वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Nov 8, 2010

खवासा का आदमखोर

खवासा (करवासा) का नर-भक्षी: 
जब महिलायें पड्डे की जगह इस्तेमाल हो जाती थी। -मौत के तांडव को रोकने के लिए औरतें देती थी अपनी जान की कुर्बानी !!

अमावस्या की अंधेरी रात मे अलाव की रोशनी जिन चेहरों को उजागर कर रही थी वे सभी शोक  भय असहायता से ग्रस्त थे । इन लोगो मे शामिल थे खवासा के बचे खुचे ग्रामीण ब्रिटिश सरकार के ३ अंग्रेज अफ़सर और ५०० रूपये इनाम की लालच मे आया नन्दू नाम का शिकार सहायक । इस असहायता का कारण था वह बाघ जो पिछले कई महिनो से इलाके मे कहर ढा रहा था । हालत यहां तक पहुच चुकी थी कि नामी शिकारी भी हथियार डाल चुके थे और सरकार द्वारा इसे मारने के लिये रखा गया इनाम बढ़ते बढ़ते ५०० रूपये तक पहुंच चुका था।

खवासा जो आज पेंच राष्ट्रीय उद्यान का प्रवेश द्वार है उस समय एक छोटा सा गांव था और वहां तक पहुचने के लिये  बैलगाड़ी का सहारा लेना पड़ता था । खवासा और उसके आस पास के गांवो में उस समय पिछले दो वर्षो से एक आ कहर ढा रहा था उसने १५० से ज्यादा आदमियो का शिकार किया था लेकिनउस समय अंग्रेज शासन  मध्य भारत मे पूरी तरह स्थापित नही हुआ था अतः इस आदमखोर ने कुल कितने लोगों का शिकार किया था यह तथ्य स्थापित नही हो पाया


यह बाघ एक लहीम शहीम नर था और पहले इसने कभी किसी पशु तक को नही उठाया था  ग्रामीण भी निडर होकर इसके सड़क किनारे बैठे रहने पर भी आराम से निकल जाते थे । लेकिन मई के महिने मे जब पानी के सभी सोते सूख गये तब जंगल के इकलौते तालाब मे मचान बनाकर नागपुर से आया एक अंग्रेज अफ़सर बैठा हुआ था । वह अफ़सर इस विशाल बाघ की खाल को लंदन मे अपनी प्रेमिका को भेंट करना चाहता था । पर उसे यह गुमान नही था कि यह भेंट एक नही बल्की सैकड़ों जानो की कुर्बानी ले लेगी । उसका निशाना चूक गया और उसकी गोली बाघ के पिछले पैरो पर लगी और वह बाघ हमेशा के लिये अपंग हो गया । अफ़सर चूंकि गोली लगने के बारे मे निश्चित नही था अतः वह यह बात बिना किसी को बताये लौट गया ।

इस घटना के कुछ दिन पश्चात गावों मे पशुओ पर हमले होने लगे और ग्रामीणॊ ने अपने पशुओ की सुरक्षा कड़ी कर दी इससे बाघ के लिये भोजन जुटाना कठिन होता जा रहा था इसी बीच मंगलू नाम का एक ग्रामीण साथी के साथ पगडंडी से गांव लौट रहा था उसने सड़क के किनारे बैठे बाघ को देखा और हमेशा की तरह आगे बढ़ा पर इस बार भूखे बाघ का इरादा कुछ और था मंगलू के आगे निकलते ही उसने पीछे से हमला किया और खामोशी से मंगलू को ले गया साथी ने कुछ कदम बाद मुड़ कर देखा तो उसे बाघ की झलक दिखाई दी पर मंगलू नही दिखा उसने आवाजे लगाई जवाब न मिलने पर वह तेजी से गांव की ओर भाग चला । ग्रामीणो ने जब खोज बीन की तो उन्हे मंगलू का आधा खाया शव मिला । मंगलू  खवासा के आदमखोर का पहला शिकार था ।

इस घटना के बाद तो हत्याओं की झड़ी लग गयी लोगो ने झुंड मे आना जाना शुरू कर दिया इससे कुछ दिन तो शांती रही पर फ़िर बाघ ने झुंड पर भी हमला करना शुरू कर दिया और एक घटना मे तो उसने अपने शिकार की खोज मे आये लोगो मे से ही एक को उठा लिया । इसके बाद बाघ ने जिसको भी उठाया उसके शव को खोजने भी कोई नही जाता था । इलाके के गांव रास्ते जंगल कोई जगह सुरक्षित नही रही । सरकार ने इनाम घोषित किया उसे मारने शिकारी आये जगह जगह गारे बांधे गये । पर उस पर गोली चलाने का अवसर एक ही शिकारी को मिल पाया ।

