tag:blogger.com,1999:blog-6516832496554770769.post5872987946622136427..comments2024-03-08T13:47:27.081+05:30Comments on दुधवा लाइव: एक विलुप्त हो रही प्रजाति को बचाने की मुहमि!Dudhwa Livehttp://www.blogger.com/profile/13090138404399697848noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-6516832496554770769.post-58482802229054706032010-03-22T22:13:48.123+05:302010-03-22T22:13:48.123+05:30आज पूरा देश अचानक बाघों को बचाने की मुहिम मे आगे आ...आज पूरा देश अचानक बाघों को बचाने की मुहिम मे आगे आ गया हैं. ये हमारे देश का दुर्भाग्य हैं की हम किसी बीमारी का इलाज भी तब करते हैं जब हमे लगे के अब बचना नामुमकिन हैं, और फिर हम डॉक्टर से आशा करते हैं की वो हमे जीवन दान देगा और जैसे ही तबियत मैं थोडा सा सुधार होता हैं तो हम फिर लापरवाही कर जाते हैं. ये बात एक बार के नहीं हैं ये हमारी आदत बन गयी हैं. फिर चाहे वो पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते हो या कुछ और.<br />जैसे हे हम पर कोई आतंकवादी हमला होता हैं तो हम एकजुट होकर पाकिस्तान के खिलाफ रोष प्रदर्शन करते हैं, लेकिन फिर २-४ दिनों मैं हम सब भूल जाते हैं. और विडम्बना ये हैं के मीडिया इसे हमारी जिंदादिली का नाम दे देता हैं. और नेता भी केवल इसी मौके का इंतजार करते हैं की कब जनता शांत हो और वो वापस अपने बचे कार्यकाल का पूरा फायदा उठा पाए. हमलो को भूल कर वापस अपनी रोज की ज़िन्दगी मैं व्यस्त हो जाना जिंदादिली नहीं हमारी लापरवाही हैं जो पडोसी मुल्क को फिर हमारे खिलाफ खड़ा होने का मौका दे देती हैं. ये संभव नहीं हैं की हम हर रोज सड़क पे आकर सरकार व नेताओ के खिलाफ नारे बाज़ी करे. लेकिन हम उनको ये एहसास करा सकते हैं के हम हर हमले पर आपके उदासीनता का जवाब आपको अगले चुनाव मैं देंगे. नहीं तो ये नेता ये ही समझते रहेंगे की हमारी यादाशत कमजोर हैं. और हम उसके हर गुनाह को चुनावो से पहले ही भुला देंगे.<br />इंदिरा गाँधी के समय मैं जब बाघों की संख्या मैं कमी हुई तो इंदिरा जी द्वारा १९७३ मैं प्रोजेक्ट Tiger की शुरवात हुई. इंदिरा गाँधी द्वारा स्वयं रूचि लेने के कारण ये प्रोजेक्ट सफल रहा और बाघों की संख्या मैं वास्तव मैं बढ़त हुई. लेकिन बाद के नेता अपने फायदे मैं ही व्यस्त रहे.<br />नेताओ के निजी स्वार्थ के कारण एक अदभुद जीव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करने को विवश हैं. भले ही इंसान भविष्य मैं मशीन का इन्सान और मशीन के जानवर बनाने मैं सक्षम हो जाये मगर जैसा जीव भगवान ने बनाया वैसा बना पाना कल्पना से भी बाहर हैं. ऐसा नहीं हैं की इस अदभुद जीव को बचाना मुमकिन नहीं हैं. बस दूरदर्शिता की जरुरत हैं. आज चारो और जहा चले जाओ, आवारा जानवर घुमते पाए जाते हैं. मरने वाले बाघों मैं अधिकतर मनुष्य की आबादी वाले इलाके मैं घुसने के कारण मारे जाते हैं. कियोकी मनुष्य ने उनके जंगलो मैं घर बना लिए हैं. अगर सरकार आवारा जानवरों को जंगलो मैं छोड़ दे तो आम आदमी को उन आवारा जानवरों से मुक्ति मिलेगी, उन जानवरों को प्लास्टिक व अन्य कचरा खाने से मुक्ति मिलेगी और जब तक वो बाघ का शिकार नहीं बन जाते तब तक जंगल का चारा वो अन्य भोज्य सामग्री मिलेगी. और जब वाघ को अपने आसपास शिकार मिल जायेगा तो वो जंगल से बाहर नहीं जायेगा और कुछ समय और बचा रहेगा. क्या इस शानदार जानवर को जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं हैं.<br />अगर आपको नहीं लगता हैं की इस जानवर को कुछ और समय तक बचना चाहिए. अगर आपको लगता हैं तो हर उस मुहिम का साथ दे जो जंगल के इस रजा को बचने मैं लगी हैं.Piyush Kumar Pant, Haldwani, Nainitalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6516832496554770769.post-59675394806747506562010-02-12T16:05:51.135+05:302010-02-12T16:05:51.135+05:30I apologies for not to post in Hindi, my Hindi is ...I apologies for not to post in Hindi, my Hindi is poor.<br />In previous times grasslands were maintained in proper state because of traditional grazing which now banned in protected land. another point is trees which are uprooted are of glyricidia like exotic plants which are of no use to bustards.<br />this report suggest that uprooting of such heavely planted areas is one of the measure to help bustards, its not the ONLY way. we have to try collective measure. and we must encourage system to work in proper way.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6516832496554770769.post-16771418392250487792010-02-12T14:12:43.777+05:302010-02-12T14:12:43.777+05:30क्या मैदानों में खड़े कूछ बबूल के पेड़ काट डालने से ...क्या मैदानों में खड़े कूछ बबूल के पेड़ काट डालने से बस्टर्ड को लुभाया जा सकता है, प्रकृति का प्रबंधन हो सकता है?, जब कोई ग्रासलैंड मैनेजमेंट नही था तब तो बहुत सख्या थी इन चिड़ियों की! फ़िर..............अजातशत्रुnoreply@blogger.com