वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Oct 18, 2019

हम सबक क्यों नही लेते योरोप की नदियों के सरंक्षण व संवर्धन से

जर्मनी {यूरोप } की नदियाँ इतनी साफसुथरी क्यों ? एक निष्पक्ष समीक्षा 
                 { यात्रा संस्मरण }
             __________________

     जर्मनी की नदियों को वहाँँ के लोग बहुत ही हिफाज़त से रखे हैं ,वहाँ की नदियाँ इतनी साफ-सुथरी हैं ,कि आप उनके पानी को प्यास लगने पर निर्भय होकर पी सकते हैं । वहाँ हम लोग जर्मनी के सेक्सनी राज्य में बहने वाली एल्ब नदी के किनारे गये थे ,जर्मनी के इस प्रसिद्ध शहर ड्रेसडेन के नदी किनारे के स्थान को ब्रूहल टेरेस कहते हैं ,जिसे 'यूरोप की बालकनी ' भी कहा जाता है ,से होकर गुजरती है । वहाँ मैंने ध्यानपूर्वक देखा नदी में जगह-जगह मोटे-मोटे पाइपों के द्वारा जो पानी नदी में गिर रहा था ,वह भारतीय शहरों यथा वाराणसी ,इलाहाबाद ,कानपुर ,आगरा और दिल्ली में गिरने वाले पाइपों के सीवर के गंदे पानी की तरह नहीं था ,बल्कि वह बिल्कुल साफ -सुथरा पानी था । हमें लगा वह पानी शहर द्वारा प्रयोग किया पानी ही था ,परन्तु वहाँ के नगर निगम और सरकारों द्वारा उस पानी को परिशोधित करके नदी में डाला जा रहा था ।  

      जर्मनी के शहरों में मैंने देखा वहाँ के बहुमंजिली इमारतों में भारत के शहरों की तरह हर फ्लैट में विद्युत मोटर नहीं लगी है ,न बोरिंग करके सबमर्सिबल पंप लगे हैं । वहाँ के नगर निगम द्वारा आपूर्ति किया हुआ नल का पानी इतना शुद्ध और मीठा है कि उस पानी को आप पीने और खाना बनाने के लिए निःसंकोच प्रयोग कर सकते हैं । इससे जर्मनी में करोड़ों विद्युत मोटरों ,उनके द्वारा खर्च विद्युत ,उतने ही आर.ओ.सिस्टम , सबमर्सिबल पंप का खर्च या भारत में जैसे जगह-जगह अमूल्य भूगर्भीय जल को अनियंत्रित रूप से खींचकर प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी बोतलों में भर कर खरीदने का मूल्य और सबसे बड़ी बात हमारे अमूल्य भूगर्भीय जल का अकूत दोहन करके हम अपना भविष्य अंधकारमय बना रहे हैं , वहां वैसे मुझे कहीं होता नहीं दिखा ।
     जर्मनी के एक प्रान्त बाडेन वुर्टेनम्बर्ग की राजधानी श्टुटगार्ट के शहरी परिक्षेत्र के जंगलों और पहाड़ों के नीचे पानी का इतना बड़ा भूगर्भीय भंडार है ,जो अपने 19 दिन-रात बहने वाले झरनों से प्रतिदिन 2.2 करोड़ लीटर पानी बाहर निकालता रहता है ,जिसका जल बहुत से मिनरल से संपन्न ,स्वास्थ्य वर्धक और चिकित्सकीय गुणों से भरपूर है । जर्मनी के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर लाटेर्नजर के अनुसार यह पानी का भंडार इतना विशाल है कि यह पिछले पाँच लाख साल से लगातार बह रहा है । उनके अनुसार आज जो पानी धरती से निकल रहा है ,वह बीसियों साल पूर्व बारिश और भाप की प्रक्रिया से गुजरकर छन-छन कर धरती में संग्रहित हुआ जल है । समय -समय पर इस भूगर्भीय जल की गुणवत्ता की जांच भी होती रहती है ,ताकि कोई प्रदूषण की संभावना भी न रहें । इसे वहां की सरकार इसके एक-एक बूँद को सहेजकर पाइपों के सहारे जर्मनी के दूरस्थ स्थानों को पेय जल और स्पा सेंटरों को स्वास्थ्य लाभ हेतु भेजती है ।
          
     क्या हम ,हमारा समाज और हमारी सरकारें यूरोप के इन शहरों और वहां की सरकारों से भूगर्भीय जल को सहेजने ,अपनी नदियों के जल को शुद्ध रखने और जल के व्यर्थ बर्बादी रोकने के लिए प्रेरणा नहीं ले सकते ! काश ! ऐसा होता ।

-निर्मल कुमार शर्मा , ' गौरैया एवं प्रर्यावरण संरक्षण ' , गाजियाबाद {उ.प्र. } 12- 10-19

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