की गिद्ध दृष्टि से यहां के असंख्य जीवों के आश्रय स्थल यहां के वनों का विध्वंस बहुत तीव्र गति से किया जा रहा है ! उन पर किसी न किसी बहाने से संकट के बादल छाते जा रहे हैं। इसलिए बड़ा सवाल यह है कि इन्हें बचाया कैसे जाए,ताकि आने वाले वक्त में हमारी धरती के जीव-जंतु और वनस्पतियां विलुप्ति के कगार पर न पहुंचने लगें। ऐसी ही ताजा चिंता असम के कांजीरंगा,मानस राष्ट्रीय उद्यान के साथ-साथ पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में हाथियों और दलदली हिरणों के बारे में भी देखने को मिल रही है। उदाहरणार्थ जर्नल ऑफ अंडमान में प्रकाशित एक लेख के अनुसार चीन,जापान और कोरिया में दुर्लभ मान ली गई कैलिओप या Calliope नामक एक अति खूबसूरत चिड़िया भारत के समुद्रों से घिरे राज्य अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में पुनः पाई गई है !_

             *_इसी प्रकार इसी राज्य में जूथेरा सिट्रिक Zoothera citricनामक नारंगी सिर और शरीर तथा नीले पंखों वाली एक चिड़िया भी अभी दिखी है,अरूणाचल प्रदेश में विलुप्त प्राय ट्रामेरेसुरूज सालाजार सांप या Tramaresuruj Salazar Snak ,केरल राज्य के शेंदुनी वन्यजीव अभयारण्य में नीले रंग के अद्वितीय,अतुलनीय सौंदर्य वाले प्रोटोस्टिकटा साइनीफेमोरा नामक ड्रैगन फ्लाई या Dragon fly called Protosticata sinifemoraऔर अन्नामलाई विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बंगाल की खाड़ी में एक अद्भुत मछली पैरापर्सिस अन्नामलाई योसुवा या Paraparesis Annamalai Yosuwa को खोजा है ! पिछले 270वर्षों में ढूंढी गई 12.5लाख प्रजातियों में केवल 34प्रतिशत प्रजातियों को सरकारी वन्यजीव विशेषज्ञों द्वारा ढूंढा गया शेष 66प्रतिशत प्रजातियों को शौकिया और प्रतिबद्ध लोगों द्वारा ढूंढा गया ! अब इन प्रजातियों को बचाना हम मानवों का नैतिक और पावन कर्तव्य है, क्योंकि  विलुप्ति के कगार पर खड़े जीव अब पुनः फिर विलुप्त हो गए,तो फिर से उन्हें इस धरती पर कभी भी नहीं लाया जा सकता ! जैसे म्लेच्छ पुर्तगालियों के हवस के शिकार मारीशस के सुप्रसिद्ध डोडो पक्षी इस धरती से सदा के लिए विलुप्त हो गए,जिनका केवल एक अस्थिपंजर लंदन के संग्रहालय में रखा गया है !_*


 *_भारत को अपनी अमूल्य जैवसंपदा को बचाने का बहुत संजीदगी से प्रयास करने होंगे !_*

             __________ 


               _विश्वप्रसिद्ध काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में घास के मैदान नष्ट हो रहे हैं। इससे एक सींग वाले गैंडों,हाथियों और दूसरे जीवों के लिए भयंकरतम् मुश्किलें खड़ी होती जा रही हैं। इस संकट को एक नए तरह का ही पर्यावरणीय संकट कहा जा सकता है। असम के कांजीरंगा,मानस राष्ट्रीय उद्यान के साथ-साथ पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में हाथियों और दलदली हिरणों के लिए सबसे उपयुक्त घास के मैदान,जिन में पैदा होती न घासों पर इस धरती के उक्त वर्णित सबसे विशालतम् स्तनपाई प्राणी अब तक बढ़िया ढंग से पलते रहे हैं,वे मैदान अब ऐसी खरपतवार और हानिकारक तथा विषाक्त घासों से भरता जा रहा है जो इन मैदानों की पोषक घासों को तो खत्म कर ही देती है,उस मैदान के भूगर्भीय जल को भी जहरीला बना देगी ! इससे वन्यजीवों के लिए चारे और पानी का संकट भी भयंकरतम् रूप से गहराने लगा है। अब कांजीरंगा अभायरण्य की देखरेख करने वाले अधिकारियों ने इन्हें खत्म करने की योजना बनाई है। हालांकि ऐसी समस्या प्रकृतिजन्य है,लेकिन इसका समाधान तुरंत होना चाहिए। वरना काजीरंगा की वन्यजीव संपदा पर इसका बेहद खराब असर पड़ते देर नहीं लगेगी !_


 *_भारतीय वनों और वन्यजीवों के महाविनाश के लिए सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार और पूंजीपति परस्त सरकारें जिम्मेदार !_* 

             ____________

 

         _भारतीय वनों और यहां के अभयारण्यों में ऐसे जहरीले पेड़-पौधों के निकल आने के कारण प्राकृतिक और पर्यावरणीय नुकसान तो होते हैं,पर ऐसा नहीं कि इस तरह की समस्याओं से निजात न पाई जा सके।_ *_हकीकत यह है कि हमारे देश में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर परियोजनाओं की कोई कमी नहीं होती है, परन्तु भारत जैसे देश में इस दिशा में काम जिस गति से चलते हैं,उससे लगता है कि ऐसे सब काम सरकारें प्राथमिकता में शामिल ही नहीं करना चाहतीं है।_* _जहरीले पौधों की बारहमासी प्रजातियां सामने आ रही हैं। लेकिन समय से इनके निपटान का भी इंतजाम होना चाहिए था। काजीरंगा का यह मामला संभतया तब सामने आया है जब हालात गंभीर होने लगे। वन प्रबंधन और वन्यजीव संरक्षण सतत ध्यान और काम मांगते हैं,जिनका हमारे देश में पूर्णतया अभाव दिखता है ! यहां सभी कुछ रिश्वतखोरी भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है ! हमें यह बात बहुत ढंग से याद रखनी चाहिए,कि इस धरती के सभी संसाधन केवल हमारे उपभोग के लिए ही नहीं है, अपितु ये संसाधन आनेवाली हमारी हजारों पीढ़ियों के लिए भी है !_


         -निर्मल कुमार शर्मा 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक,राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष,बेखौफ, आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल - nirmalkumarsharma3@gmail.com

           

No comments:

Post a Comment

आप के विचार!

जर्मनी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार "द बॉब्स" से सम्मानित पत्रिका "दुधवा लाइव"

हस्तियां

पदम भूषण बिली अर्जन सिंह
दुधवा लाइव डेस्क* नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह

एक ब्राजीलियन महिला की यादों में टाइगरमैन बिली अर्जन सिंह
टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

मुद्दा

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

दुधवा में गैडों का जीवन नहीं रहा सुरक्षित
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

Post Top Ad

Your Ad Spot