वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Oct 29, 2010

एक जानवर की कहानी !

सुरेश बरार* स्वीटू
स्वीटू जब मेरे घर आई वह सिर्फ़ १ हफ्ते की थी बहुत ही प्यारी , फ़ूल की तरह नाजुक उसका काला और सफ़ेद रंग ऐसे लगता था मानों कुदरत ने उसे ही सबसे फुर्सत मे बनाया हैं, वो मे का महिना था बहुत ही गर्म और शरीर को जला देने वाली गर्म हवा चल रही थी ! जब मैं शाम को घर पर पहुची तो छोटा भाई मेरा इंतजार कर रहा था वो मुझे कुछ दिखाना चाहता था वो स्वीटू ही थी , वो हमारे घर की छत्त पर थी , भाई ने उसके लिए कूलर भी लगा रखा था ताकि उसे गर्मी न लगे , जब मैंने उसे पहली बार अपने हाथ मैं लिया तो मुझे बहुत डर लगा ऐसा लगा की कही मेरे कठोर हाथ उसे चुभ न जाये वो बहुत ही नाजुक थी मखमल की तरह फिर उसे कटोरे मे डालकर दूध पिलाया , फिर उसे वापस ऊपर उसकी माँ के पास रख आये , ममी को पता नही था हम लोग क्या कर रहे हैं , हर रोज हम उसके पास ऊपर जाने लगे और एक दिन ममी को पता चल गया ! डाट खानी पड़ी थी , पता लगा की स्वीटू कही और रहती थी वहा से उसे फेक दिया गया था उसके बाद उसकी माम उसे हमारी छत्त पर रहने के लिए ले छोड दिया

फिर ममी शांत हो गई थी स्वीटू सीढ़ियो से उतर नहीं सकती थी वो अभी बहुत छोटी थी उसके बाद समय बीतता चला गया , अब उसने घर मैं आना शुरु कर दिया था वो सुबह साम घर मैं खाना खाती थी दिन मैं बहार खेलती थी , उसे पता था की मैं शाम को किस समय घर पर आती हु वो दरवाजे पर बठकर मेरा इंतजार करती थी , दीदी उससे बहुत प्यार करती थी लेकिन दूर से ! सबसे जयादा वो मुझे प्यार करती थी और मैं भी उसे बहुत प्यार करती थी ! स्वीटू घर मैं किसी को बरदाश्त नहीं करती थी कोई उससे खेलने की को्शिश करता तो वो अपने पैने नाखुनो से हमला करती थी , मेरे घर पर जाने तक वो बिलकुल शांत रहती थी और मेरे जाने के बाद तो जैसे पूरे घर मैं उसका राज चलता एसे चलती जसे की जंगल मैं शेर चलता हैं  और किसी की सुन्नी नहीं , बस मस्ती करनी ।

वो ३ महीने की हो चुकी थी , बड़ी शरारती और शांत भी वो अपने पंजों को मेरे मुह पर ऐसे फेरती थी जसे माँ अपने बच्चे के सर पर हाथ फेरती हैं , वो मुझे कुछ काम नहीं करने देती थी बस वो मेरे साथ खेलना चाहती थी ! और जब मैं उसके साथ नही खेलती तो वो बहुत गुस्सा होती थी मुझ पर पर मुझे उस पर बिलकुल गुस्सा नहीं आता था बस प्यार आता था ! एक दिन उसने मेरी बहुत ही जरुरी ऑफिस की फाइल को अपने नाखुनो से फाड़ डाला था जिसकी वजह से मुझे बहुत डाट खानी पड़ी थी !

अब वो ५ महीने की हो चुकी थी पहले से थोड़ी समझदार और पहले से थोड़ी शरारती जादा , जब मैं खाना खाने के लिए अपना मुह खोलती तो वो मेरे मुह के सामने अपना मुह खोलती ताकि खाना उसके मुह मैं जाये , उसकी इस अदा पर मुझे बहुत प्यार आता था , वो अपना खाना  नही खाती थी वो मेरा खाना पसंद करती थी मेरे साथ मेरी थाली मे जिस पर ममी को बहुत गुस्सा आता था, पर मुझे नही आता था क्योकि मैं उसे प्यार करती थी , जब मैं उसे देखती तो मेरी सारी थकान दूर हो जाती , एक दिन मैं अपने गमलो मैं सफाई कर रही थी और वो मुझे परेशान कर रही थी मेरे साथ खेलना चाहती थी , मैंने उसे मना किया वो नहीं मान रही थी गमले मैं बैठ गई मैं उसे हटाना चाहा तो वो सीढ़ी से नीचे गिर गई मेरी तो साँस ही जैसे रुक गई थी , मैं दोड़ कर जसे ही नीचे जाने लगी तभी वो फाटक से उठकर मेरे पास आ गई मैंने उसे अपनी गोद मैं लिया और जोर से रोने लगी , और स्वीटू को सॉरी बोला मैंने कि दोबारा ऐसा नहीं होगा ! फिर हम दोनों खेलने लगे और काफी रात तक खेलते रहे , सुबह जब तक उसे खाना नही मिलता वो सब के पीछे -पीछे  घुमती रहती ! और मेरी थाली से तो उसे जरुर ही खाना था चाहे कुछ भी हो उसे वही खाना था जो मैं खाती थी !

