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International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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Sep 20, 2016

खुल गए गाँव के नैन...





अद्भुत सौंदर्य 

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खुल गई भोर की खिड़की 
फैला ऊपर  वितान  नीला, 
झरने लगीं  सुनहरी किरणें 
खुल गए गाँव के नैन अधखुले। 
        पीपल, बरगद की छाँव तले 
        आना  जाना  दिन  रैन  चले, 
        हरी दूब पर बिखरे ओस के मोती 
        घूम- घूम  पगडंडी  के  पाँव चले। 
उगे फ़सलों की चंचल काया 
झूमा  रही  पेड़ों  की  छाया , 
पंछी चहके शोर सजा शाखों पर 
सोई  दुनिया उनींदी  जाग  उठी। 
         कमल   खिला  तालाब   में 
         फूल   खिले  क्यारी  क्यारी, 
         अद्भुत   सौंदर्य  ठहरे- ठहरे 
         लगते मनभावन सुबह सबेरे। 
खुल गई भोर की खिड़की 
फैला  ऊपर  वितान नीला, 
झरने  लगीं  सुनहरी  किरणें 
खुल गए गाँव के नैन अधखुले। 

                     
- सुजाता प्रसाद
स्वतंत्र रचनाकार, शिक्षिका (सनराइज एकेडमी) - दिल्ली
sansriti.sujata@gmail.com

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