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Oct 18, 2020

कोविड-19 का रहस्य: कहीं एचआईवी से तो ताल्लुक़ नही है कोरोना का?

 

Covid19 Photo courtesy: wikipedia

Hindi Translation :
  Covid-19 Is an Offensive Biological Warfare Weapon That Leaked Out of China’s Wuhan BSL4 Lab  by  Francis A. Boyle  


कोविड-19 : एक जैविक हथियार, जो वुहान के बीएसएल 4 लैब से लीक हुआ

प्रोफेसर फ्रांसिस ए. बॉयल

[26 जून, 2020 को जैविक और रासायनिक हथियारों के उन्मूलन" पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, महाराष्ट्र प्रौद्योगिकी संस्थान, विश्व शांति विश्वविद्यालय (MIT-PUNE) पुणे , भारत में दिया गया वक्तव्य]

मस्ते!
शांतिकामी जनों की इस उत्कृष्ट सभा में आपने मुझे अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित किया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।  शांति के इस उद्देश्य को मैंने अपने जीवन के पिछले पांच दशक दिए हैं। 1989 में जैविक हथियार सम्मेलन के लिए मैंने संयुक्त राज्य अमेरिका के घरेलू कार्यान्वयन कानून का मसौदा तैयार किया था, जिसे जैविक शस्त्र आतंक-विरोधी अधिनियम (BWATA) के नाम से जाना गया और संयुक्त राज्य अमेरिका कांग्रेस के दोनों सदनों ने जिसे सर्वसम्मति से अनुमोदित किया। राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (सीनियर) ने इस पर हस्ताक्षर कर इस कानून को लागू किया। मेरे इस BWATA मसौदा के पीछे की वजह थे, रीगन प्रशासन और उसके नव-अनुदारवादी (neoconservative) समूह, जो ‘डीएनए आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों’ की मदद से अवैध जैविक युद्ध हथियारों के अनुसंधान, विकास और परीक्षण के साथ गहराई से जुड़े थे। मैंने उस समय ‘काउंसिल फॉर रिस्पॉन्सिबल जेनेटिक्स’ में अपने दोस्तों और सहयोगियों की सहायता से इसे रोकने का निश्चय किया - हार्वर्ड, एमआईटी, स्लोन-केटरिंग, आदि से दुनिया के कुछ शीर्ष जीव वैज्ञानिक 1983 में इकट्ठे हुए। तुरंत बाद उन्होने मुझे भी जैविक हथियारों के खिलाफ साथ जुड़ने के लिए कहा।


अभी तक मैं कोरोनावायरस पर बहस एवं विश्लेषण के सिलसिले में भारतीय टेलीविज़न पर दो बार उपस्थित हुआ हूँ, वह भी महामारी एकदम प्रारम्भ में। एक बार भारतीय सी.एन.एन के चैनल पर जो सचमुच मज़ेदार था। दोनों ही बार मैंने आपको बताया कि मेरे शोध का निष्कर्ष है कि कोविड-19 एक आक्रामक जैविक युद्ध हथियार है जो चीन में वुहान BSL4 (biosafety level4) से बाहर लीक हुआ है। आपको समझना होगा कि चीन के वुहान का यह बीएसएल4, चीन का पहला ‘फोर्ट डेट्रिक’ है। मैं पुन: कहता हूँ, यह चीन का पहला फोर्ट डेट्रिक है। हम सभी जानते हैं कि फोर्ट डेट्रिक में क्या होता है। ऐतिहासिक रूप से वहाँ आक्रामक जैविक युद्ध हथियारों पर शोध, विकास, परीक्षण और भंडारन किया जाता है और कभी-कभी डीएनए जैविक इंजीनियरिंग तथा विशेष रूप से सिंथेटिक जीव विज्ञान के माध्यम से विशिष्ट आक्रामक जैविक युद्ध हथियारों पर  प्रयोग किया जाता है। यह वही है, जिसे रोकने के लिए मैंने जैविक हथियार आतंकवाद-रोधी अधिनियम 1989 की संरचना की थी। आज भी हमारा मुक़ाबला उसी से है।

