वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jul 14, 2011

भ्रष्टाचार इनकी फ़ितरत में हैं!

दुधवा लाइव डेस्क*  ये पर्यावरण के दुश्मन है दोस्त नही....
जरा गौर फ़रमाइये बुन्देलखण्ड के इन हालातों पर.....
जनसूचना अधिकार 2005 के तहत अपर प्रमुख वन संरक्षक श्री मुहम्मद अहसन, उ0प्र0 शासन द्वारा प्राप्त आंकड़े एवं तथ्य
वर्ष 2000 से 2010 तक   
पिछले एक दशक में बुन्देलखण्ड के ऊपर 9 अरब रूपये खर्च किये गये। लेकिन लगाये गये वृक्षों को बचाया नहीं जा सका है। बांदा में 1.21 प्रतिशत महोबा में 5.45 प्रतिशत हमीरपुर में 3.6 प्रतिशत झांसी में 6.66 चित्रकूट में 21.8 प्रतिशत जालौन में 5.6 प्रतिशत वन क्षेत्र है जबकि राष्ट्रीय वननीति के तहत 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य है। 
जनपद    प्राप्त धन बजट    व्यय बजट वर्षवार    पौधों की सिंचाई पर व्यय         काटे गये वृक्ष

   बांदा       8751300                     8751300                                 नहीं किया                 3534 वृक्ष
    चित्रकूट    पांच करोड़ सात लाख    पांच करोड़ सात लाख         25.3 लाख           महुआ, आम, शीशम आदि
    हमीरपुर    153.18 लाख                  153.18 लाख                     1.42 लाख                  57338 वृक्ष
    महोबा    -    -    -    -
    मथुरा      एक लाख                              एक लाख                         नहीं किया                 30750 वृक्ष
    भदोही    506.12 लाख                          55.30 लाख                      9.43 लाख                 24541 वृक्ष
    मैनपुरी    37.41 लाख                           36.45 लाख       (2010 से मार्च 2011) कुल 96 लाख       7164 वृक्ष                                                                                                       
विशेष-
जनपद बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, मथुरा, भदोही, मैनपुरी में प्रादेशिक@राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे लगाये गये वृक्ष एवं काटे गये वृक्षों में बताये गये आंकड़े सन्देहास्पद हैं। वहीं महोबा जनपद में सूचना ही नहीं दी है। बुन्देलखण्ड के चित्रकूट धाम मण्डल वाले चार जनपदों में वर्ष 2000 से 2010 तक राजमार्गों के किनारे किये गये वृक्षारोपण में कुल 9 अरब रूपये खर्च किये जा चुके हैं और प्रशासन का दावा है कि 52 प्रतिशत वृक्षों को सुरक्षित रखा गया है। कुल प्राप्त बजट का 25 प्रतिशत सिंचाई पर व्यय होता है। स्वैच्छिक संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के मुताबिक वर्ष 2008-2009 में मनरेगा योजना के विशेष वृक्षारोपण अभियान में दस करोड़ पौधे बुन्देलखण्ड के सात जनपदों में लगाये गये थे। उन्हें भी बचाया नहीं जा सका और फौरी तौर पर जांच पड़ताल करें तो राजमार्गों के किनारे खर्च किये गये 9 अरब रूपये भी प्रशासनिक आंकड़ों के सिवा कुछ नहीं है। वर्ष 1887 से 2009 तक 17 सूखे और 2007 से वर्ष जून 2011 तक 9 मर्तबा बुन्देलखण्ड की धरती अलग-अलग जगहांे पर 350 मीटर से 700 फिट लम्बी फट चुकी है। जिसे भूगर्भ वैज्ञानिक और पर्यावरण कार्यकर्ता लगातार सूखा, जंगलों के विनाश और जलदोहन की वजह से जमीन के अन्दर आये ‘गैप’ को बता रहे हैं। वहीं ग्रेनाइट उद्योग से खनन माफियाओं द्वारा खदानों से पम्पिग सेट लगाकर जमीन का पानी बाहर फेंकने से भी जमीन फटने की घटनाओं में इजाफा हुआ है। 



कुल्हाड़ों ने की हरियाली की हत्या !
 १-  पिछले एक दशक में राष्ट्रीय@प्रादेशिक राजमार्गों के वृक्षारोपण पर खर्च हुऐ 9 अरब।
 २-  राष्ट्रीय वन नीति के मुताबिक 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य जबकि बांदा में है 1.21 प्रतिशत वन क्षेत्र।
  ३- वर्ष 2008-09 में मनरेगा से लगाये गये थे दस करोड़ पौधे 


 उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 के अन्तर्गत जनपदों में वृक्ष स्वामी को अनुमति के उपरान्त काटे गये वृक्ष के स्थान पर दो पौधे रोपित करने का प्रमाण पत्र 15 दिवस में प्रभागी वन अधिकारी को जमानत राशि वापस लेने के लिये दाखिल करना पड़ता है। अन्यथा की स्थिति में उसकी जमानत जब्त हो जाती है। हाईकोर्ट लखनऊ की खण्डपीठ ने एक अहम आदेश में प्रदेश से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय@प्रादेशिक राजमार्गों के किनारे काटे गये और उनकी जगह लगाये गये वृक्षों का ब्यौरा 18 जून 2010 को प्रमुख सचिव वन संरक्षक से तलब करते हुए यह भी पूंछा था कि राजमार्गों के किनारे वृक्षारोपण के लिये राज्य सरकार के पास क्या प्रस्ताव है ? न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह व योगेन्द्र कुमार संगल की ग्रीष्म अवकाशकालीन खण्डपीठ ने लखनऊ की एक संस्था द्वारा दाखिल पी.आई.एल. पर यह सवाल याची की उस प्रार्थना पर किया था जिसमें उसने काटे गये पेड़ों के स्थान पर उसी प्रजाति के वृक्ष लगाने की याचिका में मांग की थी।

    बुन्देलखण्ड के पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष सागर ने मुख्य वन संरक्षक उत्तर प्रदेश शासन से प्रमुख पांच बिन्दुओं की सूचना सहित मान्0 हाईकोर्ट के उक्त आदेश की प्रति भी दिनांक 03.09.2010 को मांगी थी। प्रदेश के 72 जिलों में से 8 जनपदों की सूचना उन्हें 9 माह बाद प्रदान की गयी जिसमें की बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर से जो आंकड़े प्राप्त हुये हैं वह न सिर्फ चैंकाने वाले हैं बल्कि राष्ट्रीय वन नीति और वन विभाग की कार्य प्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं। दी गयी सूचना के मुताबिक बुन्देलखण्ड में वर्ष 2000 से 2010 तक राष्ट्रीय@प्रादेशिक राज मार्गों के किनारे किये गये वृक्षारोपण में 9 अरब रूपये खर्च किये जा चुके हैं। वन विभाग लगाये गये वृक्षों में से 52 प्रतिशत वृक्षों को बचाने का दावा भी करता है।

    गौरतलब है कि वन विभागों द्वारा वर्षभर अन्य योजनाओं, प्रशासनिक मदों से कराये जा रहे वृक्षारोपण अभियान की बजट राशि 9 अरब रूपये से अलग है। एक बानगी के तौर पर वर्ष 2008-09 में मनरेगा योजना के विशेष वृक्षारोपण अभियान के तहत बुन्देलखण्ड के सात जनपदों में 10 करोड़ पौधे लगाये जाने के बाद तत्कालीन प्रदेश ग्राम विकास आयुक्त मनोज कुमार की सामाजिक अंकेक्षण टीम में अपर आयुक्त चन्द्रपाल अरूण के साथ पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष सागर भी बुन्देलखण्ड के जनपद झांसी और ललितपुर के वन क्षेत्रों में सोशल आडिट के लिये गये थे। ललितपुर के विभागीय वनाधिकारी श्री संजय श्रीवास्तव के ऊपर उस दौरान ग्रामीणों ने हरे वृक्षों को तालाब में फेंके जाने के अलावा मजदूरी हड़प करने के गम्भीर आरोप लगाये थे। मौके पर की गयी जांच में सत्तर हजार पौधों की जगह पैंतीस हजार पौधे पाये गये थे जिसे बाद में अधिकारियों की आन्तरिक सांठ-गांठ के चलते सत्यापित रिपोर्ट पर शासन को गुमराह करने के लिये फेर बदल किया गया। सर्वाधिक सूखा, जल आपदा, जंगलों के विनाश और साल दर साल किसान आत्महत्याओं के दौर से बुन्देलखण्ड लगातार अन्तर्मुखी अकाल की तरफ जा रहा है। जिसे प्रशासन मानने को तैयार नहीं है। वन विभाग ने बीते वर्षों में जो पौधे कभी यहां के रहवासियों और आदिवासियों के लिये आजीविका का साधन हुआ करते थे उनमें शामिल महुआ, आम के ब्रिटिश कालीन वृक्षों को कुल्हाड़ों और जे0सी0बी0 मशीन की दबिस में उखाड़ कर फ़ेंक दिया है। यह सब विकास की सड़क को दुरूस्त करने तथा फोर लैन सड़कों के निर्माण के लिये किया गया। क्या विनाश की शर्त पर तय किया गया विकास बुन्देलखण्ड के मौजूदा हालातों के अनुरूप है ? जहां बांदा में 33 प्रतिशत के मुकाबले 1.21 प्रतिशत वन क्षेत्र शेष बचा है। यद्यपि बुन्देलखण्ड के किसानों को जमीन, जंगल और जल के स्थायी साधन उपलब्ध होते तो कमोवेश उनकी रफ्तार आत्महत्या की तरफ नहीं होती। लेकिन विकास के मानिंद में डूब चुकी सरकार और सत्ता शासित लोग जनमंच को वोटों की राजनीति का ही अखाड़ा मानते हैं। तयशुदा है कि खत्म होते जा रहे हरे वृक्ष बुन्देलखण्ड की जलवायु परिवर्तन और भीषण आकाल का प्रमुख कारण है जिन पर समय रहते अमल किया जाना और उनके स्थायी समाधानों की तस्दीक करना भी राज्य और केन्द्र सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही है। 

आकड़े साभार- आशीष सागर, पर्यावरण कार्यकर्ता- बुन्देलखण्ड

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