उमेद सिंग नाम का यह शिकारी पीपल के पेड़ पर अपने एक साथी के साथ बैठा हुआ था नीचे एक बहुत मिमयाने वाले बकरे को बांधा गया था । रात के तीसरे पहर जब आदमखोर की गंध बकरे को मिली तो वह भय से जोर जोर से मिमयाने लगा उमेद सिंग भी तैयार था । आधे घंटे तक जब आदमखोर नही आया तो उमेद सिंग थोड़ा असावधान हो गया अचानक
बिजली की तेजी से आदमखोर बकरे पर लपका और एक झटके बकरे को लेकर गायब हो गया । उमेद सिंग ने गोली चलाई पर गोली आदमखोर के कान को भेदते हुये निकल गयी ।
पूरा घटनाक्रम अप्रत्याशित था और बकरे की रस्सी बकरे की ताकत के हिसाब से बांधी गयी थी बाघ की नही इसके अलावा उमेद सिंग बाघ के आराम से आने की उम्मीद मे था जैसा की
आम गारे पर होता और उमेद सिंग पैसा बचाने के लिये भैंस या बैल के बदले बकरा लाया था । और बाघ के शिकार के बाद वह उस बकरे की दावत भी उड़ा सकता था ।

उमेद सिंग की भूल अब सैकड़ो लोगो पर भारी पड़ने वाली थी यह बकरा वो आखिरी गारा था जिसपर आदमखोर ने हमला किया था अब उसने गारे और बंदूक मे संबंध जोड़ लिया था और फ़िर कभी उसने गारे की तरफ़ रूख नही किया । उसने हत्या करने का एक नायाब तरीका ढूंढ लिया था वह  मनुष्यो की आवाज से आकर्षित होकर हमला करता था । लोग मरते गये इनाम बढ़ता गया कई शिकारी अनेको रातों तक गारे के उपर घात लगाकर बैठे पर सब के हाथ निराशा ही लगी । बड़े बड़े लाट साहब लाव लश्कर के साथ आते और गांव वालो की उम्मीद बढ़ जाती पर नतीजा सिफ़र का सिफ़र ।

एक दिन एक अंग्रेज अफ़सर अपने तीन भारतीय शिकार सहायकों के साथ बाघ की तलाश मे घूम रहा था । तभी उन्हे सांभर की चेतावनी की आवाज सुनाई पड़ी उत्साहित होकर सभी सावधानी से बिना आवाज उस तरफ़ बढ़ चले लंगूर भी बाघ की उपस्थिती के चेतावनी देने लगे  माहौल मे तनाव छा गया कि अचानक चेतावनी की आवाजे आना बंद हो गयी अफ़सर ने मशवरे के लिये  उसके पीछे चल रहे सहायको मे से सबसे अनुभवी सहायक मोहन को धीरे से आवाज दी कोई जवाब न मिलने पर वह पलटा उसने देखा की दो सहायक भी मोहन की तलाश मे दायें बायें देख रहे थे अचानक उनकी नजर जमीन पर पड़ी मोहन की पगड़ी और टंगिये पर पड़ी एक सहायक चिल्लाया साहिब मोहन को आदमखोर ले गया दूसरा बोला साहिब ये आदमखोर शैतान है जो मोहन को हमारे बीच से उठा कर ले गया है । अफ़सर ने मोहन की तलाश करने की बात कही लेकिन सहायक किसी कीमत पर तैयार नही थे अफ़सर ने दोनो को ५० ५० रूपये का लालच भी दिया और तोप के सामने खड़े कर उड़ा देने की धमकी भी दी । लेकिन सहायकॊं ने बोला साहिब भले जान से मार दे पर अगर आदमखोर हमे उठा कर ले गया तो हमारी आत्मा भी शैतान बन जायेगी और हमे कभी मुक्ती नही मिलेगी । इस अंधविश्वास के आगे बेबस अफ़सर वापस शिविर लौट गया ।

उस अफ़सर और सहायकों के वापस नागपुर अपनी रेजिमेंट तक  पहुचते पहुचते बाघ एक भयंकर दानव मे बदल चुका था और उसने मोहन को अफ़सर और सहायकों को सम्मोहित करके उनकी आंखो के सामने उठाया था । आप ही बताएं जिस मोहन ने अपने जीवन काल मे अपने टंगिये से ३ बाघो और अनगिनत भालुओं का सामना किया था और जो मदमस्त  नर हाथी से भी नही डरता था उसे क्या कोई आम बाघ रेजीमेंट के सबसे अनुभवी शिकारी गोरा साहिब के सामने ऐसे  उठा सकता था वो भी बिना आवाज के ।