मैं चीन विरोधी नहीं हूं। मैं कोई अनुदारवादी भी नहीं हूं, ना हीं मैं कोई युद्धप्रेमी हूं। लेकिन मैं मानता ​​हूँ कि इस वैश्विक महामारी की परिस्थितियों में मुझे लोगो से यह सच्चाई बतानी चाहिए कि हम सभी मनुष्यों के साथ क्या कुछ घटित हो रहा है, ताकि लोग समझें और तय करें कि इनका मुक़ाबला कैसे करना है।  हम सचमुच यहां विश्व युद्ध-3 लड़ रहे हैं, चीन के विरुद्ध नहीं, कोविड-19 के विरुद्ध। इससे पूरी मानवता को खतरा है। जैसा कि हम सबने अभी कल के आंकड़ों में देखा,  दुनिया में संक्रमण का उच्चतम स्तर संयुक्त राज्य अमेरिका में है, उसके बाद ब्राजील में और फिर भारत का स्थान है।(अब भारत दुसरे स्थान पर है- अनु.) इसलिए यह एक बहुत भयंकर लड़ाई है जिसमें हम सब शामिल हैं। 

मेरे वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर, जिसकी विस्तृत चर्चा मैं यहाँ नहीं करूंगा, कोविड-19 की उत्पत्ति वुहान के बीएसएल4 से एक जैविक युद्ध हथियार के रूप में हुई है। यह मूल रूप से सार्स के साथ शुरू हुआ है जो कोरोना का एक युद्धक संस्करण है। पूर्व में भी सार्स चीन के जैविक युद्ध प्रयोगशालाओं से बाहर निकल चुका है। वुहान बीएसएल4 में उन्होंने सार्स के एक पुन:संयोजित सिंथेटिक वायरस का निर्माण किया है। 

कुख्यात चमगादड़ द्वारा इसे उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में एक बीएसएल3 प्रयोगशाला में लाया गया जो कि  जैव सुरक्षा के हिसाब से कमतर स्तर की है। वास्तव में इन सभी जैव सुरक्षा स्तर प्रयोगशालाओं 3 और 4  को तुरंत नष्ट किया जाना चाहिए। इन सबों में रिसाव होता है। वुहान बीएसएल4  में भी ठीक ऐसा ही हुआ है। मैं नहीं कहता कि चीन ने जानबूझकर ऐसा किया है। यह एक रिसाव था।  फोर्ट डेट्रिक में भी रिसाव हुआ था। इन सभी बीएसएल4 में रिसाव होता है। इनका होना ही खतरनाक है। बीएसएल3 सहित इन सबको बंद होना चाहिए।

सो, वुहान बीएसएल4  इस सिंथेटिक पुनःसंयोजित सार्स वायरस को उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के बीएसएल3 में लाया, जो संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रसिद्ध जैविक युद्ध केंद्र है और जिसकी मैंने पूर्व में सार्वजनिक रूप से निंदा की है। ये जैव सुरक्षा प्रयोगशालाएँ 3 अथवा 4, उन तमाम तरह की घृणित जैविक नाजी युद्धक क्रिया कलाप करते हैं, जिनकी शायद आप कल्पना भी नहीं कर सकते। वे इस सार्स पर ‘गेन-ऑफ-फंक्शन तकनीक’ को प्रयुक्त करने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलीना के बीएसएल3 में ले कर गए थे। (गेन-ऑफ-फंक्शन एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा वायरस के खोल को, जो प्रोटीन से बना होता है, उत्क्रमित कर इसकी नई एवं बढ़ी हुई गतिविधि को जन्म देता है- अनु.) इस प्रयोग का अर्थ है, डीएनए आनुवंशिक इंजीनियरिंग और सिंथेटिक जीव विज्ञान का उपयोग कर इस वायरस को और भी अधिक घातक और संक्रामक बनाना। वास्तव में, इस नाजी मृत्यु विज्ञान के घृणित काम में न केवल उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार का अपना खाद्य और औषधि प्रशासन भी शामिल था, जिसके जैविक युद्ध में शामिल होने का एक लंबा इतिहास रहा है। इसी तरह हार्वर्ड जहां मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई, उस हार्वर्ड मेडिकल स्कूल का दाना-फ़ार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट भी, जिसे दुनिया नहीं तो देश में नंबर 1 माना जाता है और जो हार्वर्ड के विश्व प्रसिद्ध मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल परिसर का हिस्सा है, इस परियोजना में शामिल था।  (जब मैं हार्वर्ड में छात्र था तो हार्वर्ड छात्र स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत मेरा इलाज हुआ था।)

