वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jun 22, 2020

खूबसूरत तितलियों और भौंरों के बिना ये दुनिया...


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      जरा कल्पना करें..हमारी ,आपकी दुनिया में मनोरम् पार्क में ,फूलों की बगिया में खूब रंग-विरंगे आकर्षक फूल खिले हों ,मस्त ,मंद-मंद ,ठंडी-ठंडी हवाएं चल रही हो ,गुनगुनी धूप में आप सपरिवार सप्ताहांत पर किसी खूबसूरत पार्क में इस तनावपूर्ण दुनिया में सप्ताह भर कार्य करने के बाद अपने बोझिल तन-मन को थोड़ा सूकून देने के लिए उस पार्क में आएं हों ,लेकिन आप अपने बचपन को याद करते हुए इस पार्क में एक चीज की रिक्तता महसूस कर रहे हों और सोच रहे हों कि ,'बचपन में हम अपने पिताजी के साथ गांव के पंचायत घर पर या किसी बड़े अस्पताल के प्रांगण में जाते थे ,तो वहाँ खिले फूलों पर रंग-बिरंगी ,तरह -तरह की पीली ,सफेद ,चितकबरी ,काली ,बैंगनी रंग की तितलियाँ और काले-काले भौंरे फूलों पर एक तेज गुंजन की आव़ाज के साथ मंडराते रहते थे ,जिन्हें देखकर आपके बालमन में उनके प्रति एक ग़जब का आकर्षण ,कल्पना और उत्सुकता की उड़ाने सहज ही पैदा होती थीं , वे तितलियाँ ,वे भौंरे यहाँ तो कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे हैं ! '  

       यह मात्र कल्पना की बात नहीं है । पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार इस धरती पर बेतहाशा शहरीकरण ,कृषि में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से ,कथित आधुनिकता ,गगनचुंबी इमारतों के निर्माण करते हुए शहरों के तेजी से विस्तार करते हुए कथित  विकास ,बड़े बाँधों के निर्माण और सड़क-चौड़ीकरण के लिए पेड़ों ,जंगलों ,वनों आदि का बिल्डर मॉफियाओं ,ब्यरोक्रट्स और सत्ता के कर्णधारों के तिकड़ी के गठबंधन की मिलीभगत से जो पर्यावरणीय क्षति हो रही है ,उससे स्तनधारी जीवों ,सरीसृपों ,पक्षियों ,मछलियों और बड़े जीवों की तुलना में छोटे आकर्षक और उपयोगी कीटपतंगों यथा तितलियों ,भौरों ,मधुमक्खियों , ड्रैगन फ्लाई ,वीरबहूटियों ,बीटल्स { गुबरैलों } ,मेंटिस { गाँवों में इसे भगवान जी का घोड़ा भी कहते हैं } ,जूगनुओं ,चींटियों  आदि-आदि कीटों की प्रजातियाँ आठ गुना ज्यादे गति से इस धरती से विलुप्त हो रहीं हैं । कुछ ही दिनों में इनकी 40 प्रतिशत प्रजातियाँ इस धरती से मैमथों और मारिशस के डोडो पक्षी ,भारत के चीतों की तरह ये धरती से विलुप्त होकर सदा के लिए काल के गाल में समा जाएंगे ।

      दो अमेरिकी वैज्ञानिक स्टीवन बुकमन व गैरी नभान ,मिलकर संयुक्त रूप से शोधकर परागण करने वाले मित्र कीटों के तेजी हो रहे विलुप्ति के  कारणों पर गहन शोध कर रहे हैं । उनके अनुसार विशेषकर मधुमक्खियों को सबसे ज्यादे क्षति कीटनाशक दवाओं ,पेड़ों तथा वनों की तेजी से कटाई और मोबाईल टॉवरों से निकलने वाले 'इलेक्ट्रो मैगनेटिक प्रदूषण ' से हो रही है । मोबाईल टॉवरों से निकलने वाले इस 'इलेक्ट्रो मैगनेटिक प्रदूषण ' से लाखों मधुमक्खियाँ नेक्टर लेकर अपने छत्ते को ही नहीं लौट पातीं हैं और वे रास्ते में ही मर-खप जातीं हैं । सन् 2008 में अमेरिका में इस 'इलेक्ट्रो मैगनेटिक प्रदूषण ' से वहाँ के 33प्रतिशत मधुमक्खियों के छत्ते नष्ट हो गये , फ्रांस में तो यह नुकसान और ज्यादे हुआ है। इसके अतिरिक्त 'कॉलनी कोलैप्स डिसऑर्डर ' नामट बिमारी की शिकार होकर बहुत बड़ी संख्या में मधुमक्खियों की मौत हो रही है । 

       वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिग की वजह से इस धरती के तापक्रम के बढ़ने से उन हानिकारक कीटों की यथा साधारण मक्खियों ,मच्छरों और तिलचट्टों की संख्या बहुत तेजी और अप्रत्याशित तरीके से वृद्धि हो रही है , क्योंकि उनकी प्रजनन क्षमता बढ़ गई है ,इसके ठीक विपरीत लाभदायक कीटों यथा बीटल्स ,जूगनू ,मधुमक्खियों और तितलियों की प्रजनन दर घट रही है । लाभदायक कीटों की संख्या घटने से इन कीटों पर आश्रित बहुत से जीवों जैसे पक्षियों ,चमगादड़ों , मछलियों आदि के विलुप्ति का खतरा भी बढ़ गया है । वैज्ञानिकों के अनुसार दुनियाभर में अरबों-खरबों मधुमक्खियों द्वारा फूलों से नेक्टर पाने की लालच में वे मनुष्यप्रजाति सहित इस समस्त जैवमण्डल की चुपचाप ,शान्तिपूर्वक असीम सेवा कर रहीं हैं , वे इस पृथ्वी के 75 प्रतिशत तक की वनस्पतियों ,जिसमें मानव खाद्य पदार्थ उत्पादिन करने वाले कृषि उत्पादक पौधे भी हैं ,का परागण करतीं हैं ,उनके न रहने पर खाद्यान्नों का उत्पादन आधा भी नहीं रह पायेगा । वैज्ञानिकों द्वारा किए गये एक आकलन के अनुसार केवल मधुमक्खियों द्वारा मानवप्रजाति के लिए परागण जैसे अतिमहत्वपूर्ण उनके किए गये उनके कार्य करने को आर्थिक तौर पर आकलन किया जाय तो ,वह 290 अरब डालर के बराबर होगा । अगर इसमें तितलियों ,भृगों ,भुनगों और भौंरों द्वारा किए जाने वाले परागण करने का आकलन भी जोड़ दिया जाय तो यह राशि कई गुना बढ़ जायेगी । 

     गहन शोध के बाद प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका  'बायोलोजिकल कंजर्वेशन ' में प्रकाशित लेख में यह बात सामने आई है कि पिछले 13 वर्षों में विकसित देशों में मानव की सबसे बड़ी कीटमित्र मधुमक्खियों सहित तितलियों ,भृंगों ,जुगनुओं आदि की एकतिहाई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं ,जो 75 प्रतिशत तक परागण जैसे इस जैवमण्डल के भोजन की आपूर्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करते हैं । सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रैंसिस्को सैवेज-बायो ने बताया है कि कीटों के विलुप्तिकरण में उनके आवास को नुकसान ,खेती में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग ,जंगलों का विनाश ,जलवायु परिवर्तन { ग्लोबल वार्मिंग } , तीव्र गति से हो रहे शहरीकरण आदि प्रमुख कारण हैं । ब्रिटिश वैज्ञानिक मैट शाईलो के मतानुसार तितलियों के अलावे नदियों के भयंकर प्रदूषण से मच्छरों को सफाचट करने वाले ड्रैगनफ्लाई का भी तेजी से नाश हो रहा है । छोटा सा कीट बीटल भी तेजी से विलुप्त हो रहा है जो प्राकृतिक अपशिष्ट को रिसाइक्लिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्य करता है ।

       इन महत्वपूर्ण लाभदायक कीटों को इस धरती से विलुप्तिकरण से बचाने हेतु इस मानवप्रजाति को अभी से गंभीरतापूर्वक प्रयास करने ही होंगे नहीं तो , इन मित्र कीटों के परागण जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य न होने पर इस धरती के समस्त जैवमण्डल के भोज्य पदार्थों यथा अन्न ,फल ,सब्जी व तमाम तरह के फूलों की प्रजातियों के साथ उन कीटों पर आधारित तमाम पक्षियों ,सरिसृपों ,उभयचरों , चमगादड़ों आदि की सम्पूर्ण प्रजातियों को विलुप्तिकरण से यह आधुनिक विज्ञान भी नहीं बचा सकता !अतः हमें अपने 'विकास ' के तौर-तरीकों पर पुनर्विचार करके उसे संतुलित दृष्टिकोण अपनाना ही होगा ताकि विकास भी हो और इस धरती के छोटे से छोटे कीट-पतंगों , मधुमक्खियों ,तितलियों ,भौरों ,भृगों आदि का भी अस्तित्व इस धरती पर बचा रहे । इस धरती के समस्त जैवमण्डल के सभी जीव एक-दूसरे से एक मजबूत डोर से बंधे हुए हैं व एक-दूसरे पर आश्रित भी है , एक भी जीवरूपी कड़ी के विनष्ट होने पर इस 'जैवमण्डल रूपी माला ' पूर्णतः बिखर जायेगी । अतः हर हाल में इस जैवमण्डल रूपी माला को बिखरने से बचाना ही होगा । 

-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद ,21-5-2020
nirmalkumarsharma3@gmail.com

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