वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 18, 2010

कुछ इस तरह नष्ट किये जा रहे हैं गिद्धों के आवास

फ़ोटो साभार: आदित्य रॉय*
आदित्य रॉय* अहमदाबाद में आखिर क्या है, गिद्धों का भविष्य: आई आई एम के नज़दीक मौजूद नीम-चमेली (Indian Cork: Millingtonia hortensis) के  वृक्ष, जो गिद्धों के आवास हैं। यहां तकरीबन १० वर्षों से यह पक्षी अपना बसेरा बनाये हुए है, पर अब लगता है कि यदि ज़ल्द ही कोई प्रयास न किए गये तो ये प्रजाति इस जगह से पूरी तरह खत्म हो जायेगी। भारतीय गिद्ध (White-rumped vulture) खतरे में पड़ी प्रजाति के अन्तर्गत सेड्यूल I  में रखा गया है,  इसके बावजूद इनके आवास उजड़ते जा रहे हैं, सरकारी अमलों के द्वारा प्रकृति सुरक्षा में बरती जा रही लापरवाहियों की ऐसी ही एक  घटना हैं, जो बयाँ करती है इन परिन्दों का दर्द जिसे शायद हम समझने की कोशिश नही करना चाहते? मसला  अहमदाबाद के आई०आई०एम० और छावनी शाही बाग का है, जहां अभी भी तकरीबन १०० गिद्ध मौजूद हैं। आई०आई०एम० इलाके में ग्रेस नाम के एक पुराने बंगले में एक नीम-चमेली (बुच) का ५० फ़ीट ऊँचा वृक्ष था ,जिस पर गिद्ध अपने घोसले बनाते थे, इसके अलावा दो अन्य वृक्ष भी थे, जो बसेरा थे इन गिद्धों के। बंगले के मालिक ने सन २००९ की शुरूवात में इसे एक विल्डर के हाथों बेंच दिया। मार्च में उस विल्डर ने इस पुरानी बिल्डिंग को को धराशाही कर दिया। इसी वक्त मुझे मेरे मित्र पर्यावरणविद्द कार्तिक शास्त्री द्वारा मालूम हुआ कि अब बंगलें में स्थित तीनों वृक्षों को भी काट दिया जायेगा। इस वक्त नीम-चमेली (बुच) के वृक्ष पर एक घोसला मौजूद था। 
इस सूचना के सन्दर्भ में मैने अहमदाबाद नगर निगम के उद्यान अधिकारी को सूचित किया, उन्होंने कर्मचारियों को भेजकर बिल्डर को नोटिस दी, कि कोई भी वृक्ष बिना नगर निगम की अनुमति के नही काटा जायेगा। उस वक्त तो इन वृक्षों की कटाई तो रूक गयी, और यह खबर एक स्थानीय अखबार में भी प्रकाशित हुई।
किन्तु उस गिद्ध ने अपने अवास के आस-पास हो रही निर्माण गतिविधियों के कारण अपने घोसले को छोड़ दिया।
कुछ दिनों बाद हमने उस गिद्ध के बच्चे (Juvenile) को रेस्क्यू कर, निर्जलन(Dehydration) होने की वजह से  वन चेतना केन्द्र (VCK) में इलाज कराया जिसका रिकार्ड वन चेतना केन्द्र के रिकार्ड में दर्ज़ हैं।  बच्चे  को खो देने के बाद अब गिद्ध ने उस घोसले को परी तरह से छोड़ दिया, और उस स्थान को भी, मेरे तीन वर्ष के सर्वेक्षण के अनुसार गिद्ध तीन वर्षों से इसी वृक्ष का इस्तेमाल घोसला बनाने के लिए करता था, इसलिए ये आशा थी, कि अगले वर्ष भी यह पक्षी अपना घोसला यही आकर बनायेगा।
दो सितम्बर २००९ की सुबह जब मैं अपनी बालकनी पर पहुंचा तो मैं अवाक सा रह गया, क्योंकि उस बंगले वाली जगह से बुच का पेड़ नदारद था। यह वृक्ष रातों-रात काट डाला गया था। मैने उस कटे हुए वृक्ष की तस्वीरें खींची। और इन तस्वीरों को उन तस्वीरों को भी शामिल किया, जिनमें वृक्ष मौजूद  हैं, और उस पर १२-१५ गिद्ध बैठे हुए है, पर्यावरण सरंक्षण में कार्य कर रही संस्थाओं को भेज दिया। 
किन्तु दूसरे दिन मैने देखा कि वे लोग दूसरे वृक्ष को भी काट रहे हैं! मैने तत्काल निदेशक उद्यान नगर निगम अहमदाबाद को सूचित किया, वे स्वंम मौके पर आये और वृक्ष की कटाई रूकवा दी। पर तीसरे दिन यह वृक्ष भी काट डाला गया। अब मैं यह नही समझ पा रहा था, कि कैसे एक सीनियर अफ़सर वृक्ष को कटने से बचाने में असफ़ल रहा। इस जगह पर एक बार फ़िर मैं और निदेशक उद्यान नगर निगम वहाँ पहुंचे, कि आखिर बिना उनकी इज़ाजत के यह पेड़ कैसे काटा गया!
यह घटना भी सात-आठ सितम्बर २००९ को एक प्रतिष्ठित अखबार में प्रकाशित हुई। आखिर अब मैनें प्रमुख वन-सरंक्षक से इस बावत बात की, ताकि वे कोई कार्यवाही करे। उन्होंने फ़ौरन अपने कनिष्ठ अफ़सरों को मौके का जायजा लेने भेज दिया......अब वन विभाग परिदृश्य में आ चुका था!
उन्होंने जाँच प्रारंभ की, जिसके तहत उस बिल्डर और मुझसे भी पूंछ-ताछ की गयी। इसी वक्त मुझे जाँच अधिकारी से ज्ञात हुआ कि बिल्डर ने इन वृक्षों को काटने के लिए चार-पाँच महीने पूर्व ही 24000 रूपये की फ़ीस के साथ आवेदन किया था। पर इस आवेदन के जवाब में अभी तक वन-विभाग मौन ही था! यानी अभी तक वन-विभाग ने न तो बिल्डर को पेड़ काटने की अनुमति दी थी, और न ही उसके निवेदन को खारिज़ किया था?
गौर तलब ये है कि, अहमदाबाद नगर निगम ने वन-विभाग को इस बावत कोई सूचना नही दी गयी जबकि मसला सरंक्षित प्रजाति के आवास (हैविटेट) का था, जो तेजी से विलुप्त हो रही है!
यदि ऐसे ही विकास के नाम पर पक्षियों के बसेरे उजाड़े जाते रहे तो एक दिन जरूर आसमान इन खूबसूरत परिन्दों से खाली हो जायेगा, यह मात्र एक उदाहण है, पर यहाँ तो पूरे मुल्क में ही सरकार व हमारे लोगो द्वारा संवेदनहीनता दिखाई जा रही है, जीवों और उनके आवासों के प्रति!

