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Apr 8, 2020

कोरोना डायरी- लखीमपुर इमली चौराहे का नत्थू होटल और कोरोना


#CoronaDiary कोरोना डायरी- पहली कहानी

"लखीमपुर इमली चौराहे का नत्थू होटल और कोरोना"
"कोरोना डायरी की इन कहानियों अपनी खूबसूरत आवाज़ से सजाया है डिकोड एक्ज़ाम स्टूडियो से अमित वर्मा ने इस कहानी को सुनने के लिए रेडियो दुधवा लाइव के इस लिंक पर जा सकते हैं"



शहर के सबसे पुराने मुहल्ले मिश्राना और सिविल लाइन के मध्य एक चौराहा है जिसके बीचो-बीच एक इमली का पेड़, न जाने कबका है यह बूढ़ा वृक्ष आज़ादी की लड़ाई के वक़्त भी यह मौजूद था, शायद तब जवानी का दौर होगा इस वृक्ष का और इसने देखा होगा भारत के इस शहर इस जिले के जवान वीरों को जिन्होंने देश के लिए आहुति दी वो भी अपने प्राणों की...बस कहानी का यथार्थ यही पर आकर खड़ा हो जाता है, की इस बूढ़े पेड़ ने जिन हमारे पुरखों को सब कुछ न्यौछावर करते देखा, इसके जीवन के बुढापे के इस प्रहर में भी हम इसे वही दरियादिली साहस करुणा और वीरता दिखा दें, यक़ीनन देश को वही एकता निष्ठा और साहस की ज़रूरत है....ये पेड़ देखना चाहता आपमें आपके उन साहसी पुरखों के संस्कार...

कहानी आगे ले चलते हैं बात नत्थू के होटल की है, दरअसल इसी पेड़ के नीचे नत्थू नाम का व्यक्ति न जाने कितने दशकों से एक होटल चलाता है, खुद खाता है और औरों को खिलाता हैं, चंद रुपयों के बदले भरपेट भोजन, असल मे इसे होटल कहना मुनासिब नही, वह चंद रुपए इसलिए लेता है रोटी के बदले की वह भी भूखा न रहे और उससे जुड़े वे सब गरीब रिक्शे वाले, ठेले वाले, मजदूर जो शहर की सड़कों, रेलवे स्टेशन या किसी नेकदिल अमीर के अहाते में रात गुजारते है और दिन भर मजदूरी दिहाड़ी कर पेट पालते हैं, हां पेट पालते है, आपको पता होना चाहिए हमारे यहां एक बड़ी आबादी है जो सिर्फ पेट पालती है, बाज़ाए विदेशी नस्ल के कुत्ते, घोड़ा गाड़ी, खेत खलिहान, फैक्ट्री, आदमियों के, ये नत्थू उन पेट पालने वालों का निगेहबान है, और उन सबका नेह नत्थू से है, सुदूर गांवों से आए वे लोग जिन्हें रोटी की तलाश थी, उन्हें नत्थू जैसा सरपरस्त मिल गया, किंतु नत्थू का होटल दो दिनों से बन्द है, मसअला है कोरोना महामारी, ऐसे में कुछ लोग तो अपने गांव चले गए, पर कुछ यहीँ रह गए, क्योंकि उनके पास इस धरती पर जाने के लिए कोई जगह नही, उनका कोई नही इस शहर के सिवा और सिवाए नत्थू के, उनमें से एक शख़्स पड़ोस के एक बड़े घर के अहाते में रात गुजार लिया करता था, उस घर के मालिक ने आज उससे पूंछा की कुछ खाया तुमने? तो उसकी बेबसी ने जवाब दिया कल से अभी तक भूखा हूं, नत्थू का होटल बन्द है जनता कर्फ्यू जो लगा है, और भी सड़कों पर जो खाने पीने के लिए ठेले दुकानें होती है वह भी बन्द, साथ ही कोई काम भी नही जो चार पैसे मिले जिनसे पले ये पेट, उस घर के मालिक ने उसे राशन उपलब्ध कराया और अपने नौकर को उसके सहयोग में लगाया ताकि वह रोटी दाल सब्जी बना सके और पेट भर के खा सके....विचारिएगा, शहर में ऐसे तमाम नत्थू हैं और तमाम पेट पालने वाले और तमाम  बड़े घरों के मालिकान भी, अगर ये चेन बन जाए तो कोरोना यक़ीनन हार जाएगा हमसे और वह इमली का पेड़ गर्व से मुस्करा देगा...

 .....हम सब में उन हमारे पुरखों के संस्कार देखकर जो समर्पण के थे देश और समाज के लिए।
 जय हिंद

कृष्ण कुमार मिश्र 
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