लंबे समय से कैंसर अनुसंधान और जैविक युद्ध विकास के बीच एक ओवरलैप रहा है। यह नाजी जैवयुद्धक मृत्‍यु-विज्ञान परियोजना, यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेस और डॉ टोनी फौसी के निर्देशन में चल रहे NIAID  (नेशनल इन्स्टीच्यूट ऑफ एलर्जिक एंड इन्फेक्सस डीजीज) द्वारा अनुमोदित और वित्त-पोषित था। टोनी फ़ौसी जबसे नवदक्षिणपंथी रीगन प्रशासन में NIAID के निदेशक बहाल हुए, तबसे इस नाजी जैवयुद्ध के घृणित मृत्यु-विज्ञान के काम में नाकों-नाक डूबे रहे। वे इसका अनुमोदन, वित्तपोषण और संरक्षण करते रहे। मेरा BWATA मसौदा विशेष रूप से इन्हीं फ़ौसी और उनकी तरह के अमरीकी नाजी जैवयुद्धक मृत्यु-वैज्ञानिकों को रोकने के लिए था। इस UNC बीएसएल3/वुहान बीएसएल4 परियोजना ने स्वीकार भी किया था कि उसने फोर्ट डेट्रिक से कोशिकाएं प्राप्त की थी। कुख्यात चीनी बैट क्वीन ने स्वयं ही बीएसएल4 में इस जैवयुद्धक मृत्यु-विज्ञान के गंदे काम को सँभाला, गेन-ऑफ-फंक्सन वृद्धि के लिए UNC बीएसएल3 में लेकर आई और वापस इस घातक संयुक्त जैव-तकनीक को वुहान बीएसएल4 तक पहुंचाया। 

महामारी के एकदम आरम्भ में ही साहसी भारतीय वैज्ञानिकों ने बता दिया था कि यह HIV है जिसे DNA आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा कोविड​​-19 में बदला गया है। मैंने वह अध्ययन पढ़ा था और मुझे उस पर विश्वास है। उनके पास उसकी तस्वीरें थीं। किन्तु, संदेह नहीं कि उस अध्ययन को वापस लेने के लिए उन पर भारी राजनीतिक दबाव पड़ा होगा। फ़्रांसिसी माइक्रोबायोलॉजिस्ट  मॉन्टैग्नियर, जिन्होंने एचआईवी से एड्स होने का पता लगाया था और जिसके लिए उन्हें चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था, ने भी उस अध्ययन की पुष्टि करते हुए कहा कि हाँ, कोविड-19 में DNA आनुवंशिक तकनीक द्वारा HIV को अभियन्त्रित किया गया है।  

वुहान BSL4 को यह कैसे मिला?  उन्होंने एक वैज्ञानिक को ऑस्ट्रेलिया भेजा जहां ऑस्ट्रेलियाई स्वास्थ्य बोर्ड के साथ काम करते हुए, उसने  डीएनए आनुवंशिकी द्वारा एचआईवी को सीधे SARS में शामिल कर दिया। मैंने पहले ही बताया कि यह एक हथियारबंद कोरोनावायरस है । वे उस घातक जैव प्रौद्योगिकी को वुहान BSL4 में वापस ले कर आए। इस बात की पुष्टि एक अन्य वैज्ञानिक शोध पत्र द्वारा की जा सकती है, जिसकी मैंने अपने साक्षात्कारों में पहले भी चर्चा की है। 

