वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

Breaking

बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jun 24, 2022

अब कांग्रेस घास से बनेगी बायो-प्लास्टिक



गाजर घास से पर्यावरण मित्र प्लास्टिक का अविष्कार 

इस धरती का पर्यावरण,मानव,पशु-पक्षियों और फसलों आदि सभी के लिए भयंकर संकट में डालने वाली गाजर घास जिसका वानस्पतिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस, Parthenium hysterophorus है,से इस दुनिया के समस्त देश बहुत ही त्रस्त है ! लेकिन इस भयावह विषाक्त और जहरीली गुणवाली घास से निजात दिलाने के लिए वैज्ञानिकों और शोधार्थियों द्वारा सतत प्रयास किए जा रहे हैं, अभी पिछले दिनों मध्यप्रदेश के कृषि वैज्ञानिक इस घास से कंपोस्ट खाद बनाने की एक ऐसी विधि विकसित किए हैं, जिसमें इससे बने कंपोस्ट या जैविक खाद रासायनिक खादों से हर लिहाज से उत्कृष्ट है ! इसके अलावे आइआइटी इंदौर के संरक्षण में कुछ वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसी जहरीली गाजर घास से एक ऐसी बायो प्लास्टिक बनाने में सफलता हासिल की है, जो पर्यावरण मित्र है,वह 40 से 60 दिनों के अंदर ही प्राकृतिक रूप से स्वतः ही नष्ट हो जाती है !_

                 _पर्यावरण में प्लास्टिक प्रदूषण से आज मानव प्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल बहुत ही त्रस्त और दुःखी है,ऐसे विकट समय में पर्यावरणमित्र इस प्लास्टिक का अविष्कार इस दुनिया के लिए एक बहुत ही सुखद अहसास और अनुभूति है ! मध्यप्रदेश के महाराजा रणजीत सिंह कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल साइंसेज के बायोसाइंस विभाग के एक प्रोफेसर और उसी कॉलेज के एक शोधार्थी ने मिलकर इस गाजर घास,जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चटक चाँदनी और चिड़िया बाड़ी कहते हैं,इसका बोटेनिकल नाम पर्थेनियम हिस्टेरोफॉरस या Parthenium hysterophorus है,से बायो - प्लास्टिक बनाने का शोधकार्य जुलाई 2020 में शुरू किया था,अब जाकर उनकी टीम को सफलता हाथ लगी है ! उनकी यह सफलता की कहानी को सुप्रतिष्ठित अमेरिकी जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग पत्रिका ने प्रकाशित किया है !

             इस बायो प्लास्टिक के आविष्कारक प्रोफेसर के अनुसार गाजरघास के सेल्युलोज से बने पर्यावरण मित्र इस बायो प्लास्टिक का गुण सामान्य प्लास्टिक जैसे ही है,यह उसके जैसे ही बहुत मजबूत है ! यह अर्धपारदर्शी है,इसकी एक विशेषता यह भी है कि यह नमक और 10 प्रतिशत सल्फ्यूरिक अम्ल के घोल में डुबोने पर भी नष्ट नहीं होता ! इसका मतलब यह बायो प्लास्टिक विभिन्न खाद्य पदार्थों की पैकिंग और स्टोरेज में भी प्रयुक्त की जा सकती है ! यह स्वाभाविक तौर पर केवल 45 दिनों में ही 80 प्रतिशत तक नष्ट भी होने लगता है ! इसका पर्यावरण पर कोई साइड इफेक्ट्स भी अभी तक परिलक्षित नहीं हो रहा है ! मौजूदा बायो प्लास्टिक से इसकी लागत भी आधी आ रही है ! इसके अतिरिक्त इस जहरीली घास का सदुपयोग जीवाणुनाशक,खरपतवारनाशक दवाइयों तथा इसकी लुगदी से विभिन्न तरह के कागज़ निर्माण में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है !

