वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Apr 16, 2010

वह करुणा जिसने महाकाव्य की रचना करवा दी!

कृष्ण कुमार मिश्र* "कथित विकास की भेट चढ़ रही है, कई पक्षी प्रजातियाँ, इन्हें अभी भी बचाया जा सकता है, बशर्ते हमें अपने खलिहान, चारागाह, तालाब, और खेती के परंपरागत तरीके दोबारा वापस लानें होंगे!"
क्रौंच यानी सारस के वध को देखकर जों करूणा महार्षि बाल्मिीकि के मन में उपजी उसनें उन्हे काव्य रचना की प्रेरणा दे डाली तो सारस के जोड़े का जीवन पर्यन्त एक दूसरे का साथ निभाना और एक साथी की मृत्यु हो जाने पर दूसरे का प्राण त्याग देना जनमानस के लिए एक मिसाल बना, सारस पक्षी का प्रेम नृत्य कवियों को कविताएं रचनें का अनुपम उदाहरण, जाने कितने और कारण मिल जाएगें जहां जहां इस सुन्दर पक्षी का जिक्र जरूरी हो गया परन्तु अब ये पक्षी अपनी प्रजाति को बचाने के लिए जूझ रहा है जिसे कानून ने तो सुरक्षा दे दी है किन्तु मानव जाने अनजानें इसके अस्तित्व के लिए संकट खड़ा करता रहा है प्रदेष में सारस पर नवीन वैज्ञानिक अध्ययन पक्षी वैज्ञानिक गोपीसुन्दर ने इटावा मैनपुरी जनपदों में किया जबकि अन्य जगहों पर हालिया सारस के विषय में तथ्यपूर्ण कार्य नही किए गये।
उत्तर प्रदेश के तराई के जनपदों में इटावा, मैनपुरी, हरदोई, सीतापुर, शाहजहांपुर, बहराइच खीरी के अतरिक्त कुछ अन्य जनपदों में जहां सारस अभी भी अच्छी सख्या में है। की बात करे तो खीरी जनपद इसके शरण स्थलों में अग्रणी है, जहां आप सारस (सरसैइया) के झुण्ड के झुण्ड जिनमें सारस पक्षी की सख्या 60 से 100 तक हो सकती है वैसे तो यह जोड़ो में ही अपने एक निश्चित दायरे में रहते है पर प्रजनन काल जो हमारे यहां जुलाई से नवम्बर के मध्य का समय है, में यह एक निश्चित स्थान पर इकठ्ठा होकर स्वंमवर रचाते है। सारस पक्षी का यह  उत्सव इतना आर्कषक मनोहारी होता है, कि किसी को भी ठिठक कर देखने के लिए मजबूर कर दे। ये पक्षी प्रणय के वक्त अपने पंखों को फैलाकर नृत्य करते है जिसका अवलोकन करना बड़ा मनोहारी होता है। ये पक्षी नम भूमि जैसे झाबर, नदियों के किनारे सतही जलभराव वाले स्थानों के मध्य ऊँचें स्थानों पर खरपतवार से टापू सा बनाकर अण्डें देते है, और दोनो सारस इन अण्डों की सुरक्षा करते है, जब तक उनके बच्चे अण्डों से निकलकर बड़े नही हो जाते। इस दौरान यदि कोइ मानव अन्य जीव उनके घोसले की तरफ जाता है, तो ये उस पर हमला भी बोल देते है। इन सबके बावजूद सांप, कुत्ते मनुष्य द्वारा इनके अण्डें नष्ट कर दिए जाते है।  