वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Sep 28, 2020

चालीस साल पूर्व मर चुके घोड़े के डीएनए से घोड़े के बच्चे का सफलतापूर्वक जन्म !

 

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        आज के अत्याधुनिक वैज्ञानिक युग में वैज्ञानिक कुछ ऐसे आश्चर्यजनक व हैरतअंगेज कार्य करने में सफलता प्राप्त कर ले रहे हैं,जिनकी पुराने समय में हमारे पूर्वज कल्पना तक भी नहीं कर सकते थे। उदाहरणार्थ अभी पिछले महिने अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 40 साल पूर्व मृत्यु को प्राप्त एक अति दुर्लभ और विलुप्ति के कगार पर खड़े प्रजेवाल्स्की प्रजाति के घोड़े के डीएनए (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड )से क्लोनिंग पद्धति का सहारा लेते हुए एक घोड़ी के सेरोगेसी गर्भ के द्वारा अभी पिछले महीने 6 अगस्त 2020 को एक स्वस्थ्य घोड़े के बच्चे को पैदा करने में सफलता प्राप्त किए हैं। जिस मृत घोड़े के डीएनए से इस घोड़े के बच्चे का जन्म कराया गया है,उस घोड़े की मौत 1980 में ही हो गई थी,मृत्यु से पूर्व उसके डीएनए को लेकर उसे सैनडिएगो जू ग्लोबल फ्रोजेन जू में सुरक्षित रख लिया गया था। इस मृत घोड़े की नस्ल को बचाने के लिए सैनडिएगो जू ग्लोबल ने रिवाइव एंड रिस्टोर संस्था के साथ मिलकर यह प्रयोग किया था। इस प्रजाति के घोड़े अब दुनिया में बहुत ही कम बचे हुए हैं,जंगलों में स्वतंत्र रूप से विचरते हुए इन घोड़ों को अंतिम बार सन् 1969 में देखा गया था। रिवाइव एंड रिस्टोर संस्था के डायरेक्टर के अनुसार 'जिस एडवांस रिप्रोडक्टिव तकनीक 'क्लोनिंग 'के सहारे इस बच्चे का जन्म कराया गया है,उस तकनीक की मदद से इस दुनिया से विलुप्त हो गई या विलुप्ति के कगार पर खड़े जीवों की प्रजातियों को पुनः इस दुनिया में लाया जा सकता है। ' ज्ञातव्य है कि रूस में बहुत वर्षों पहले ही इस धरती से विलुप्त हो चुके बारहसिंहों और बाइसनों की कुछ प्रजातियों की नस्लों को इसी तकनीक की मदद से सफलतापूर्वक इस दुनिया में लाया जा चुका है।
        अब ऐसे बहुत से यक्ष,अनुत्तरित तथा संभावित प्रश्न हैं कि क्या हजारों,लाखों या करोड़ों सालों पूर्व कुछ विशेष प्राकृतिक,भौगोलिक या खगोलीय दुर्घटनाओं की वजह से इस धरती से विलुप्त हो चुके जीवों को इस धरती पर पुनः लाया जा सकता है ?क्या उन प्रागैतिहासिक काल में कुछ विशेष कारणों से विलुप्त हो गये उन जीवों को पुनर्जीवित करने के बाद आज का धरती का पर्यावरण उनके अनुकूल है ?आखिर अगर वे जीव जिन विषम परिस्थितियों की वजह से उस समय विलुप्त हुए थे,वे परिस्थितियां अब नहीं हैं ?अगर वही विषम परिस्थितियां अभी भी हैं,तो पुनर्जीवित किए गए ये जानवर उन विषम परिस्थितियों को कैसे झेल पाएंगे ?ये ढेर सारे तार्किक व न्यायोचित्त प्रश्न हैं। वैसे प्राकृतिक, भौगोलिक व खगोलीय दुर्घटनाओं से जीवों की विलुप्तिकरण की बात को छोड़ दें,इसकी जगह मानवजनित कुकृत्यों यथा अत्यधिक शिकार करने,जंगलों के अनियंत्रित सर्वनाश करने,ग्लोबल वार्मिंग,भूख आदि से विलुप्त जानवरों जैसे प्रजेवाल्स्की घोड़े,मारीशस के डोडो पक्षी,गंगेज डॉल्फिनें,भारतीय चीतों,तस्मानियाई बाघों, भारतीय गिद्धों आदि जीवों को उक्त क्लोनिंग पद्धति से अगर पुनर्जीवित कर दिया जाय और उनका ढंग से संरक्षण और देखभाल किया जाय तो कोई कारण नहीं कि आज की वर्तमान समय की दुनिया में भी ये इस दुनिया से विलुप्त हो चुकीं प्रजातियां फिर से अपनी दुनिया न बसा लें !
        इसके बारे में लंदन नेचुरल हिस्ट्री के एक जीवाश्म वैज्ञानिक हजारों साल पहले विलुप्त हो गए अफ्रीकी हाथी से भी लगभग दुगुने आकार के विशाल रोंएदार हाथी,जिसे मैमथ कहते हैं,को पुनर्जीवित करने के अनुमान के बारे में कथन है कि 'इन जानवरों के अवशेष हजारों साल पहले ही नष्ट हो चुके हैं,परन्तु फिर भी इस डीएनए तकनीक के सहारे उनके जिनोम की टूटी हुई लड़ियों की पूर्ति करने और जिनोम को पूरा करने के लिए उसे पुनः जोड़ने का प्रयास किया जा सकता है,इसके लिए मैमथों के निकटवर्ती जीवित रिश्तेदार जानवर हाथियों के डीएनए को जोड़कर पूरा करने की कोशिश की जा सकती है। इसी तकनीक से कुछ सालों पूर्व डॉली नामक भेड़ में अपनाई गई थी,इसके अतिरिक्त बीस सालों पूर्व स्टीवन स्पिलबर्ग निर्देशित व बनाई गई जुरासिक पार्क नामक फिल्म में एक मेढक के डीएनए को डॉयनोसॉर के डीएनए की गायब लड़ियों में जोड़कर डॉयनोसॉर को पुनर्जीवित करने की वैज्ञानिक विधि को अपनाया गया था। पुनर्जीवित छोटे से लेकर अतिविशाल जानवरों के पालन-पोषण के लिए वर्तमान समय में रूस के साइबेरिया इलाके के हरे-भरे घास के अतिविशाल मैदान 'प्लेस्टोसिन पार्क 'सबसे बढ़िया जगह साबित होगी,जहाँ बारहसिंहों,बाइसनों के अतिरिक्त सबसे विशालकाय रोएंदार जानवर हाथियों के प्रागैतिहासिक काल के पूर्वज मैमथों का भी परिपोषण व लालनपालन बहुत ही अच्छे ढंग से हो सकता है।

निर्मल कुमार शर्मा, गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 

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