              यह गाजरघास उक्तवर्णित सभी के लिए अत्यंत हानिकारक है,उदाहरणार्थ वर्ष 1950 और 1955 के मध्य समय में यह अमेरिकी मूल की घास अमेरिका से आयातित गेहूँ के साथ इसके बीज भी भारत पहुँचकर बहुत तेजी से इस पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपना पैर पसार ली ! इस एक वर्षीय शाकीय बेहद घातक प्रजाति का केवल एक पौधा 1000 से 50000 तक बेहद हल्के बीज पैदा कर देता है,जो विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी अंकुरित होकर 3-4 महीनों में ही अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है !_ *_यह घातक घास मनुष्यों, पशुओं और फसलों के बहुत से रोगों की जननी है,मसलन यह मनुष्यों में दमा,एलर्जी,त्वचारोग, एक्जिमा,बुखार, खुजली और डरमेटाइटिस जैसे गंभीर रोग पैदा कर देता है ! तथा इसमें पाए जाने वाला एक विषाक्त पदार्थ फसलों के अंकुरण और उनके वृद्धि पर बहुत प्रतिकूल असर डालता है ! यह फसलों के लिए बहुत जरूरी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करनेवाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को भी कम कर देता है ! इसके परागकण बैंगन, मिर्च आदि जैसी सब्जियों पर एकत्रित होकर उनके परागण,अंकुरण और इनके फल विन्यास को बहुत बुरी तरह तहस-नहस कर देते हैं ! इससे पौधों की पत्तियों में क्लोरोफिल की बेहद कमी हो जाती है और उनके पुष्पों में असामान्यता पैदा हो जाती है ! इसकी वजह से फसलों की उत्पादन क्षमता में 40 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई है ! दुधारू पशुओं द्वारा इसकी अल्प मात्रा में खा लेने से ही उनके दूध में कड़वाहट आने लगती है अगर कोई पशु इसे ज्यादे मात्रा में खा ले,तो उसकी मृत्यु तक भी हो सकती है !_*

                _अगर कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इस अत्यंत बिषाक्त गाजरघास से कंपोस्ट खाद बनाने की विधि और वैज्ञानिक तथा शोधार्थियों द्वारा अभी हाल ही में बायोप्लास्टिक बनाने की प्रक्रिया व्यापारिक और बड़े स्तर पर सफल हो जाती है,तो यह मानवप्रजाति सहित इस जैवमण्डल के समस्त फसलों और अन्य पशुपक्षियों आदि सभी के लिए बहुत ही राहत की बात होगी,इसके अलावे इसको नष्ट करने के लिए एक प्रकृति में पाया जानेवाला बीटल और उसके लार्वा जिसका नाम जाइगोग्रामा बिकोलोरेटा या Zygogramma bicolorata है,इसका तेजी से भक्षण करते हैं,उनका बड़े स्तर पर पालन करके इसको नष्ट करने में उस कीट की फौज तैयार की जाय ! इन तमाम उपायों से इस विषाक्त और जहरीली गाजरघास से मुक्ति मिल सकती है !


_-निर्मल कुमार शर्मा, 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पाखंड, अंधविश्वास,राजनैतिक, सामाजिक,आर्थिक,वैज्ञानिक, पर्यावरण आदि सभी विषयों पर बेखौफ,निष्पृह और स्वतंत्र रूप से लेखन ', गाजियाबाद, उप्र,संपर्क - 9910629632,ईमेल - nirmalkumarsharma3@gmail.com

No comments:

Post a Comment

आप के विचार!

जर्मनी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार "द बॉब्स" से सम्मानित पत्रिका "दुधवा लाइव"

हस्तियां

पदम भूषण बिली अर्जन सिंह
दुधवा लाइव डेस्क* नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह

एक ब्राजीलियन महिला की यादों में टाइगरमैन बिली अर्जन सिंह
टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

मुद्दा

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

दुधवा में गैडों का जीवन नहीं रहा सुरक्षित
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

Post Top Ad

Your Ad Spot