इस घटना के बाद कोई शिकार सहायक किसी भी कीमत पर उस आदमखोर के शिकार मे शामिल होने के लिये तैयार नही होता था एक दो बार अफ़सरों ने बंदूक की नोक पर सहायकों को साथ लिया पर वे या तो रास्ता भूल कर गलत जगह पहुच जाते थे या रास्ते से गायब हो जाते थे । हार कर सरकार ने बाघ पर ५०० रू. का इनाम रख दिया । ऐसे मे नंदू नाम का एक बेहद अनुभवी शिकारी तीन अंग्रेज अफ़सरों से ५०० का इनाम पूरा उसे मिलेगा इस शर्त पर तैयार हो गया । इस ५०० रू. जिसकी कीमत आज के लाखों रू. के बराबर थी से वह भूमिहीन आदमी बड़ा किसान बन सकता था ।

वही नंदू उस अलाव के सामने तीन अंग्रेज अफ़सरों और बेबस गांववालों के साथ बैठा हुआ था । गांववाले जो न अब उस गांव मे रह सकते थे और न ही उसे छोड़कर जा सकते थे क्योंकि उनके सालभर का जीवन यापन वह फ़सल थी जो उनके खेतो मे लगी हुई थी जिसके कटने मे अभी वक्त था और उनके वहा से चले जाने पर जंगली जानवर फ़सल सफ़ाचट कर देते । नंदू और अफ़सरों की सारी कोशिशें नाकाम हो चुकी थी और उनके लौटने का वक्त भी आ गया था । अलाव के चारों ओर एक अजीब लगने वाली खामोशी पसरी हुई थी  किसी के पास बोलने के लिये शब्द नही थे अफ़सर भी इस गांव मे कुछ समय रहने के बाद गांववालो के दर्द से भली भाती वाकिफ़ थे और अंदर से उद्वेलित भी । तभी उस खामोशी कॊ चीरते हुए गांव के एक बुजुर्ग की आवाज गूंजी " एक ही रास्ता है साहिब इस बाघ को आदमी का गारा चाहिये तभी वह आयेगा और तभी उसकी मौत संभव है बिना बली दिये इस दानव का अंत संभव नही है "।

इन शब्दो को सुनने के बाद सन्नाटा और गहरा हो गया । इस चुप्पी को तॊड़ते हुये एक अवाज और गूंजी " मै बनूंगी गारा साहिब "  । यह आवाज थी शशी की एक २५-३० साल की खूबसूरत लेकिन अस्तव्यस्त औरत जिसका पति और बच्चा  आदमखोर का शिकार बन गये थे । सरपंच बोला " यह औरत पागल हो गयी है साहब इसकी बात पर ध्यान मत दो " । फ़िर वह शशी की ओर मुड़ा और बोला " क्या अनाप शनाप रही है भाग यहां से "। शशी ने कहा "मै बनूंगी साहब मुझे बदला लेना है मेरे परिवार को मार कर इस आदमखोर ने मुझे अनाथ कर दिया है मै गारा बन कर गाना गाते हुये इस आदमखोर को आपके कदमों मे खींच लाउंगी " । मैं तो मर जाउंगी पर मेरा नाम हमेशा के लिये अमर हो जायेगा ।  नंदू अजीब सी निगाहो से उसे घूर रहा था अफ़सर ने कहा " इस बात का सवाल ही नही उठता है किसी भी आदमी को गारा बनाना अक्षम्य अपराध है " । नंदू ने कहा " लोग तो वैसे भी रोज मर ही रहे है साहिब शशी के गारा बन जाने से  बाकियो की जान तो बचेगी "। इसपर अफ़सर ने कहा "अगर ऐसा है तो तू खुद गारा क्यों नही बन जाता इस बारे में अब आगे बात नही होगी "।

