वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jun 5, 2010

कई प्रजातियां, एक ग्रह, एक भविष्य

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 2010

-कई प्रजातियां, एक ग्रह, एक भविष्य



"इस वर्ष की थीम का पर्याय "अनेकता में एकता" वाला है, समन्वय, पारस्परिक सदभाव, प्रेम व सहिष्णुता की बात है, जो खुद को औरों को अमन-चैन से जीने का मौका देने का सन्देश है!- क्योंकि वास्तविक स्वरूप में हम सब एक धरती पर और एक जैसे तत्वों की सरंचना मात्र ही तो हैं। और एक ही पर्यावरण का हिस्सा भी, हम शक्ल व सूरत में जुदा-जुदा होने के बावजूद भी एक धरती के बासिन्दें है और हम सब का भविष्य भी एक है।"
इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस अफ़्रीकी महाद्वीप के एक छोटे व हरे-भरे देश रवांडा में मनाया जा रहा है, इस मुल्क को यह प्रतिष्ठा इस लिए मिली कि आर्थिक रूप से संमृद्ध न होने के बावजूद यहाँ के पारिस्थितिकी तन्त्र में सन्तुलन कायम है।

मानवीय करतूतों के चलते प्रजातियों की विलुप्ति की दर बढ़ी क्योंकि उसने पर्यावरण प्रदूषण, जीवों के आवासों का विनाश, जल संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन, वृक्षों का कटान जैसी गतिविधियों ने हमारे पूरे के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ दिया नतीजतन, प्रजातियों का नष्ट होना, प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोत्तरी, और ग्लोबल वर्मिंग जैसे भयानक प्रभाव हमारे ग्रह की ईह लीला को दुष्प्रभावित कर रहे है। इन्ही सब कारणों के चलते पर्यावरण दिवस की शुरूवात सन 1972 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण पर 5 जून को एक सम्मेलन आयोजित किया गया जो 13 जून को समाप्त हुआ। इसके अगले वर्ष यानी 1973 में इस सम्मेलन की शुरूवाती दिन 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाना तय हुआ और तब आज तक यह सिलसिला अनवरत जारी है, मानव समाज को उसकी उस वृत्ति को याद दिलाने के लिए जिसमें वह हमेशा जंगलों और जीव-जन्तुओं के साथ समन्वय स्थापित कर रहता आया था,  इस दिन हम उन सभी मुद्दों पर बात करते है जो हमारी धरती को हरा-भरा कर उसके वसुन्धरा वाले स्वरूप को कायम रखने में मदद करे! ताकि विकास की बेदी पर हो रहे प्राकृतिक विनाश वाली प्रवृत्ति को रोकने में हम कामयाब हों !

"प्रथम पर्यावरण दिवस पर John McCormick ने अपनी पुस्तक रीक्लेमिंग पैराडाइज़ में लिखा-स्टाकहोम में यह एक एतिहासिक घटना है,जो वैश्विक पर्यावरण वाद को बढ़ावा देगी। और यह पहला मौका है जब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राजिनीति, सामाजिक-आर्थिक मुद्दो के साथ पर्यावरण के मुद्दे पर चर्चा हुई।"

"संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी बान की मून (United Nations Secretary-General, Ban Ki-moon) के मुताबिक मानव जनित कारणों से प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मड़रा रहा है फ़िर चाहे वह मेढ़क से लेकर गौरिल्ला हो या फ़िर विशाल वृक्ष से लेकर छोटे कीट हो सभी इस बदलते पर्यावरणीय स्थितियों के प्रतिकूल प्रभाव  में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। 2010 के विश्व पर्यावरण दिवस के उत्सव का वैश्विक मेजबान रवांडा है। अफ्रीका के ग्रेट झील क्षेत्र में इस छोटे से देश ने तेजी से एक हरे-भरे पर्यावरण वाले देश के रूप में एक प्रतिष्ठा अर्जित की है। यहाँ 52 दुर्लभ प्रजातियां व पर्वतीय गोरिल्ला सहित कई अन्य खतरे में पड़ी प्रजातियां फ़ल-फ़ूल रही हैं। रवांडा दिखा रहा है, कि  कैसे पर्यावरण स्थिरता से एक देश के आर्थिक विकास के कपड़े में बुना जा सकता है। अपनी गरीबी और बड़े पैमाने पर भूमि क्षरण, एक हजार पहाड़ियों वाली भूमि के क्षरण सहित कई चुनौतियों के बावजूद  पुन: वनीकरण का काम कर रहा है, अक्षय उर्जा व टिकाऊ कृषि और भविष्य के लिए एक हरे भरे पर्यावरण की दृष्टि विकसित कर रहा है।

श्री बान की मून ने वैश्विक स्तर पर लोगोम से अपील की है कि पर्यावरण सरंक्षण की आवाज मिलकर बुलन्द करे, खुद सीखे और लोगो को सिखाये कि हम अपने आस-पास के महौल को कैसे दुरूस्त रख सकते है, प्रकृति के साथ फ़िर से जुड़े, पर्यावरणीय मसलो पर नेतृत्व करे, और एक साथ मिलकर धरती की जैव-विविधिता के नयी दृष्टि का सूत्रपात करें- कई प्रजातिया, एक ग्रह, एक भविष्य!"


सवाल यह है कि क्या हम जंगलों के सरंक्षण और संबर्धन में सफ़ल है, क्या हम गाँवों में मौजूद तालाबों, चरागाहों, बगीचों और छोटी-छोटी नदियों के पारिस्थिकी तंत्र को बचा पा रहे है, जिसमें असंख्य जैव-विविधिता निवास करती हैं! और यदि ऐसा नही है, तो अब हम उसके लिए कुछ ऐसा अवश्य करे ताकि हमारा पर्यावरण और उसमे रहने वाले हमारे ग्रह के सहजीवी अपने अस्तित्व को ही नही अपने जीवन चक्र को सफ़लता के साथ पूरा करते रहें, "क्योंकि मुझसे किसी फ़िलास्फर ने कहा था, कि इस दुनिया में सारी चीजे एक दूसरे से जुड़ी है, और प्रत्येक चीज एक दूसरे पर अपना प्रभाव छोड़ती है, कुछ इस तरह जैसे एक शरीर हो और उसका एक अंग काट दिया जाय तो उससे पूरा शरीर प्रभावित होगा, और यही स्थित हमारे पर्यावरण की जिसके तमाम तत्व एक दूसरे से परोक्ष-अपरोक्ष रूप जुड़े है, यह एक जीवन का जाल है, और जाल के एक तन्तु में हलचल कर देने से पूरे जाल में हलचल उत्पन्न हो जायेगी, इस लिए हम अपने पर्यावरण को छेड़ना, उसे नष्ट करना बन्द कर दे, नही मानव जीवन भी उन्ही तन्तुओं में गुथा हुआ है, हम अब भी नही चेते तो यकीन मानिए उस जाल के बिखरने के साथ मानव जीवन भी बिखर जायेगा शायद..............भी!"




कृष्ण कुमार मिश्र (लेखक वन्य-जीवन के शोधार्थी है, पर्यावरण सरंक्षण को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए संघर्षरत है, लखीमपुर-खीरी में निवास, आप इनसे dudhwajungles@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)

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