वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

Breaking

बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Sep 26, 2020

भैंस की उन्नत प्रजातियों के विकास में मददगार हो सकता है नया आनुवंशिक अध्ययन

 

फ़ोटो साभार: medium.com

नई दिल्ली, 25 सितंबर (इंडिया साइंस वायर): भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन की भूमिका अहम मानी जाती है और पालतू पशुओं में भैंस का महत्व सबसे अधिक है। देश में होने वाले कुल दूध उत्पादन में भैंस से मिलने वाली दूध की हिस्सेदारी लगभग 55 प्रतिशत है। इसके अलावा, मांस उत्पादन और बोझा ढोने के लिए भी भैंस का उपयोग बड़े पैमाने पर होता है। भैंस के महत्व को देखते हुए वैज्ञानिक इसकी उन्नत किस्मों के विकास के लिए निरंतर शोध में जुटे हुए हैं। 

भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में भैंस की विभिन्न प्रजातियों में आनुवंशिक सुधारों के प्रभाव की तुलना दुनिया की अन्य मवेशी प्रजातियों के साथ की गई है। इस अध्ययन से पता चलता है कि दोनों प्रजातियों के जीनोम के हिस्से नस्ल सुधार के बाद समान रूप से विकसित होते हैं। आनुवंशिक रूप से अनुकूलन स्थापित करने के इस क्रम में वे जीन भी शामिल हैं, जो भैंसों में दूध उत्पादन, रोग प्रतिरोध, आकार और जन्म के समय वजन से जुड़े होते हैं। 

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने पालतू भैंस के जीनोम का अध्ययन करने के लिए उपकरण विकसित किए हैं। इन उपकरणों के उपयोग से सीसीएमबी के वैज्ञानिक (वर्तमान में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय) प्रोफेसर सतीश कुमार और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के शोधकर्ताओं के संयुक्त अध्ययन में ये तथ्य सामने आए हैं।

इस अध्ययन के नतीजों के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि इन मवेशियों के जीनोम में पायी जाने वाली समानताएं बताती हैं कि अलग-अलग पशु आनुवंशिक सुधार के बाद अनुकूलन स्थापित करने में एक समान सक्षम हैं। इस अध्ययन में ऐसी मवेशी प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिनमें वांछनीय गुण प्राप्त करने के लिए उनमें चयनात्मक आनुवंशिक सुधार किए गए थे। उल्लेखनीय है कि सीसीएमबी के शोधकर्ता एक दशक से भी अधिक समय से भैंस के आनुवंशिक गुणों से संबंधित अध्ययन कर रहे हैं। 

इस अध्ययन में, भारत और यूरोप के अलग-अलग स्थानों से सात प्रजातियों की उन्यासी भारतीय भैंसों के जीनोम को अनुक्रमित किया गया है। अध्ययन में भारत की बन्नी, भदावरी, जाफराबादी, मुर्रा, पंढरपुरी और सुरती भैंस प्रजातियां शामिल हैं। भैंस की ये प्रजातियां पूरे भारत में भौगोलिक क्षेत्रों की एक श्रृंखला को कवर करती हैं और अपने भौतिक लक्षणों, दूध उत्पादन एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों के मुताबिक अनुकूलन के संदर्भ में विविधता को दर्शाती हैं।

सीसीएमबी के निदेशक डॉ राकेश मिश्रा ने कहा है कि “भारत एवं अन्य एशियाई देशों के कृषि एवं डेयरी कारोबार से जुड़े लाखों किसान भैंस और अन्य मवेशियों पर आश्रित हैं। बढ़ती आबादी के साथ भोजन की मांग भी निरंतर बढ़ रही है। ऐसे में, यह महत्वपूर्ण है कि भैंसों तथा अन्य पालतू पशुओं के प्रबंधन के लिए स्वस्थ तरीके खोजे जाएं। जीन-संपादन अथवा पारंपरिक चयनात्मक प्रजनन के जरिये उपयुक्त जीन का चयन - दोनों ही उन्नत नस्लों के विकास लिए बहुत प्रभावी तरीके हैं।”

प्रोफेसर सतीश कुमार कहते हैं कि “यह अध्ययन जानवरों की विभिन्न प्रजातियों में लाभकारी लक्षणों के साथ जुड़े जीन्स का पता लगाने के तरीके खोजने का मार्ग प्रशस्त करता है। जीनोम-संपादन तकनीक ऐसे जीन्स की चुनिंदा रूप से वृद्धि करने और पालतू पशुओं की उत्पादकता एवं सेहत में सुधार को सुनिश्चित करने में मददगार हो सकती है।”

शोध पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित यह अध्ययन भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुदान पर आधारित है। (इंडिया साइंस वायर)


ISW/USM/25-09-2020 

India Science Wire




No comments:

Post a Comment

आप के विचार!

जर्मनी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार "द बॉब्स" से सम्मानित पत्रिका "दुधवा लाइव"

हस्तियां

पदम भूषण बिली अर्जन सिंह
दुधवा लाइव डेस्क* नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह

एक ब्राजीलियन महिला की यादों में टाइगरमैन बिली अर्जन सिंह
टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

मुद्दा

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

दुधवा में गैडों का जीवन नहीं रहा सुरक्षित
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

Post Top Ad

Your Ad Spot