 सन्डे मेरी ऑफिस की छुट्टी होती थी तो हम दोनों पूरा दिन सोते-खाते-खेलते थे वो सर्दियों के दिन थे , हम लोग छत पर धूप सेकते थे उसके नाख़ून हाफ से एक इंच लम्बे थे बहुत ही तेज थे , उसकी आंखे इतनी प्यारी थी कि मानों  पूरी दुनिया उनमे समाई हो उसे फ़ूल बहुत पसंद थे वो मेरे गमले में बैठ जाती और अपने सामने वाले हाथो से फ़ूल को पकडती , जेसे वो उसके हाथ नहीं आता तो उसे बहुत गुस्सा आता ! सब का गुस्सा मुझ पर उतारा जाता मेरे सारे पोधे खराब कर दिए जाते थे , मुझे उस पर गुस्सा आता लेकिन उसके सामने आते ही सारा गुस्सा गायब हो जाता था !

और एक दिन वो भी मुझे छोड़ कर चली गयी, क्या बिगाड़ा था उसने किसी का जो वह मर गई वो अभी ८ महीने की थी , डॉ ने बताया के उसे लीवर मैं प्रोब्लम थी जो उसे कई दिनो से थी , कई दिनों से वो ठीक से कुछ खा नही रही थी , मैंने सोचा वो बाहर कुछ गड़बड़ खाती होगी पहले भी अक्सर ऐसा कई बार हुआ जब उसने घर पर खाना नही खाया ! लेकिन इस बार उसकी तबियत ठीक नही थी ,जब मैं शाम को घर जाती तो वो मेरी गोद मैं आकर बैठ जाती ,जैसे की वो मुझसे कहना चाहती के मेरी तबियत ठीक नही हैं ! लेकिन मुझे ही समझ नही आया और मैं उसे उसकी नई शरारत समझ कर खेलती रही, जसे वो उसका बार-बार मेरा मुह ताकना और अपनी पलके झपकना , वो इतनी उदास थी उसे मेरी जरूरत थी और मैं उसकी नन्ही सी जान के साथ खेल रही थी !! मानों वो मुझसे बार-बार कह रही हो की मुझे बचा लो मैं मरना नही चाहती ! लेकिन मैं उसे समझ ना सकी मैं अपने आप को कभी माफ़ नही कर पाउगी. वो इतनी स्वीट थी कि कभी कभी तो मुझे भी डर लगता था के कही उसे कुछ.......  उसे किसी ने मिल्क मैं नशे की कोई दवाई पिला दी थी जिससे उसके लीवर में तकलीफ़ होना शुरु हो गया था ! दो दिन के बाद जब घर से मेरे पास खबर आई के स्वीटू की तबीयत बहुत खराब है और जब मैं घर पहुची तो वो अपनी आखरी सासे गिन रही थी मने उसे अपनी गोद मैं उठाया ! मैंने ५ बजे का इंतजार कर रही थी क्योकि उसे डॉ ने उसी टाइम बुलाया था और उसकी तबियत बिगडती ही जा रही थी , मेने कभी अपने आप को इतना बेबस महसूस नही किया  क्योकि आज स्वीटू को मेरी जरूरत थी और मैं उसके लिए कुछ न कर सकी , उसने एक बार मुझे अपनी प्यारी सी आवाज से पुकारा जैसे कह रही थी कि मैं अब हमेशा के लिए तुमसे दूर जा रही हूं , कभी लौटकर नही आउंगी और वो मेरी गोद में हमेशा के लिए सो गई ! कभी नही उठने के लिए . और मैं एक बार फिर जिन्दा थी क्यों? सच स्वीटू ये दुनिया इतनी गन्दी हैं कि .......? 


 सुरेश बरार (लेखिका गुड़गांव में रहती हैं, ताईकांडों सीखना व सिखाना इनका मनपंसद कार्य है, वन्य जीवों से प्रेम, अभी तक ताईकांड़ों जैसी विशेष कला में तमाम एवार्ड अर्जित कर चुकी हैं, वन्य जीवन के सरंक्षण में कार्य करने वाली कई राष्ट्रीय एंव अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं, इनसे  brar.suresh@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)

2 comments:

  1. आशीष शेखावतOctober 30, 2010 at 5:48 PM

    सुन्दर व भावपूर्ण प्रस्तुति!!

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  2. Very Interesting Kahani Shared by You. Thank You For Sharing.
    प्यार की बात

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