अगले दिन दोपहर बाद नंदू ने अफ़सर से कहा साहिब आज गांव के खेत के पास आदमखोर दिखा है ३ दिनो से उसने शिकार नही किया है रात मे आज हमे उसको मारने का पूरा मौका होगा । अफ़सर ने कहा कि इतने दिनो तक हमने क्या प्रयत्न नही किये कितनी बार ऐसी खबरे आयी पर कल हमे निकलना है सफ़र लंबा है रात मे आराम कर लेते हैं । नंदू बोला नही साब आज की रात हम उस राक्षस को मारेंगे यह बात तय है । नंदू की जिद पर साहब राजी हो गया । शाम को जब वे नंदू के साथ मचान पर पहुचे तो अफ़सर ने कहा अरे यहां तो कोई गारा नही है नंदू ने कहा साहब आज गारा लाने के तरीके पर मैने बदलाव किया है आज मेरे भरोसेमंद ४ साथी अंधेरे मे बाते करते हुए गारा लायेंगे उनकी आवाज सुनकर बाघ आयेगा और उनको पेड़ो पर चढ़ाकर हम बाघ का इंतजार करेंगे इस बात को सुनकर अफ़सर भी खुश हो गया और वे सभी मचान पर चढ़कर गारे का इंतजार करने लगे अफ़सर को शराब की तीव्र बदबू आयी नंदू बेहद पिया हुआ था पर अफ़सर ने फ़िलहाल के लिये इस बात को नजरंदाज कर दिया । इंतजार करते हुये जब काफ़ी देर हो गयी तब अफ़सर ने नंदू को डंटकर पूछा "क्या तुम शराब के नशे मे आकर उटपटांग बाते कर रहे हो इस अंधेरे मे कौन मरने के लिये गारा लेकर आयेगा । नंदू ने कहा नही साहिब गारा जरूर आयेगा मै कसम खाकर कहता हूं । उस अफ़सर के मन मे पहला खयाल यही आया कि इस नशे मे धुत्त आदमी की बात पर भरोसा करना बेकार है पर वह अफ़सर भारत मे दो दशको से रह रहा था और उसके मन के एक हिस्से मे यहां के किस्से कहानियों ने घर कर लिया था और मोहन के साथ वह अनेको शिकार अभियानो मे जा चुका था । आखिर भारत एक ऐसी जगह ही है कि जो यहां आता है वह यहां के माहौल के अनुसार ढल जाता है । अफ़सर के मन मे शैतान से जीसस क्राईस्ट बचा पायेंगे की नही इस शक ने घर कर लिया था आखिर भारतीय देवी देवताओं को चढ़ाया गया चढ़ावा भी इस शैतान को रोकने मे असफ़ल था और अफ़सर पिछले छह महिनो से किसी भी प्राथना मे चर्च नही गया था अतः उसने रुकने मे ही भलाई समझी ।


रात करीब दस बजे नंदू के खर्राटॊं से आस पास का माहौल गुजांयमान था तभी कही दूर से एक महिला के गाने की आवाज आयी उस आवाज को सुनकर अफ़सर पहले चौकन्ना हुआ रात के इस पहर कौन औरत खेतो मे गाना गा सकती है । तभी आवाज नजदीक आते प्रतीत हो रही थी नंदू भी जाग गया और चौकन्ना हो गया उसमे आये इस परिवर्तन से अफ़सर हैरान था  लेकिन आवाज भी नजदीक आते जा रही थी । तभी मचान के ठीक बाजू से एक कोटरी भौंका !!! नंदू एकदम सावधान हो गया उसने अफ़सर को फ़ुसफ़ुसाकर कहा  साहिब बाघ आया तैयार हो जाओ तभी चांद की रौशनी मे औरत स्पष्ट दिखाई देने लगी । वह गाते हुये नजदीक आने लगी कोटरी ने फ़िर आवाज दी । अफ़सर ने अब शशी को पहचान लिया वह चिल्लाया भागो आदमखोर है पर शशी पर इस चेतावनी का कोई असर नही हुआ वह मचान की ओर बढ़ती गई तभी एक चट्टान के पीछे से बाघ का विशाल सिर दिखाई पड़ा अफ़सर ने फ़िर शशी को चेतावनी दी लेकिन शशी निर्बाध गती से आगे बढती गई   कोई और बाघ रहता तो वह इतने शोरगुल मे वहां से भाग जाता लेकिन इस आदमखोर को तो मनुष्यों के बीच से शिकार उठाने की आदत थी मचान के ठीक सामने शशी ठिठक कर खड़ी हो गयी और उसकी नजरों के सामने से आदमखोर ने उस पर छलांग लगाई ठीक उसी समय अफ़सर ने गोली चलाई पर निशाना चूक गया और बाघ ने शशी का गला दबोच लिया । ऐसा नही है कि अफ़सर के ध्यान में कोई कमी थी या निशाना कमजोर था लेकिन उसका ध्यान शशी को सावधान करने मे ज्यादा था और बाघ को मारने मे कम नंदू दम साधे इंतजार कर रहा था और उसने दूसरे अफ़सर को करीब करीब दबोच रखा था जैसे बाघ साशा के उपर कूदा वैसे ही उसने अफ़सर कॊ छोड़ा और बोला साहिब मारो अफ़सर ने छूटते ही निशाना साधा बाघ भी आती आवाजो से भ्रमित था उस एक क्षण मे निशाना सटीक बैठा गोली सर पर लगी बाघ वही ढेर हो गया । 
नंदू पेड़ से यह सुनिश्चित करने के बाद कूदा कि बाघ मर चुका है वह बाघ के पास गया उसने उसे एक लात मारी और सरपट भाग निकला ।