खीरी में कुछ विशाल प्रकृतिक जलाषय है जैसे महमदाबाद-गजनी, कस्ता-ममरी मार्ग, फरधान, कसरावल, जमैठा, सेमरई, गजमोचननाथ, छाउछ का झाबर, कबुलहाताल मैनहन, आधाचाट, भगहर धौरहरा आदि स्थानों को सारस जून-जुलाई के महीने में स्वंवर स्थल के रूप में चुनती है सभी सारस जोड़े अपने-अपने बच्चों के साथ यहां आती है और जब सभी वयस्क अपने-अपने जीवनसाथी चुन लेते है, तो प्रत्येक जोड़ा अपने अपने वास स्थलों की खोज में निकल जाता हैपर कभी-कभी सुरक्षा, भोजन की कमी के चलते इन पक्षियो का जमाववाड़ा स्वंवर के अलावा भी किसी समय दिखाई दे सकता हैफरवरी 2005 में गजनी-महमदाबाद के विल तालाब में 60 से अधिक सारस एक साथ इकठठा हुए थे। जो वन्य जीव विशेषज्ञों मीडिया में चर्चा का विषय बना। 19 फरवरी 2007 को मैलानी के निकट संसारपुर गॉंव में 64 सारस देखी, जिस सूचना को इन्टरनेट पर दिल्ली बर्डग्रुप में भेजने पर तमाम प्रतिक्रियाये मिली खासतौर पर "वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी" की प्रमुख बिलिन्डा राइट ने अपनी मेल में इस बात का जिक्र किया, कि 70 के दशक में उन्होने इसी मार्ग पर इतनी ज्यादा तादाद में सारस पक्षी को देखा थाखीरी में सारस पक्षी से संबधित अतीत में एक अदभुत करूण घटना घटी जो जनश्रुति स्मारक के रूप में आज भी मौजूद है। लोगों के मुताबिक एक सारस पक्षी को किसी शिकारी ने मार दिया, तो दूसरा सारस अपने साथी के मृत शरीर के निकट बिना कुछ खाए कई दिनों तक खड़ा रहा, जब तक कि उसकी मृत्यु नही हो गई। ग्रामीणों की भीड़ उमड़ी जनमानस में भावुकता करूणा का शैलाब गया, आखिरकार ग्रामीणों ने वहादो पक्की समाधियां बनवाई। जहां आज भी प्रत्येक वर्ष मेला लगता हैइस पक्षी ने आपसी प्रेम भावुकता का परिचय दिया जो एक मिसाल बन गई। प्रदेश में सारस की हत्या यदि किसी हिन्दू द्वारा हो जाए, तो इसे गऊ हत्या के लगभग बराबर पाप माना जाता है। और उसे कई धार्मिक अनुष्ठानों से गुजरना पड़ता है। दूसरी एक मान्यता है, यदि सारस का जोड़ा यदि किसी गांव के बीचो-बीच होकर निकल जाए तो गांव में कोई विपदा आने की पूर्वसूचना मानी जाती हैइस सन्दर्भ में मैनहन की निवासी श्रीमती  शिवकुमारी देवी मिश्रा बताती है, कि उनके मायके में यदि सारस कभी गांव के ऊपर से होकर गुजर जाती थी, तो घर की बुजर्ग महिलाएं मिटटी की देयरी फोड़ती थी, ताकि आने वाला संकट टल जाए। सारस अमूनन रात्रि में मनुष्यों को देखकर अलार्मकाल देना शुरू कर देती है। इस लिए इससे ग्रामीणों को चोर-डाकुओं का गांव के आस पास होना पता लग जाता था। सारस के जोड़े अक्सर यूनीसन कॉल (एकसुर में आवाज लगाना) निकालकर अपने क्षेत्र पर अधिकार जताने का प्रदर्शन करते है।