इस रहस्य के सम्बन्ध में अभी तक मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ। गोकि, विपरीत प्रमाण मिले तो मैं अपने निष्कर्ष पर पुनर्विचार के लिए भी प्रस्तुत हूँ। जबकि खुद वुहान बीएसएल4 ने ही यह दावा किया था कि उसने वायरस पर नैनो तकनीक प्रयुक्त करने में सफलता पा ली है। वायरस पर नैनो तकनीक! वायरस पर नैनो तकनीक का प्रयोग भला कर ही क्यों रहे हो? किसके भले के लिए? वे नैनो तकनीक से इसे एरोसोलाईज कर रहे हैं! वे बैक्टीरिया और वायरसों को एरोसोलाईज कर रहे हैं ताकि उसे हथियार की तरह मनुष्यों के फेफड़ों में हवा के माध्यम से पहुँचाया जा सके।   (एरोसोलाईजेशन की प्रक्रिया के अंतर्गत वायरस अथवा बैक्टीरिया को अत्यंत सूक्ष्म कणों में बदल दिया जाता है ताकि वह आसानी से हवा में घुल सके- अनु.) यह एरोसोलाईजेशन फोर्ट डेट्रिक भी करता है। एरोसोलाईजेशन सीधे-सीधे जैविक युद्ध हथियार का संकेत है। इसका कोई भी वैज्ञानिक अथवा चिकित्सकीय औचित्य नहीं है। वे स्वयं इसके खतरों से परिचित हैं और इसीलिए वुहान बीएसएल4 में काम करते हुए वे मूनसूट पहनते हैं और सांस के लिए पीठ पर ऑक्सीजन सिलिंडर रखते हैं। डेट्रिक बीएसएल4 में भी वे वैसा ही करते हैं। सभी बीएसएल4 में ये नाज़ी जैवयुद्धक मृत्यु-वैज्ञानिक यही करते हैं। वही काम यहाँ पुणे बीएसएल4 में भी होता है। मैंने तस्वीरें देखी है। आपको इस बारे में चाहे जो भी बकवास बताया जाए, यह भारत का फोर्ट डेट्रिक है। भारत विश्व के बड़े खिलाड़ियों अमरीका, चीन और रूस के साथ खेलना चाहता है। विशेषकर चीन के साथ जिससे इसकी पुरानी प्रतिद्वंद्विता है। इसलिए जैविक हथियार कन्वेंसन के बावजूद यहाँ पुणे में इन्होंने अपना फोर्ट डेट्रिक बनाया है।

इसलिए सम्पूर्ण परिस्थिति के बारे में मेरा आकलन  यही है कि हम जिससे निपट रहे हैं - वह स्टेरॉयड पर SARS है। विज्ञान के अनुसार सार्स की मारक क्षमता लगभग 14-15% की है। भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील और दुनिया भर में हम इससे जूझ रहे हैं। यह बेहद संक्रामक, अत्यधिक घातक एवं अस्तित्वगत रूप से खतरनाक है। दरअसल मानवता कोविड-19  के खिलाफ विश्व युद्ध 3 लड़ रही है। यह लाखों लोगों को मार डालेगा अगर हम सामूहिक रूप से यह नहीं समझ सके कि इसे कैसे रोका जाए।

हमें भारत के पुणे बीएसएल4 सहित सभी बीएसएल3 और बीएसएल4 को बंद करना होगा क्योंकि उनमें फिर से रिसाव होगा। उनमें रिसाव होते ही हैं। चीन में भी ऐसा ही हुआ। उपलब्ध सार्वजनिक रिकॉर्ड के आधार पर मैं समझता हूँ कि यह रिसाव नवम्बर' 2019 के पहले सप्ताह के आस-पास हुआ था।  इसका चीन के तथाकथित मांस बाजार से कोई लेना-देना नहीं था। यह चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा प्रचारित एक कृत्रिम कहानी है। उन्होंने इसके पहले सार्स जैविक हथियार के रिसाव की बात छुपाई थी जिसमें, आप जानते हैं कि लगभग 1,200 लोगों  की मृत्यु हुई। बाद में हम सार्स पर काबू पाने में सफल हुए। लेकिन यह तो स्टेरॉयड पर गेन-ऑफ़-फंकसन सार्स है जिसमें HIV मिला कर एरोसोलाइज़ किया गया है। इसलिए यह मूल सार्स की तुलना में अस्तित्वगत रूप से कहीं अधिक खतरनाक है। यही कारण है कि मैं भारतीय लोगों को बताने के लिए दो बार भारतीय टेलीविजन पर लाइव हुआ कि आप भारत में यहां क्या कर रहे हैं!! 

आज इस विद्वत सम्मेलन में मैं तीसरी बार अधिक विस्तार से वही सबकुछ बता रहा हूँ।  अपने पूर्व वक्ताओं के प्रति पूर्ण सम्मान के साथ मुझे कहना है कि नहीं, दुनिया की मुख्य समस्या आतंकवाद नहीं है, तथाकथित आतंकवादी संगठन भी नहीं है। मुख्य समस्या हमेशा से ही संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, रूस, चीन, फ्रांस, इज़राइल आदि जैसी आतंकवादी सरकारें रही हैं और  अब पुणे बीएसएल4 के साथ मुझे भारत का नाम लेते हुए अफ़सोस हो रहा है।