अगले दिन सुबह पता नही किस संचार व्यवस्था से यह बात आस पास के बीसियों गांवो तक फ़ैल चुकी थी हजारो लोग बाघ को देखने और शशी के अंतिम संस्कार मे शामिल होने पहुच गये थे अफ़सरो ने भी पूरा खर्चा उठाया हालांकि वे ऐसा नही करते तो भी अंतिम संस्कार उतने ही सम्मान से होता पर उनके सिर मे जो बोझ था उसको उतारने का यही एक रास्ता था और रही बात नंदू की तो अफ़सर ने उसे देखते ही गोली मारने की कसम ले ली शशी की मौत के लिये वो पूरा पूरा जिम्मेदार था ।

इस घटना के तीन महिने बाद एक महिला अफ़सर के दरवाजे पहुंची और फ़ूट फ़ूट कर रोने लगी अफ़सर ने उससे कारण पूछा तो उसने कहा कि नंदू उसका पति है और वह गांव के जमीदार से ५०० रू कर्जा लेकर उसे गिरवी रखकर भाग गया है उसकी इज्जत तभी बच सकती है जब सरकार इनाम का ५०० रू दे दें । अफ़सर समझ चुका था कि नंदू ने ही अपनी पत्नी को भेजा है पर अफ़सर को आदमखोर को मारने के एवज मे प्रमोशन मिल चुका था और नियम से नंदू इनाम का हकदार भी था उसने इनाम भी दे दिया । पर ताउम्र वह अफ़सर अपराधबोध से उबर न पाया  उसके मकबरे जो कि ईंग्लैड मे है मे लिखा हुआ है मै एक पाप का भागीदार था---
( I WAS A PARTY IN A WORST SIN POSSIBLE )


इस सत्य घटना मे नंदू के उपर क्रोध आना लाजिमी है पर उसने केवल एक महिला के बदला लेने की चाहत को अपने फ़ायदे के लिये इस्तेमाल किया और वह महिला भी इसका अंजाम जानती थी और नंदू बेहद गरीब था । लेकिन हमारे देश मे आज ऐसे कई लोग नेताओ उद्योगपति और अफ़सरों के रूप मे काम कर रहे है जो न गरीब है ना मजबूर लेकिन चंद रूपयो की लालच मे वे एक पूरी पीढ़ी के भविष्य से खिलवाड़ कर रहें है बेजुबान वन्य प्राणियो और बेबस आदिवासियों के रहवास क्षेत्र को धुएं और धूल के गुबार से बरबाद कर रहे हैं । देश के बहुमूल्य पारस्थितीतंत्र से खिलवाड़ करने वाले ऐसे बेरहम लालचियों के सामने तो नंदू एक देवता नजर आता है।

 अरूणेश दवे (लेखक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते है, पेशे से प्लाईवुड व्यवसायी है, प्लाई वुड टेक्नालोजी में इंडियन रिसर्च इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा।वन्य् जीवों व जंगलों से लगाव है, स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक, मूलत: गाँधी और जिन्ना की सरजमीं से संबध रखते हैं। सामाजिक सरोकार के प्रति सजगता,  इनसे aruneshd3@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)

6 comments:

  1. मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
    http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

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  2. very touching n real life story. This story appeals me too much because last year i went to "Pench"..via khawasa border!!!!!dis time wen i will go to khawasa ...i will see that place keeping dis story in my mind!!!!

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  3. i will read this article again...because i like dis too much!!! that the appeal of this story!!

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  4. अच्छी स्टोरी है, मैने इसे दो बार पढा है।
    शशी की कुर्बानी को सैल्युट करता हूँ।

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  5. निःशब्‍द कर देने वाली दास्‍तान, रूद्रप्रयाग और कुमाउं याद आया. तिथियां, स्रोत आदि तथ्‍यों के साथ अधिक बेहतर हो सकती थी.

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