सारस पक्षी दुनिया में सबसे ज्यादा तादाद में उत्तर प्रदेश में पाया जाता है। भारत में सारस क्रेन उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात, पूर्वी राजस्थान, हरियाणा और मध्यप्रदेश में पाया जाना वाला पक्षी हैयह पक्षी मध्य प्रदेश के आगे दक्षिण में शायद ही कभी जाता हों। धरती के सात द्वीपों में से पांच द्वीपों में सारस की प्रजातियां मौजूद हैजबकि बाकी दो द्वीप एंटारटिका दक्षिण अमेरिका में सारस नही पाई जाती। सारस वैज्ञानिक नामावली के आधार पर ग्रुइफार्मस आर्डर ग्रुयेडी फैमिली के अर्न्तगत रखा गया है। पृथ्वी पर सारस क्रेन की 15 प्रजातियां पाई जाती है। जिनमें पांच प्रजातियां भारत में मिलती है, तीन प्रकार की सारस माइग्रेटरी  यानी सिर्फ प्रवास के लिए भारत आती हैइन्हे डेमाइसल क्रेन, यूरेशियन या कॉमन क्रेन और साइबेरियन क्रेन के नाम से जानते है। जबकि दो प्रकार के सारस क्रेन हमारी धरती के वासिन्दें हैइन्हे सारस क्रेन (ग्रस एन्टीगॉन एन्टीगॉन) (ग्रस एन्टीगॉन शार्पी) यह सारस मुख्यतः वर्मा चाइना  में पाई जाती है। इस लिए इसे बर्मीज सारस भी कहते है। ग्रिमिट और इन्सकिप की भारतीय पक्षियों पर प्रकाशित पुस्तक "बर्डस ऑफ इन्डियन सबकान्टीनेंट" में एक नवीन विदेशी सारस ब्लैक नेक्ड क्रेन की आमद भी दर्ज की गई है, जिसे भारत के पूर्वी सीमान्त इलाकों लद्दाख उत्तरी बंगाल अरूणांचल प्रदेश में देखा गया। 
 भारत में पाया जाना वाला सारस क्रेन दुनिया में मौजूद सभी उड़ने वाले पक्षियों से कद मे ऊॅचा होने का खिताब रखता है इसकी ऊँचाई 160 से 170 सेमी वजन आठ किलो तक हो सकता है। इसकी लम्बी गुलाबी टागें, लम्बी गर्दन, सिलेटी रंग और  गाढ़े लाल रंग का सिर इसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देता हैहांलाकि सारस के बच्चों में यह लाल रंग हल्का होता है। जो उम्र के साथ-साथ गहराता जाता है। और पुर्ण वयस्कता पर यह चटक लाल रंग में तब्दील हो जाता है। पूरे विश्व में सारस की कुल सख्या लगभग 10000 बताई जाती है। वाइल्डलाइफ इन्सटीटयूट ऑफ इण्डिया देहरादून के सन 1999 के सर्वे के मुताबिक भारत के नौ राज्यों में सारस पक्षी मौजूद है। जिनकी कुल सख्या 1991 बताई गई, और उत्तर प्रदेश इन आंकड़ों में सबसे आगे है। इस कुल सारस की आबादी में आधे से अधिक आबादी यानी यहां सारस की सख्या 1019 है।  दूसरे नंबर पर गुजरात आता हैजहां 510 की सख्या में सारस पक्षी पाया गया। उत्तर प्रदेश के खीरी जनपद में यह सख्या 300 बताई गई। ये आंकड़े सारस की वास्तविक आबादी की जानकारी तो नही देते है। फिर भी मोटे तौर पर हम ये जान सकते है, कि दूनिया का सबसे बड़ा खूबसूरत पक्षी हमारे प्रदेश में सबसे ज्यादा सख्या में है। इसके कई कारण है, पर इसकी मुख्य वजह है- इनलेण्ड वेटलैण्ड प्रोग्राम ऑफ इण्डिया के सर्वे के मुताबिक प्रदेश  में पूरे देश की अपेक्षा सबसे अधिक तालाब, झीलें, नदियां नम क्षेत्रों का होना, क्योकि सारस पक्षी के ये पसन्दीदा आवास हैदूसरी वजह प्रदेश में कृषि क्षेत्रो की प्रचुरता जहां विभिन्न तरह के अनाज उगाये जाते है, जिन्हे ये सारस अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैवैसे सारस पक्षी शाकाहार के बजाए मांसाहार अधिक पसन्द करता है, इसके मुख्य आहार में मछली, केकड़ा, घेंघा, केचुआ, कीट पंतगें है इसलिए किसानों को भी अधिक हानि नही पहुचाती। किन्तु खेती के लिए पटते तालाब, नदियों के किनारों पर बंधे बनाकर नमभूमियों पर खेती करना, फसलों तालाबों में सिघाड़े आदि की फसल में जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग इस सुन्दर पक्षी के लिए खतरा बने हुए है। इसके अलावा इस पक्षी के शिकार पर प्रतिबन्ध होने के बावजूद कुछ विशेष वर्ग अभी भी इस पक्षी के शिकार में लिप्त हैइन सब मानवजनित समस्याओं के चलते हमारे उत्तर प्रदेश के पक्षी के खिताब से नवाजा गया। यह जीव अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सर्घषरत है। हांलाकि आईयूसीएन द्वारा इस पक्षी