वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Sep 29, 2010

उसके मुंह से निवाला छीना जा रहा है!

फोटो साभार: सतपाल सिंह
दुधवालाइव डेस्क* २८ सितम्बर मोहम्मदी लखीमपुर खीरी: वन विभाग द्वारा घोषित कथित आदमखोर बाघ ने मोहम्मदी तहसील के गाँव हजरतपुर (निकट अमीननगर) के निवासी पूरन सिंह की गाय को अपना शिकार बनाने की कोशिश की, पर ग्रामीणों ने इस बाघ को इसके शिकार से दूर खदेड़ दिया। इसी रोज जैती फ़िरोजपुर गाँव के किसी व्यक्ति की गाय पर बाघ ने हमला बोला! किन्तु यहां भी यह बाघ अपनी भूख मिटाने में नाकाम रहा। अन्तत: यहाँ भी इसे शिकार से दूर भगा दिया गया। इस बाघ ने पीलीभीत के जंगलों से अपनी यात्रा शुरू की और दुधवा टाइगर रिजर्व के निकट के जंगलों तक आकर फ़िर वापसी की, पर वन विभाग और वाइल्डलाइफ़ ट्रस्ट ऑफ़ इडिंया के लोगों ने इसे घेरने की और बेहोश करने की तमाम असफ़ल कोशिशों के चलते इसे और आक्रामक बना दिया। अब यह बाघ दुधवा के विभागीय हाथियों पर भी हमला बोलने से नही चूक रहा हैं।

सूत्रों के मुताबिक यह सुन्दर व विशाल नर बाघ है, और इसने जंगल के भीतर ही इन्सान को मारा, मानव शरीर के खाने के कोई पुख्ता सबूत नही हैं। यदि इस बाघ को उसके प्राकृतिक आवास में खदेड़ दिया जाए जहां इसका प्राकृतिक भोजन मौजूद हैं, तो इस एक बाघ का जीवन सुरक्षित हो सकता है। और इसके द्वारा खीरी-पीलीभीत के जंगलों में बाघों की प्रजाति में बढ़ोत्तरी की संभावनाओं से नकारा नही जा सकता।

खीरी-पीलीभीत के मध्य मौजूद बचे हुए छोटे-छोटे जंगल शाकाहारी व मांसाहारी जीवों से विहीन हो चुके हैं नतीजतन इस बाघ को मानव आबादी के निकट मवेशियों से अपने भोजन की पूर्ति करना संभावित व जरूरी हो जाता है। फ़िर बाघ के लिए घास के मैदान व गन्ने के खेतो में कोई फ़र्क नही। 

वन्य जीव प्रेमियों, व संस्थाओं को इन इलाकों में जागरूकता अभियान चलाकर बाघ के महत्व व उसके द्वारा मारे गये मवेशियों के लिए मुवाबजे आदि के सन्दर्भ में सूचित करना चाहिए, ताकि बाघ अपने द्वारा मारे गये शिकार से भोजन प्राप्त कर सके। यदि ग्रामीण उसे बार बार उसके शिकार से खदेड़ते है तो यकीनन वह जल्द ही दूसरा शिकार करेगा! 
फ़ोटो साभार: सतपाल सिंह
मौजूदा समय में बरवर कस्बें के निकट गोमती नदी की तलहटी में बाघ की मौजूदगी बताई जा रही है, जहाँ के घास के मैदानों व झाड़ियों में इस बाघ का प्राकृतिक शिकार सुअर, हिरन आदि मौजूद होने की बात कही जा रही हैं।
इस बाघ की निगरानी व इसकी मौजूदगी वाले इलाके में लोगों को जागरूक कर इसे एक मौका दिया जा सकता है, ताकि यह जंगल में दाखिल हो सके! अन्यथा इसे पकड़ न पाने की स्थिति में और राजनैतिक दबाओं के चलते इसे शूट करने का आदेश निर्गत होने में देर नही होगी। यदि इसे पकड़ने में सफ़लता मिल भी गयी  तो ये किसी नुमाइशघर का एक आइटम बन कर रह जायेगा।








1 comment:

  1. अफसोस यह है कि हमारे यहाँ ऐसी कोई ठोस योजना नहीं बनी है कि ऐसे बाघों के साथ क्या किया जाए । इन्हे मार देना तो कोई हल है ही नही और पकड- कर पिंजरे मे कैद कर देना भी नही । जंगल मे भेजना हल हो सकता है लेकिन उसके लिये कोई कार्यनीति तो चाहिये ।और सबसे बड़ी बात है यह बुद्धि कि इन्हे बचाना क्यों ज़रूरी है ।

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