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International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 5, 2020

डायबिटीज में फायदेमंद एक चावल की प्रजाति

Zinc Rice

पेट भरना ज़रूरी है? या पोषण!
धान की बेशकीमती देशी किस्मों को छोड़कर किसान अपना रहे है संकर नस्लें।
भारत भूमि ही है धान की जनक
पितरों से लेकर देवताओं तक को हम अर्पित करते है धान
माथे के चंदन से हवन की आहुतियों में इस्तेमाल होता है धान
जिंक राइस व लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला चावल पोषण व स्वास्थ्य के लिए बेहतर
अगर हम धान की बात मानव इतिहास में करें तो यह तकरीबन 12 से 14 हजार वर्ष पूर्व की घटना है जब धान की जंगली क़िस्म का मानव सभ्यता में आगमन हुआ इंडिका व जैपानिका धान की किस्म के तौर पर, भारत ताइवान बर्मा चाइना आदि देशों में इंडिका किस्म का उद्भव हुआ, कहा जाता है कि यह चावल भारत के उत्तरी पूर्व हिमालय की तलहटी में जन्मा, और जैपानिका जापान में, कालांतर में अफ्रीका में चावल का उपयोग मानव सभ्यता में सबसे बाद में दिखाई दिया और यह चावल की एक तीसरी किस्म थी ओराइज़ा गलेबेरीमा, जो कि अफ्रीका में मानव द्वारा 3500 वर्ष से उगाया जा रहा है।
इंडिका चावल ओराइज़ा सैटाइवा के प्रमाण ईरान में भी मिले जहां क़ब्र में यह चावल पाए गए, अलेक्जेंडर जब विश्वविजय के अभियान से वापसी कर रहा था भारत से, तब उसकी मृत्यु के उपरांत उसके लोगों द्वारा भारत से ले जाए गए चावल यूनान ले गया वहां से यह धान्य योरोप के तमाम देशों में पहुंचा, स्पेनिश लोगों ने इसे लैटिन अमरीकी देशों ब्राज़ील आदि में पहुँचाया, कालोनियल दौर में धान ने खूब सफ़र किया पूरे ग्लोब का, सोलहवीं सदी में धान एशिया से अमरीकी महाद्वीप की आबो हवा में पल्लवित होना शुरू ए हुआ।
धान की उतपत्ति निश्चित ही भारतीय उपमहाद्वीप है, बस मतभेद यह है कि कुछ वैज्ञानिक दक्षिण भारत मे धान की पैदाइश मानते है तो कुछ उत्तर पूर्व हिमालयी क्षेत्र को, कुलमिलाकर चावल भारत से ही चाइना जापान और योरोप अमरीका पहुंचा। इसे कोलंबियन अदला बदली भी कह सकते हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप के अतीत में सवर्प्रथम यजुर्वेद में चावल का ज़िक्र है, और महाभारत कालीन अवशेषों में चावल मिलने के प्रमाण है। इसके बाद चावल धर्म का महत्वपूर्ण धान्य बना, नवजात शिशु को सर्वप्रथम अन्न ग्रहण कराने में चावल का ही माड़ दिया जाता है, विवाह संस्कार में जोड़ें पर धान का छिड़काव, धान खुशी व नवजीवन का द्योतक बन गया, अब दुनिया मे मक्के के बाद धान ही मुख्य अनाज है।

धान की मातृ जीनस ओराइज़ा में 24 ज्ञात प्रजातियां हैं जिनमे तीन प्रजातियां ही कृषकों द्वारा उगाई गई, शेष वन्य प्रजातियां हैं, जिनका उपयोग हमारे वनवासी करते आए हैं। उन तीन प्रजातियों में ओराइज़ा सैटाइवा मुख्य है जो एशिया के अतिरिक्त अन्य भूभागों में उगाई जाती है, तथा शेष ओराइज़ा जैपानिका व ओराइज़ा गलेबेरीमा है जो क्रमशः जापान और अफ्रीका में मानव सभ्यता में उगाई जाती है.