को खतरे में पड़ी प्रजाति के अर्न्तगत रखा है। वही अर्न्तराष्ट्रीय एजेन्सी साइटस ने इसे अपेनडिक्स दो के तहत रखा है। और हमारे देश के वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अर्न्तगत इसे सेडयूल चार में रखा है। जबकि इसकी अन्य उप प्रजातियां सेड्यूल एक में रखी गई, इस भारतीय सारस पर मड़रातें संकट को देखते हुए और कानूनी सुरक्षा यानी सेड्यूल एक में रखा जाना चाहिए। अभी केंद्र सरकार ने प्रदेश को सारस के संरक्षण के लिए दस करोड़ रूपये दिए थे, ताकि सारस संरक्षण में जरूरी कदम उठाए जा सके, किन्तु इससे पूर्व भी जीव-जन्तु संरक्षण में करोड़ो रूपए खर्च कर तमाम प्रोजेक्ट चलाए गए, नतीजा जस का तस! लगभग 30 वर्ष पूर्व चलाए गए प्रोजेक्ट टाइगर के नतीजे सबके सामने हैएक अभयारण्य सरिस्का के पूरे के पूरे बाघ ही गायब हो गए। वन्य-जीव संरक्षण अधिनियम 1972 अन्य पर्यावरणीय संबधी कानून पूरी तरह से सफल नही हो पा रहे, कारण सरकारी मशीनरी द्वारा उनका ठीक-ठीक अमल में लाना, हाल ही में माननीय सुप्रीमकोर्ट ने एक याचिका पर अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया कि देश के जलाशयों से अतिक्रमण हटाया जाए और उनके प्राकृतिक स्वरूप को बिगड़ने दिया जाए, किन्तु तालाबों पर लालची किसानों, भूमाफियाओं  बिल्डर्स द्वारा अवैध कब्जे जारी है। पर्यावरण प्रेमियों को चिन्ता थी कि ये दसकरोड़ रूपए भी नौकरशाही, भ्रष्ट गैर सरकारी संस्थाओं की भेट चढ़ जाए, और कुछ ऐसा ही हुआ उन रुपयों में कुछ होर्डिंग तो अवस्य चौराहों पर दिखाई दी, लेकिन सारस के आवासों को बचाने के लिए कौन सी कवायदें हुई इसका कोई ब्यौरा नहीं है | अब जलाशयों आदि के लिए एक भारी भरकम वजट की तैयारी है, पर क्या ये वजट कब्जा हो चुके तालाबों, राजीनीति से प्रेरित भूमि के पट्टों को वापस ला सकते है,........
 इसके लिए जनजागृति धरती के प्राणियों के प्रति मनुष्य की सहिष्णुता करूणा की दरकार है. और यह सब बिना जुनून के संभव नही जैसा जुनून हमने आजादी के लिए फिर हरित क्रन्ति के लिए दिखाया वैसा की जुनून हमें पर्यावरण संरक्षण में दिखाना होगा। क्योकि यह हमारी आवश्यकता है, इन जीव-जन्तुओं के बिना धरती पर मनुष्य का जीवन भी संभव नही है। फिलहाल प्रदेश के वनविभाग ने सारस की तस्वीरे खरीदकर करके शहरों के चौराहों पर लगवा थी, जो अब नदारद हो चुकी हैं। सारस गांवों में रहता है, और उन्हे बचाने वाले ग्रामीण भी, उन्हे कब और किस तरह जागरूक किया जाएगा यह आने वाला वक्त ही बताएगा। हमारे ग्रामीण परिवेश में सारस पक्षी को धार्मिकता के आधार पर संरक्षण प्राप्त है इसी कारण यह पक्षी खेतों में काम कर रहे किसानों के इतना नजदीक रहता है, कि उसे इनसे कोई खतरा नही! मौजूदा वक्त में जहरीले रसायनो का प्रयोग करना तालाबों को अवैध रूप से खेती की भूमि में बदलना जिससे सारस ही नही तमाम अन्य पशु-पक्षी तितलियां  अन्य कीट भी संकट में है, पर इन सबके अप्रत्यक्ष कुप्रभावों से अछूता मनुष्य भी नही रहता। बस इन समस्याओ से अगर छूटकारा मिल जाए तो हमारा ये गर्वीला राजकीय पक्षी हमारे मध्य अपनी सुन्दरता की छटा बिखेरता रहेगा। क्यों इस धरती पर सबका बराबर अधिकार है और इसके संरक्षण की जिम्मेदारी हमारी है।

कृष्ण कुमार मिश्र ( लेखक पर्यावरण व् वन्य-जीव सरंक्षण को जनांदोलन में तब्दील करने के हिमायती है, लखीमपुर खीरी में रहते है, इनसे dudhwajungles@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)


4 comments:

  1. jaankari ke liye dhanyawad sir...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  2. apne bahut gyanvardhak avam mahatvapurn jankari DHANYAVAD Dr YP Gautam sitapur

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  3. Dear Mr Mishra,
    My heartiest congratulations to you for writing such a fine article on Sarus Cranes.
    Keep going.

    Deepak Chaturvedi

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