*वन-विभाग ने भी सात महीने गुजर जाने के बाद भी कोई छान-बीन नही की, जबकि यह मामला मार्च २००९ में ही अखबारों के माध्यम से प्रकाश में आ चुका था!
*पूर्व में गिद्धों व उनके इन आवासों का कोई दस्तावेज़ नही तैयार किया गया, जिससे इन्हे मानव-जनित कारणों से नष्ट किये जाने से पहले बचाया जा सके!
*गिद्धों के बसेरों को उजाड़ने के लिए उस बिल्डर को सज़ा के तौर पर प्रति वृक्ष १००० रूपया जुर्माने के तौर पर लिया गया।
*क्या यह नगर निगम अधिकारियों द्वारा बिना मुसीबत में पड़े, वृक्ष कटवाने का तरीका तो नही है?
*क्या यह अधिकारियों द्वारा जान बूझ कर किया गया? (अनुवाद: कृष्ण कुमार मिश्र)

आदित्य रॉय (लेखक मानव आनुवंशिकी के छात्र हैं, अहमदाबाद गुजरात में रहते हैं, पक्षी सरंक्षण के लिए संघर्षरत इनसे आप adi007roy@gmail पर संपर्क कर सकते हैं)

7 comments:

  1. राय साहब आप ने बहुत खास मुद्दे को पेश किया है, ये एक उम्दा कन्जर्वेशन स्टोरी है, जिससे सभी कोस बक लेना चाहिए, ये बात और है कि आप बहुत से प्रयासों के बावजूद वल्चर को और उन पेड़ों को नही बचा पाये, लेकिन आगे इन सब हालातों से सबक लेकर अच्छा काम किया जा सकता है

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  2. THANKYOU ADITYA ROY.
    WE ALL INDIANS SUPPORT YOU.
    WE NEED YOU.

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  3. HELLO YOUNG MAN, SEE THE SITE;S TOP RIGHT CORNER THE TITLE YOU GAVE IN HINDI TO THE BEE EATER " HARIYAL " IS NOT CORRECT.
    THE NAME "HARIYAL" IS USED FOR GREEN PEGION.
    PLEASE AVKNOLEDGE.
    AJEET KUMAR SHAAH

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  4. Sir, This name is mentioned by Salim Ali in his Book :The Book of Indian Birds"

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  5. apka yah kam vrtman pidi per ak ahsan hi, eshver apki help jrur krega

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  6. A good write up and even better effort to save the nesting site of Vulters, who are facing danger of extinction.
    If urgent effort are not done the very important bird will go forever not to return. Then there will be rotten dead bodies of cattles, dogs etc everwhere, as no vulture will be there to eat these dead bidies.A biological disaster waiting to happen.

    RAVINDRA YADAV

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