आज हम आप से गुफ़्तगू करेंगे दो धान की प्रजातियों की जो बासमती धान से इतर मोटे धान की वैराइटी की है, एक खुशबू वाले तत्व की मौजूदगी से बासमती की महकती प्रजातियों ने मानव जाति को खूब लुभाया, किन्तु मोटे चावल की बेशकीमती औषधीय गुणों से हम राब्ता न रख सके, महज़ स्वाद और सुगन्ध के कारण।
दुनिया जब कुपोषण के दौर से गुजरी, अकाल और तमाम कृषि क्षेत्र की वैज्ञानिक नाकामियों के चलते दुनिया को एहसास हुआ कि स्वाद और सुगन्ध से इतर पोषण ज़्यादा जरूरी है, तब वैज्ञानिकों ने रुख किया वाइल्ड प्रजातियों की तरफ जिनमें प्रकृति का वरदान मौजूद है, उन चावल की प्रजातियों में छत्तीसगढ़ की मधुराज 55 जो कि चपाती गिरमिटिया जंगली प्राजाति से विकसित की गई, कहते हैं कि कभी गरीब मजदूर व किसान इस मोटे धान को उगाते थे, क्योंकि महीन व सुगन्धित धान पर अमीरों का अधिकार रहा हमेशा रोम से लेकर भारतीय साम्राज्य में, मंदिरों के मठाधीशों से लेकर राजाओं जमीदारों तक, आम जनता के नसीब में मोटा चावल ही रहा, पर मजे की बात यह है कि आम जनता ने जिन देशी धान की प्रजातियों का इस्तेमाल किया बिना आनुवंशिक छेड़ छाड़ के वह औषधीय व पोषक तत्वों से भरा हुआ था, अमीरों के उस धान से जो आनुवंशिक छेड़ छाड़ से बनाया गया, आपको बता दूं कि चावल ही ऐसा धान्य या वनस्पति है जिसमें जेनेटिकली माडिफिकेशन बहुत आसान है, नतीजतन कृषि वैज्ञानिक बेहूदा खेल खेलते रहते है चावल के संग और प्रकृति के विरुद्ध उनके इन प्रयोगों से जो मानव समाज को धान नसीब होता है वह नकली व वर्ण संकरता के कारण घिनौना व पोषक तथा औषधीय गुणों से विरक्त होता है।
क़भी रोम के शासकों व सम्भ्रांत व कुलीन नागरिकों में महीन व खुशबूदार चावल खाना और वह भी लेट कर सम्भ्रांतता की निशानी माना जाता था, किन्तु दुनिया के गरीब मुल्कों में जहां पोषण के लिए कुछ ही अनाज उपलब्ध थे वहां चावल की संकर प्रजातियों ने कुपोषण को बढ़ावा ही दिया, ऐसे में वन्य प्रजातियां कुपोषण से लड़ने में इंसानियत के काम आई और वैज्ञानिकों ने उन देशी प्रजातियों के नाम बदलकर कथित नई प्रजातियों को प्रसारित किया।
बासमती यानी सुंगध से भरपूर धान की वैराइटी में 2 एसिटिल 1 पायरोलीन नाम का यौगिक जिम्मेदार होता है खुशबू के लिए, प्रकृति में धान की खुशबू के लिए इस तत्व की मैजूदगी कब हुई यह रहस्य है।

धान की विविधता असंख्य हैं परंतु यहां कुपोषण को दूर करने वाली जिंक राइस वैराइटी व सुगर की बीमारी में लाभदायक राइस वैराइटी का जिक्र कर रहा हूँ।
डायबिटीज में फायदेमंद छत्तीसगढ़ की यह लैंडरेस वैराइटी मधुराज
Low glycemic index rice

भारतीय कृषि अनुसंधान की डीडीआर 45 जिंक राइस, बांग्लादेश राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की बीआरआरआई धान 45, और छत्तीसगढ़ के इंदिरागांधी का जिंक राइस प्रमुख धान की वैराइटी है जो कुपोषण से लड़ने के लिए बनाई गई, हरित क्रांति ने उपज तो बढ़ाई किन्तु पोषण पर ध्यान नही दिया नतीजतन एक बड़ी आबादी कुपोषण से ग्रस्त हुई, ऐसे में जिंक राइस कुपोषण से लड़ने में मददगार साबित हो सकता है।
इसी तर्ज पर डायबिटीज के मरीजों के लिए लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला चावल भी चपाती गिरमिटिया जैसी वाइल्ड वैराइटी से इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया और नाम दिया गया मधुराज 55, इंदिरागांधी कृषि विस्खहवा विद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर गिरीश चंदेल से जो बातचीत हुई उससे यह जरूर प्रतीत हो रहा है कि धान की बेहतरीन प्रजातियां जो छत्तीसगढ़ में मौजूद है जिनकी लैंडरेस प्रजातियां उन्होंने निकाली जो कुपोषण को दूर करने व डायबिटीज जैसी बीमारियों में बहुत लाभदायक होगी।
 देखना यह कि लोहे ए अज़ल ख़िलाफ़ जाकर यह प्रयोग कितना कारगर होंगे मानवता के लिए, बजाए इसके की धान की हज़ारों जंगली देशी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है, उन्हें बचाने के बदले हम प्रचार प्रसार व वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए चावल के जीन में फ़ेरबदल कर कथित नई प्राजाति विकसित कर मानवता को नवीनता का चश्मा पहना देते हैं। ये भूल जाते हैं कि कुदरत की इस कायनात में उनजे मूल गुणों से भरपूर धान्य जिसकी विशेषताएं अनमोल व अतुलनीय हैं।

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
संस्थापक/सम्पादक
दुधवा लाइव अंर्तराष्ट्रीय जर्नल 
पता- 77, मैनहन हाउस, कैनाल रोड शिव कालोनी लखीमपुर खीरी-262701, उत्तर प्रदेश 

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