वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jun 9, 2018

वानर शिशु के आँसू




                                                                            

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भारत के एक जंगल में बंदरों की एक अनोखी प्रजाति मकाका सिलेंस पाई जाती है। उस प्रजाति के अब अधिकतम लगभग 4000 बन्दर ही रह गए, कहे जाते हैं और वे सब भी विलुप्त होने के कगार पर खड़े है। 

एक दिन एक मदारी उस प्रजाती के नन्हे से बंदर को उठाकर उस जंगल से रवाना हो गया। मदारी ने उस नन्हे वानर को घर न ले जा कर पैसों की तात्कालिक ज़रूरतों के दबाव में शहर के चिड़ियाघर में बेच दिया। चिड़ियाघर में आने के बाद वह वानर घर से बिछड़ने के कारण दुःख और घबराहट में चीखने - चिल्लाने लगा, लेकिन उसका दुःख और दर्द किसी ने नहीं सुना। दूसरी तरफ उस जंगल में नन्हे वानर के परिवार में मातम छाया हुआ था। 

हर चिड़ियाघर में सुबह और शाम दो मीटिंग ही जीवों को खाना खिलाया जाता है। उस चिड़ियाघर में दिन के वक्त रमन जीवों को खाना खिलाता तो रात के वक्त अमित जो की बुज़ुर्ग था वह खाना खिलाता। रमन थोड़ा गड़बड़ आदमी था, वह नन्हे वानर का केला उसे खिलाने के बजाय खुद खा जाता था और वह नन्हा वानर कुछ न कर पाता सिवाय भूखे रहने के। शाम के वक्त जब अमित की बारी आती तो वह उस नन्हे वानर को केला खिलाने जाता था। उस वानर को देखते ही वह चकित सा रह जाता था, वह देखता था की नन्हे वानर का हाल अधमरा सा होता जा रहा है। वह देखते ही समझ गया की इस नन्हे वानर के खाने में ज़रूर कोई लापरवाही की जा रही है। वह उसे सारा केला खिला दिया और नन्हे वानर को अमित अच्छा लगने लगा था क्योंकि अमित ने उसे सारा केला खिला दिया और अब वह नन्हा वानर ठीक लग रहा था लेकिन उस नन्हे वानर का हाल बेहाल देखकर अमित का मन आत्मग्लानि से भरा पड़ा था। वह सोच रहा था की “हम इंसान कैसे होते जा रहे हैं, जीवों का खाना भी नहीं छोड़ रहे हैं, हम इंसानियत भूलते जा रहें हैं। हम इंसान ही अब अपनी गलती सुधर सकतें हैं।” अमित ने तुरंत चुपके से नन्हे वानर को चिड़ियाघर के पिंजड़े से निकालकर अपने झोले में छिपा लिया और वहां से निकल गया बिना किसी के नज़र में आए और इस काम में नन्हे वानर ने भी अमित का साथ दिया और शांति से उसके झोले में बैठा रहा। 

अमित उस वानर को अपने घर ले जा कर उसके हुलियानुसार अपने कम्प्यूटर पर उसके बारे में सर्च करने लगा, काफी सर्च करने के बाद उसे उस जगह का पता चल गया जहाँ पर उस नन्हे वानर की प्रजाती पाई जाती है और वह जगह पूरी दुनिया में एक थी, वह भारत में स्थित थी और उसका नाम भी उसमे अंकित  था। अमित बिना वक्त ज़ाया किए नन्हे वानर के संभावित स्थान के लिए उस नन्हे वानर के साथ निकल पड़ा। वह रास्ते भर यही मना रहा था कि बस इस नन्हे वानर का समूह मिल जाए तो मेरा यहाँ आना सफल हो जाएगा। उस नन्हे वानर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह बूढ़ा व्यक्ति उसे कहाँ ले जा रहा है लेकिन फिर भी वह नन्हा वानर उसपर विश्वास किए शांति से बैठा हुआ था। नन्हे वानर के संभावित स्थान से चार किलोमीटर पहले ही अमित ने नन्हे वानर जैसे कुछ वानरों को देखा उन्हें देखते ही उसने नन्हे वानर को उन्हें दिखाया, उन्हें देखते ही नन्हे वानर ने उनकी ओर हाँथ फेंका। नन्हे वानर को हाँथ फेंकता देख अमित समझ गया कि वह सही गजह आया है और अमित फॉरन अपने वाहन से उतरकर नन्हे वानर को जमीन पर छोड़ दिया। छूटते ही नन्हा वानर अपने वानरी समूह के पास दौड़ पड़ा। यह सब देखकर अमित की आँखों में बिछड़े परिवार से मिलन सुख के आँसू सहसा निकल पड़े।



-वैशम्पायन चतुर्वेदी

कक्षा :- X-C, सेंट जॉन्स स्कूल, डी.एल. डब्लू., वाराणसी -221005

निवास :- 3/16, कबीर नगर, दुर्गाकुंड, वाराणसी-221005

Cell : 9415389731


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