आपने ध्यान दिया है कि आपके पुणे बीएसएल4 में, ठीक वैसे ही पीठ पर ऑक्सीजन सिलिंडर लिए, मूनसूट पहने लोग चारों ओर घूम रहे हैं ताकि वे जैविक युद्धक हथियारों को एयरोसोलाइज कर मनुष्य के फेफड़ों तक पहुंचा सकें। यह सारी कहानी पीछे उसी नियोकॉनसर्वेटिव रीगन प्रशासन और उसके टोनी फौसी तक जाती है, जो जैविक हथियारों पर डीएनए आनुवंशिक अभियांत्रिकी लागू करने में शामिल हैं, और जिसे मैंने अपने BWATA कानून के साथ रोकने की कोशिश की थी। उस समय से दुनिया के प्रमुख औद्योगिक देशों के बीच जैविक युद्ध हथियारों की एक आक्रामक दौड़ चल रही है - संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस, फ्रांस, इजरायल और खेद सहित कहना पड़ता है कि अब भारत भी इसमें शामिल हो गया है। यहां भी वही चल रहा है। मनुष्य के रूप में हमारा इसी से सामना है। 

यह एक दीर्घकालिक समस्या है। पुणे सहित इन सभी बीएसएल3 और बीएसएल4 को तुरंत बंद करना चाहिए। यहाँ रिसाव होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में प्लम द्वीप पर कृषि विभाग के जैविक प्रयोगशाला से वेस्ट नाइल वायरस लीक हो गया । इसने पूरे देश में लोगों को संक्रमित किया। प्लम द्वीप पर उसी USDA जैविक युद्ध प्रयोगशाला से लाइम रोग लीक हुआ और पूरे देश में लोग संक्रमित हुए। यूएसडीए का एक लंबा इतिहास है, जो पौधों और जानवरों पर  नाज़ी  जैवयुद्धक प्रयोग करता है। 

संभवत: नवंबर में पहले सप्ताह के आसपास कोविड-19 वुहान बीएसएल4 में लीक हो गया। पहले मामले की सार्वजनिक जानकारी 16 नवंबर को हुई। पहले नही तो कम से कम उस समय भी, जब चीन सरकार को एहसास हुआ कि वहां रिसाव हो गया, वे झूठ बोलकर उसे छिपाते रहे। वैसे ही जैसा  उन्होंने सार्स के मामले में किया, जैसा संयुक्त राज्य अमेरिका के फोर्ट डेट्रिक, प्लम द्वीप और दुसरे जैवयुद्धक प्रयोगशालाओं में वे करते हैं। । वे इसे छुपाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं!  वे जैविक हथियार कन्वेंशन का उल्लंघन करते हैं और मानव सहित जानवरों और पौधों के अस्तित्व के लिए खतरनाक और घातक हैं।  

इसलिए मैं यहां अकेले चीन की बात नहीं कर रहा हूं। असल में अमेरिकी विदेश विभाग का एक प्रतिनिधिमंडल वुहान बीएसएल4 गया था। चीन लगातार अमेरिका से बीएसएल4 के निर्माण के लिए मदद और सलाह मांग रहा था - क्योंकि अमेरिका और इंग्लैंड में ही तो जैविक हथियारों और युद्ध के  विश्व-प्रसिद्ध विशेषज्ञ मौजूद हैं! प्रतिनिधि मंडल जब वापस आया तो वॉशिंगटन पोस्ट  में उसकी रिपोर्ट छपी कि वुहान बीएसएल4 में गंभीर सुरक्षा और प्रौद्योगिकी समस्याएं थीं। इसीलिए यह लीक हो गया, चीन ने इसे छुपाया और आज उसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं। यदि 1 से 16 नवंबर, 2019 के बीच कभी भी जब चीन को इस रिसाव के होने का अहसास हुआ, उसने बजाये इसे छुपाने के, तत्काल ही वुहान शहर और उसके आसपास के इलाके को प्रभावी ढंग से बंद कर दिया होता तो शायद हम विश्वव्यापी महामारी और इस पूरी आपदा से बच सकते थे।  

मैं फिर दुहराना चाहता हूँ कि यह शोध अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ तथा टोनी फौसी निदेशित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज द्वारा अनुमोदित और वित्त-पोषित था। वे सब इसके बारे में जानते थे और सभी इसका वित्त पोषण करते थे। वुहान बीएसएल4 भी WHO की एक अनुसंधान प्रयोगशाला थी। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन  चीन के पहले फोर्ट डेट्रिक का प्रायोजक है ! 

हार्वर्ड जहां मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई, वे इसमें शामिल थे, इसके बारे में सब कुछ जानते ही नहीं थे बल्कि वुहान बीएसएल4 के लिए प्रायोजक संस्थान भी थे। कल्पना कीजिए कि हार्वर्ड, चीन के फर्स्ट फोर्ट  डेट्रिक के लिए एक प्रायोजक संस्थान था और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और उसका दाना- फारबर  कैंसर संस्थान कोविड -19 के निर्माण में शामिल था। हार्वर्ड के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर की कुर्सी वहाँ थी। वे रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान में प्रयुक्त नैनो तकनीक के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने फोर्ट डेट्रिक के लिए काम किया। वुहान में उनकी अपनी नैनो टेक्नोलॉजी प्रयोगशाला थी। हार्वर्ड वास्तव में जानता था कि वह क्या कर रहा था!  इसलिए हमारा सामना उन नाजी जैविक युद्ध के मृत्यु वैज्ञानिकों की सोच से है जो दुनिया के सभी उन्नत औद्योगिक देशों में इस प्रकार के खतरनाक साजिश करने का काम करते हैं।

अपने वक्तव्य के अंत में मैं कहना चाहता हूं कि जैसा भारतीय वैज्ञानिकों ने सही ढंग से समझा था और जिसकी पुष्टि चिकित्सा में फ्रेंच नोबेल पुरस्कार विजेता ने की थी, एचआईवी को डीएनए आनुवंशिक रूप से कोविड-19 में इंजीनियर किया गया है और जब ऐसा है तो आप कभी भी कोविड -19 के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी टीका विकसित करने में सक्षम नहीं होंगे। पिछले तीन दशकों के प्रयास के बावजूद आज भी एचआईवी/एड्स के लिए कोई टीका नहीं है।  व्यक्तिगत रूप से मुझे नहीं लगता कि कोविड-19 के लिए कभी भी कोई सुरक्षित और प्रभावी टीका बन सकेगा। यहां तक ​​कि यदि बिग फार्मा का कहना है कि उसने कोविड-19 के लिए एक टीका विकसित किया है, तो यह शायद अनुपयोगी और अधिक खतरनाक होगा।

मुझे लगता है कि हमारी चिकित्सकीय औषधियां ही हमारे लिए उत्तम हैं। चिकित्सा विधान और दवाओं ने कैंसर सहित एचआईवी/एड्स की मृत्यु दर को भी काफी कम कर दिया है।  हमने  पिछली पीढ़ी के लिए कैंसर का एक टीका खोजने की कोशिश की थी और विफल रहे थे। लेकिन दवाओं ने काम किया।  मैं यहाँ भारत में सम्मानपूर्वक यह सलाह देना चाहता हूं कि आप अपने शीर्ष वैज्ञानिकों को चिकित्सा विधान और दवाओं पर काम करने दें। यही वह जगह है जहां आपको अपना पैसा, समय, वैज्ञानिक प्रतिभा, संसाधन और विशेषज्ञता डालनी चाहिए।

धन्यवाद।

(हिंदी अनुवाद : शैलेन्द्र राकेश)

[फ्रांसिस बॉयल, यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस कॉलेज ऑफ लॉ में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर हैं। वे मानव अधिकारों, युद्ध अपराधों और नरसंहार, परमाणु नीति और जैव युद्ध के क्षेत्रों में कई अंतरराष्ट्रीय निकायों के सलाहकार रहे है। 1991-92 तक, उन्होंने मध्य पूर्व शांति वार्ता के लिए फिलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल के कानूनी सलाहकार के रूप में कार्य किया है।

प्रोफेसर बॉयल ने अमेरिकन फ्रेंड्स सर्विस कमेटी के सलाहकार के रूप में एमनेस्टी इंटरनेशनल के निदेशक मंडल में और काउंसिल फॉर रिस्पॉन्सिबल जेनेटिक्स के सलाहकार के रूप में कार्य किया है। उन्होंने जैविक हथियार सम्मेलन के लिए अमेरिकी घरेलू कार्यान्वयन कानून का मसौदा तैयार किया था, जिसे 1989 के BWATA के नाम से जाना जाता है]

© 2020 फ्रांसिस ए. बॉयल। सभी अधिकार सुरक्षित।


 Source: Jan Forum janVkalp@googlegroups.com


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